विषय सूची :
प्रमुख कहानी: बिंदुओं को जोड़ना: जलवायु परिवर्तन और गरीबी के चलते ग्रामीण विकास के लिए एक रोडमैप
गरीबी मुक्त गांव ही मेरा सपना है: श्री शिवराज सिंह चौहान
एनआईआरडीपीआर ने मनाया भारत का 78वां स्वतंत्रता दिवस
ग्रामीण समुदायों के लिए उद्यमिता और सतत आजीविका मॉडलों पर टीओटी
मालदीव गणराज्य के स्थानीय सरकारी प्राधिकरण के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण
जेंडर कैलिडोस्कोप : ‘आम महिला’: महिला सशक्तिकरण के लिए एक नई आवाज़
यूबीए सामुदायिक प्रगति रिपोर्ट: उन्नत भारत अभियान पर समीक्षा बैठक
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ कंटेंट निर्माण में महारत हासिल करने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज कार्यक्रमों की योजना और प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
नया कॉलम : एनआरएलएम मामला अध्ययन श्रृंखला: ग्रामीण परिवर्तन एजेंटों को सशक्त बनाना: पश्चिम बंगाल एसआरएलएम का अनुभव
एक पेड मॉं के नाम अभियान: एनआईआरडीपीआर में पौधारोपण अभियान
प्रमुख कहानी:
बिंदुओं को जोड़ना: जलवायु परिवर्तन और गरीबी के चलते ग्रामीण विकास के लिए एक रोडमैप
सुश्री पवित
2024 बैच की भारतीय आर्थिक सेवा अधिकारी प्रशिक्षु,
आर्थिक मामला विभाग, वित्त मंत्रालय
“पूरी दुनिया में आग की एक ऐसी अंगूठी फैली हुई है, जहाँ कोविड-19 और बढ़ती लागतों के कारण संघर्ष और जलवायु संबंधी झटके लाखों लोगों को भुखमरी के कगार पर ले जा रहे हैं – जिससे इस साल वैश्विक स्तर पर प्रवास और अस्थिरता बढ़ने का खतरा है।”
-डेविड बेस्ली (कार्यकारी निदेशक विश्व खाद्य कार्यक्रम)
परिचय
जलवायु परिवर्तन हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, जिसके वैश्विक गरीबी और विकास पर दूरगामी परिणाम होंगे। बढ़ते तापमान, बदलती वर्षा पद्धति और अधिक चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव दुनिया भर में पहले से ही महसूस किए जा रहे हैं, जिसमें गरीब और सीमांत लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
यह लेख भारत में जलवायु परिवर्तन और गरीबी के बीच जटिल संबंधों की जांच करता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और विकास नीति निहितार्थों पर जोर देता है।
भारत अपनी बड़ी आबादी, उच्च गरीबी स्तर और कृषि जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर निर्भरता के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। निबंध में तर्क दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन मौजूदा असमानताओं को बढ़ा रहा है और सतत विकास को प्राप्त करने के प्रयासों को कमजोर करते हुए अधिक लोगों को गरीबी में धकेल रहा है। इसे व्यवहार्य बनाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, विशेष रूप से ग्रामीण गरीबों में जो जलवायु-संवेदनशील आजीविका पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक गरीबी
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक घटना है जिसके प्रभाव बहुत अनियमित हैं। जबकि जलवायु परिवर्तन के प्राथमिक चालक – मानवीय गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन – औद्योगिक देशों में केंद्रित हैं, विकासशील देश और दुनिया की सबसे गरीब आबादी इसके परिणामों को सबसे अधिक तीव्रता से महसूस करती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन देशों और समुदायों में अक्सर बदलते जलवायु के अनुकूल होने के लिए संसाधनों, आधारभूत संरचना और संस्थागत क्षमता की कमी होती है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से 2030 तक अतिरिक्त 100 मिलियन लोगों के गरीबी में चले जाने की उम्मीद है, जिनमें से अधिकांश उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में रहते हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन 2050 तक 216 मिलियन से अधिक लोगों को अपने ही देशों में पलायन करने के लिए मजबूर कर सकता है, जिससे गरीबी और असमानता और बढ़ जाएगी।
जिन घटकों से जलवायु परिवर्तन गरीबी को प्रभावित करता है, वे हैं – बढ़ता तापमान, बारिश की बदलती पद्धति और अधिक लगातार और तीव्र चरम मौसम की घटनाएँ कृषि उत्पादकता को तबाह कर सकती हैं, आजीविका को बाधित कर सकती हैं और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकती हैं। इससे जान माल, संपत्ति और आय का नुकसान होता है, जिससे कमजोर परिवार गरीबी में और गहरे धंसते जाते हैं। जलवायु परिवर्तन खाद्य असुरक्षा, पानी की कमी और बीमारियों के प्रसार में भी योगदान देता है, जो सभी गरीबों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अक्सर मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के साथ जुड़ते हैं और उन्हें बढ़ाते हैं। संसाधनों, सेवाओं और निर्णय लेने की शक्ति तक सीमित पहुंच के कारण महिलाएं, जातीय अल्पसंख्यक और स्वदेशी समुदाय जैसे सीमांत समूह अधिक असुरक्षित हैं। जलवायु परिवर्तन संघर्ष और विस्थापन को भी बढ़ावा दे सकता है, विकास को कमजोर कर सकता है और लोगों को गरीबी में फंसा सकता है।
इसलिए, सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और सभी के लिए न्यायपूर्ण और समतापूर्ण भविष्य सुनिश्चित करने के लिए जलवायु-गरीबी संबंध को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए जलवायु परिवर्तन को कम करने, अनुकूलन क्षमता का निर्माण करने और दुनिया की सबसे गरीब और सबसे कमजोर आबादी का समर्थन करने के लिए एक ठोस वैश्विक प्रयास की आवश्यकता है।
भारत में गरीबी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
भारत अपनी बड़ी आबादी, उच्च गरीबी स्तर और कृषि जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर निर्भरता के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील देशों में से एक है। बढ़ते तापमान, बदलती वर्षा पद्धति और अधिक चरम मौसम की घटनाएं पहले से ही जीवन और आजीविका पर भारी असर डाल रही हैं, जिसमें गरीब सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- चरम मौसमी घटनाएँ
भारत में बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी चरम मौसमी घटनाएँ लगातार और तीव्र होती जा रही हैं, जिससे घरों, बुनियादी ढाँचे और कृषि भूमि को व्यापक नुकसान पहुँच रहा है। इससे जान माल संपत्ति और आय का नुकसान होता है, जिससे कई कमज़ोर परिवार गरीबी में और भी ज़्यादा डूब जाते हैं। उदाहरण के लिए 2018 में केरल में आई विनाशकारी बाढ़ ने 5 मिलियन से ज़्यादा लोगों को प्रभावित किया और अनुमानतः 3 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। इसी तरह, ओडिशा में 2019 में आए फ़ानी चक्रवात ने 200,000 से ज़्यादा घरों को नष्ट कर दिया और महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना को नुकसान पहुँचाया, जिसका सबसे ज़्यादा नुकसान सबसे गरीब समुदायों को उठाना पड़ा। ये चरम घटनाएँ न केवल तत्काल बाद की आजीविका को बाधित करती हैं, बल्कि गरीबी और विकास के लिए दीर्घकालिक परिणाम भी लाती हैं। परिवारों को अक्सर झटकों से निपटने के लिए उत्पादक संपत्तियाँ बेचनी पड़ती हैं, कर्ज लेना पड़ता है या बच्चों को स्कूल से निकालना पड़ता है, जिससे उनकी गरीबी और भी बढ़ जाती है।
- कृषि प्रभाव
जलवायु परिवर्तन भारत में कृषि उत्पादकता को भी काफी हद तक प्रभावित कर रहा है, गर्मी के तनाव, पानी की कमी और कीटों के संक्रमण के कारण फसल की पैदावार में गिरावट आ रही है। यह विशेष रूप से समस्याग्रस्त है क्योंकि 70 प्रतिशत भारतीय अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। कृषि से होने वाली आय में गिरावट के कारण कई छोटे और सीमांत किसान कर्ज लेने या काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। यह स्थिति विशेष रूप से वर्षा आधारित किसानों के लिए विकट है, जो अपनी फसलों के लिए अप्रत्याशित मानसून पर निर्भर हैं और उनके पास सिंचाई और अन्य अनुकूली तकनीकों तक सीमित पहुंच है। जलवायु परिवर्तन जल संसाधनों की उपलब्धता और गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है, जो कृषि उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं। सूखे और अनियमित वर्षा पद्धति भूजल स्तर को कम करते हैं और सतही जल आपूर्ति को कम करते हैं, जिससे फसलें खराब होती हैं और पशुधन की हानि होती है।
- खाद्य असुरक्षा और बढ़ती कीमतें
कृषि उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भारत में खाद्य असुरक्षा और खाद्य कीमतों में वृद्धि में योगदान करते हैं। चरम मौसम की घटनाओं के कारण खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान और फसल विफलता से खाद्य कीमतों में उछाल आ सकता है, जिससे घरेलू बजट कम हो सकता है और गरीबों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। वे अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा खाद्यान्न पर खर्च करते हैं और इन मूल्य बढ़ोतरी के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। खाद्य कीमतों में वृद्धि से परिवारों को अपने भोजन की मात्रा और गुणवत्ता को कम करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, खासकर बच्चों में। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित खाद्य असुरक्षा के व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिणाम भी हो सकते हैं, जैसे कि संघर्ष, प्रवास और राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि, जिससे गरीबी और असमानता और बढ़ सकती है।
- शहरी गरीबी और भेद्यता
भारत में शहरी गरीब भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। बहुत से लोग अनौपचारिक बस्तियों में रहते हैं, जहाँ बुनियादी सेवाओं का अभाव है और बाढ़ एवं गर्मी की लहरों का खतरा बना रहता है। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग अक्सर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जो जलवायु जोखिमों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है और सामाजिक सुरक्षा का अभाव रहता है। उदाहरण के लिए भारत में 2022 की गर्मी की लू लगने के कारण बड़े पैमाने पर बिजली की कटौती और पानी की कमी हुई, जिसका शहरी गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जिनके पास शीतलन और विश्वसनीय जल आपूर्ति तक पहुँच नहीं है। जलवायु से संबंधित ये अनियमितता आजीविका को कमजोर कर सकते हैं, आवश्यक सेवाओं को बाधित कर सकते हैं और बीमारी के प्रकोप के जोखिम को बढ़ा सकते हैं, जिससे शहरी गरीबी और भी बढ़ सकती है।
- अन्तर्विभाजक कमजोरियाँ
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अक्सर भारत में मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं से जुड़ते हैं और उन्हें और बढ़ाते हैं। महिलाएँ, दलित, आदिवासी समुदाय और धार्मिक अल्पसंख्यक जैसे हाशिए पर पड़े समूह संसाधनों, सेवाओं और निर्णय लेने की शक्ति तक सीमित पहुँच के कारण ज़्यादा असुरक्षित हैं। उदाहरण के लिए, भारत में महिलाओं के ग़रीबी का अनुभव करने, कम संपत्ति रखने और घरेलू संसाधनों पर कम नियंत्रण रखने की संभावना ज़्यादा है। उन्हें जलवायु संबंधी आपदाओं के दौरान और उसके बाद उन्हें जेंडर आधारित हिंसा और स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिमों का सामना करना पडता है। इससे उनकी कमज़ोरी और बढ़ जाती है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उससे उबरने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। इसी तरह, आदिवासी और स्वदेशी समुदाय, जो अक्सर प्राकृतिक संसाधन-आधारित आजीविका पर निर्भर होते हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरणीय गिरावट और जैव विविधता के नुकसान से असमान रूप से प्रभावित होते हैं। उनका पारंपरिक ज्ञान और सामना करने की रणनीतियाँ भी खत्म हो रही हैं, जिससे उनकी ग़रीबी और हाशिए पर होने की स्थिति और भी बढ़ रही है।
- ग्रामीण विकास पर प्रभाव
भारत में तीन-चौथाई हिस्सा ग्रामीण गरीबों का है, जो जलवायु परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में हैं। उनकी आजीविका कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर बहुत अधिक निर्भर करती है। जलवायु अनियमितता से निपटने के लिए उनके पास संसाधनों, सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा जाल तक पहुंच भी सीमित है। जलवायु परिवर्तन ग्रामीण क्षेत्रों में कड़ी मेहनत से हासिल किए गए विकास लाभों को कमजोर कर रहा है और खाद्य सुरक्षा, गरीबी में कमी और स्थायी आजीविका जैसे लक्ष्यों को हासिल करना कठिन बना रहा है। यह मौजूदा असमानताओं को भी बढ़ा रहा है, जिसमें छोटे किसान, भूमिहीन मजदूर और आदिवासी समुदाय जैसे हाशिए पर रहने वाले समूह असमान रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
- ग्रामीण आजीविका पर प्रभाव
जैसा कि पहले चर्चा की गई है, कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भारत में ग्रामीण परिवारों की आजीविका के लिए एक बड़ा खतरा हैं। कम होती फसल की पैदावार, पशुधन की हानि और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच में कमी से आय में कमी, खाद्य असुरक्षा और ऋणग्रस्तता हो सकती है, जिससे कई परिवार गरीबी में और भी अधिक डूब सकते हैं। जलवायु परिवर्तन वानिकी और मत्स्य पालन जैसे अन्य ग्रामीण आजीविका स्रोतों को भी प्रभावित करता है। वर्षा की बदलती पद्धति और बढ़ते तापमान से वन संसाधनों का वितरण और उत्पादकता बदल रही है, जबकि महासागरों का गर्म होना और अम्लीकरण मछली के भंडार को कम कर रहा है। यह उन समुदायों की आय और खाद्य सुरक्षा को कमजोर कर सकता है जो इन प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जलवायु-प्रेरित पलायन बढ़ रहा है, क्योंकि लोग आय और आजीविका के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहे हैं। इससे सामाजिक सहायता प्रणाली टूट सकती है, शहरी झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी बढ़ सकती है और ग्रामीण गरीबों का और अधिक हाशिए पर जाना हो सकता है।
- ग्रामीण विकास की चुनौतियाँ
जलवायु परिवर्तन भारत में सतत ग्रामीण विकास को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। यह कृषि, बुनियादी ढाँचे और बुनियादी सेवाओं जैसे क्षेत्रों में निवेश को कमज़ोर करता है, जो ग्रामीण गरीबों के जीवन और आजीविका को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु संबंधी आपदाएँ ग्रामीण सड़कों, सिंचाई प्रणालियों और अन्य महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना को नष्ट कर सकती हैं, जिससे बाज़ारों, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुँच बाधित हो सकती है। इससे विकास की प्रगति में बाधा आ सकती है और ग्रामीण गरीबों के लिए गरीबी से बाहर निकलना मुश्किल हो सकता है। जलवायु परिवर्तन कई ग्रामीण विकास कार्यक्रमों और योजनाओं की प्रभावशीलता को भी खतरे में डालता है, जैसे कि कृषि उत्पादकता, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और सामाजिक सुरक्षा में सुधार पर केंद्रित कार्यक्रम। हो सकता है कि अतीत में जो हस्तक्षेप प्रभावी रहे हों, वे अब बदलती जलवायु के सामने उपयुक्त न हों।
नीतिगत प्रतिक्रियाएँ और हस्तक्षेप
भारत में जलवायु-गरीबी के गठजोड़ को संबोधित करने के लिए एक व्यापक, बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो सभी स्तरों पर विकास योजना और कार्यान्वयन में जलवायु अनुकूलन और शमन को एकीकृत करता है। इसमें जलवायु परिवर्तन के चालकों और प्रभावों दोनों को लक्षित करने वाली नीतिगत प्रतिक्रियाओं और हस्तक्षेपों की एक श्रृंखला शामिल है
- राष्ट्रीय नीतियां और रणनीतियां
राष्ट्रीय स्तर पर, भारत ने जलवायु परिवर्तन और गरीबी तथा विकास पर इसके प्रभावों को संबोधित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) और जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाएँ (एसएपीसीसी) जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन के लिए भारत की रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करती हैं, जो कमज़ोर क्षेत्रों और समुदायों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। एनएपीसीसी में आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं, जैसे कि राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन और जलवायु परिवर्तन के लिए रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन। इन मिशनों का उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना, कृषि व्यवहार्यता में सुधार करना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की समझ को बढ़ाना है। भारत ने ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन का समर्थन करने के लिए कई प्रमुख कार्यक्रम और योजनाएँ भी शुरू की हैं, जैसे कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान)। हालाँकि इन पहलों को शुरू में जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया था, लेकिन उनके कार्यान्वयन में जलवायु संबंधी विचारों को एकीकृत करने की आवश्यकता की बढ़ती मान्यता है।
मनरेगा: जलवायु व्यवहार्यता की दिशा
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) – भारत का प्रमुख सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम – इन बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए जलवायु लचीलापन बनाने और ग्रामीण गरीबों का समर्थन करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उभरा है। जबकि कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य गरीबी को कम करना और आय सुरक्षा प्रदान करना है, इसके जलवायु सह-लाभों को हाल के वर्षों में बढ़ती मान्यता मिली है। जल संरक्षण, भूमि विकास और वनीकरण जैसी गतिविधियों पर मनरेगा का ध्यान न केवल तत्काल रोजगार और आय उत्पन्न करता है, बल्कि ग्रामीण समुदायों की दीर्घकालिक अनुकूलन क्षमता को भी बढ़ाता है।
कार्बन पृथक्करण और जलवायु शमन
मनरेगा के महत्वपूर्ण जलवायु सह-लाभों में एक यह है कि यह कार्बन पृथक्करण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान करने की क्षमता रखता है। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएस) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि इस योजना ने 2017-18 में अपने वृक्षारोपण और मिट्टी की गुणवत्ता सुधार गतिविधियों के माध्यम से 102 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड (MtCO2) को अवशोषित किया। अध्ययन का अनुमान है कि 2030 तक मनरेगा की कार्बन पृथक्करण क्षमता 249 MtCO2 तक बढ़ सकती है, जो भारत के जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों में महत्वपूर्ण योगदान देगी। प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर योजना का ध्यान, विशेष रूप से वनीकरण, जलागम विकास और भूमि बहाली जैसी गतिविधियों के माध्यम से, कार्बन सिंक को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में मनरेगा के तहत लागू ‘उषारमुक्ति’ नदी कायाकल्प कार्यक्रम ने 2017 से 15 मिलियन से अधिक पेड़ों के साथ 30,000 हेक्टेयर भूमि को वृक्षारोपण के अंतर्गत लाने में मदद की है। ये प्रकृति-आधारित समाधान कार्बन को अलग करते हैं और कई सह-लाभ प्रदान करते हैं, जैसे कि मिट्टी की उर्वरता में सुधार, भूजल पुनर्भरण और जैव विविधता संरक्षण। जलवायु परिवर्तन शमन को अपने मुख्य उद्देश्यों में एकीकृत करके, मनरेगा भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं के अनुसार 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
जलवायु अनुकूलन और व्यवहार्यता को बढ़ाना
जलवायु शमन के अलावा, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण पर मनरेगा का फोकस भी कमजोर समुदायों की जलवायु अनुकूलन और लचीलापन बढ़ाता है। योजना के कार्य, जैसे जल संचयन संरचनाएं, भूमि विकास और सूखा-रोधी उपाय, ग्रामीण परिवारों और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं की अनुकूलन क्षमता को मजबूत करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण और विकास संस्थान (आईआईईडी) के एक अध्ययन में पाया गया कि आंध्र प्रदेश के ऋुषिकोंडा गांव में एक स्थानीय नदी और जल निकासी चैनल को गहरा और चौड़ा करने का काम, जो कि मनरेगा के तहत किया गया था, ने 2014 में हुदहुद चक्रवात के प्रभाव को कम करने में मदद की। बेहतर जल निकासी प्रणाली ने बाढ़ के पानी को वापस समुद्र में जाने दिया, जिससे आसपास के घरों को नुकसान नहीं हुआ।
इसी तरह, गुजरात के ढांक गांव में, मनरेगा के तहत बनाए गए दस तालाबों ने भूजल को रिचार्ज करने में मदद की है, जिससे किसान पूरे वर्ष कई फसलें उगा सकेंगे। इससे सूखे और अनियमित वर्षा, जो जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक आम हो गई है के प्रति उनकी संवेदनशीलता कम हो गई है। कई ग्रामीण समुदायों में, मनरेगा कार्यों ने जल सुरक्षा, मिट्टी की उर्वरता और उत्पादक परिसंपत्तियों तक पहुँच को बेहतर बनाने में मदद की है – जो जलवायु लचीलापन बढ़ाने के लिए सभी महत्वपूर्ण हैं। जलवायु-व्यवहार्य बुनियादी ढाँचे और प्राकृतिक पूंजी का निर्माण करके, यह योजना ग्रामीण गरीबों की जलवायु-संबंधी झटकों और तनावों के लिए तैयार होने, उनका सामना करने और उनसे उबरने की क्षमता को मजबूत करती है।
आजीविका विविधीकरण और सामाजिक संरक्षण
गारंटीकृत मज़दूरी रोजगार प्रदान करने और उत्पादक संपत्ति बनाने में मनरेगा की भूमिका आजीविका विविधीकरण और सामाजिक सुरक्षा में भी योगदान देती है, जो जलवायु व्यवहार्य बनाने के लिए आवश्यक है। इस योजना का ध्यान श्रम-गहन कार्यों पर है, जैसे कि सिंचाई संरचनाओं का निर्माण, भूमि विकास और वनीकरण, ग्रामीण परिवारों के लिए तत्काल आय उत्पन्न करता है। इससे उन्हें हल्के मौसम के दौरान खपत को सुचारू बनाने और जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण होने वाले आय झटकों से निपटने में मदद मिलती है। इसके अलावा, मनरेगा के तहत बनाई गई संपत्तियाँ, जैसे कि जल संचयन संरचनाएँ और बेहतर कृषि भूमि, ग्रामीण आजीविका की उत्पादकता और जलवायु लचीलापन बढ़ाती हैं। यह बदले में, वर्षा आधारित कृषि जैसी जलवायु-संवेदनशील गतिविधियों पर निर्भरता को कम करता है, जो जलवायु परिवर्तनशीलता के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं। मनरेगा एक महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा तंत्र के रूप में भी काम करता है, जो संकट के दौरान ग्रामीण गरीबों को सुरक्षा चक्र प्रदान करता है। योजना के गारंटीकृत रोजगार और मजदूरी भुगतान से परिवारों को जलवायु-संबंधी झटकों, जैसे कि फसल की विफलता या पशुधन की हानि, के प्रभावों को अवशोषित करने और उन्हें गरीबी में और अधिक गिरने से रोकने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान, मनरेगा ने आर्थिक संकट से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस योजना के तहत काम मांगने वाले परिवारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। यह इस योजना की जलवायु-प्रेरित संकटों के सामने एक आघात-प्रतिक्रियाशील सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में काम करने की क्षमता को उजागर करता है।
जलवायु अनुकूल बनाने में मनरेगा की महत्वपूर्ण क्षमता के बावजूद, इस योजना को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनका समाधान करने की आवश्यकता है। प्रमुख मुद्दों में से एक कार्यक्रम के लिए असंगत और अक्सर अपर्याप्त धन है, जैसा कि हाल के बजट कटौती में देखा गया है। इससे रोजगार और जलवायु अनुकूलन कार्यों की बढ़ती मांग को पूरा करने की मनरेगा की क्षमता के बारे में चिंताएं पैदा होती हैं। इसके अतिरिक्त, कमजोर निगरानी, तकनीकी क्षमता की कमी और खराब रखरखाव के कारण योजना के तहत बनाई गई संपत्तियों की गुणवत्ता और स्थिरता विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में असमान रही है।
मनरेगा के पूर्ण जलवायु सह-लाभों का दोहन करने के लिए, कार्यक्रम के डिजाइन और कार्यान्वयन में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन को अधिक स्पष्ट रूप से एकीकृत करने की आवश्यकता है। हालांकि इस योजना के कार्यों में जलवायु से संबंधित अंतर्निहित प्रभाव हैं, लेकिन अधिक व्यवस्थित और लक्षित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें जलवायु लाभों को मापने के लिए रूपरेखा विकसित करना, कार्य योजनाओं को स्थानीय भेद्यता आकलन के साथ जोड़ना, समुदायों को जलवायु सूचना सेवाएँ प्रदान करना और जलवायु-स्मार्ट गतिविधियों को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मनरेगा के जलवायु लचीलापन लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, खासकर छोटे किसानों, भूमिहीन मजदूरों, महिलाओं और आदिवासी समुदायों जैसे हाशिए पर रहने वाले समूहों के बीच, जो असंगत जलवायु जोखिमों का सामना करते हैं। इन चुनौतियों का समाधान करके और उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाकर, मनरेगा को अधिक जलवायु-व्यवहार्य और न्यायसंगत ग्रामीण भारत के निर्माण के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- क्षेत्रीय हस्तक्षेप
राष्ट्रीय नीतियों के अलावा, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जलवायु-गरीबी के संबंध को दूर करने के लिए विभिन्न क्षेत्रीय हस्तक्षेप लागू किए जा रहे हैं। इनमें शामिल हैं:
जलवायु-स्मार्ट ग्रामीण विकास के अवसर
महत्वपूर्ण चुनौतियों के बावजूद, जलवायु परिवर्तन भारत में अधिक सतत और न्यायसंगत ग्रामीण विकास के अवसर भी प्रस्तुत करता है। विकास योजना और कार्यान्वयन में जलवायु अनुकूलन और शमन रणनीतियों को एकीकृत करके, नीति निर्माता ग्रामीण समुदायों की व्यवहार्यता का निर्माण कर सकते हैं और साथ ही गरीबी और असमानता के मूल कारणों को भी संबोधित कर सकते हैं। जलवायु-स्मार्ट ग्रामीण विकास के लिए ध्यान के कुछ प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं:
1. जलवायु-स्मार्ट कृषि: सूखा-प्रतिरोधी फसलों, कुशल सिंचाई और सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने से उत्पादकता और आय में वृद्धि हो सकती है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम हो सकता है।
2. विविध आजीविका: गैर-कृषि रोजगार के अवसरों और कौशल प्रशिक्षण का समर्थन करने से जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर निर्भरता कम हो सकती है और आय के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हो सकतेहै।
- नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँच: स्वच्छ, विकेन्द्रित ऊर्जा समाधानों तक पहुँच का विस्तार करने से ऊर्जा सुरक्षा में सुधार हो सकता है और ग्रामीण विकास का समर्थन करते हुए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है।
- पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन: वनों और आर्द्रभूमि जैसे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों की बहाली और संधारणीय प्रबंधन में निवेश करने से जलवायु व्यवहार्यता बढ़ सकती है और आजीविका के अवसर मिल सकते हैं।
- सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना: फसल बीमा, रोजगार गारंटी योजनाओं और नकद हस्तांतरण जैसे सुरक्षा जाल के कवरेज का विस्तार करने से ग्रामीण गरीबों को जलवायु झटकों और तनावों से निपटने में मदद मिल सकती है।
- सेवाओं तक पहुँच में सुधार: स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, स्वच्छ जल और स्वच्छता जैसी आवश्यक सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना अनुकूलन क्षमता के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: अनुकूलन रणनीतियों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में समुदायों को शामिल करना और स्थानीय संस्थानों को मजबूत करना संदर्भ-उपयुक्त और संधारणीय हस्तक्षेप सुनिश्चित कर सकता है।
- आपदा जोखिम में कमी: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करना, आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमताओं में सुधार करना और व्यवहार्य बुनियादी ढाँचा बनाना ग्रामीण समुदायों को जलवायु-संबंधी आपदाओं के लिए तैयार होने और उनसे निपटने में मदद कर सकता है।
- क्षमता निर्माण और ज्ञान साझाकरण: प्रशिक्षण, विस्तार सेवाओं और ज्ञान-साझाकरण प्लेटफार्मों में निवेश करने से ग्रामीण समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने और उनका जवाब देने में सशक्त बनाया जा सकता है।
ग्रामीण विकास के लिए एक समग्र, जलवायु-स्मार्ट दृष्टिकोण अपनाकर, भारत में नीति निर्माता गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन की परस्पर जुड़ी चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं और साथ ही अधिक समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
- बहुपक्षीय और दाता पहल
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हस्तक्षेपों के अलावा, जलवायु-गरीबी संबंध को संबोधित करने के भारत के प्रयासों को विभिन्न बहुपक्षीय और दाता-वित्तपोषित पहलों द्वारा भी समर्थन प्राप्त है। इनमें शामिल हैं:
- वैश्विक जलवायु कोष (जीसीएफ): भारत ने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन पर केंद्रित परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए जीसीएफ से धन प्राप्त किया है, जिसमें कमजोर समुदायों और क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक: इन बहुपक्षीय विकास बैंकों ने भारत में जलवायु-स्मार्ट ग्रामीण विकास परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण और तकनीकी सहायता प्रदान की है, जिसमें सतत कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा और आपदा जोखिम प्रबंधन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय भागीदारी: भारत ज्ञान साझा करने, संसाधन जुटाने और जलवायु परिवर्तन और गरीबी उन्मूलन पर संयुक्त पहलों को लागू करने के लिए विभिन्न देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, जैसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के साथ सहयोग करता है।
- नागरिक समाज और समुदाय-आधारित पहल: गैर-सरकारी संगठन, सामाजिक उद्यम और समुदाय-आधारित समूह भी जलवायु-गरीबी चुनौती से निपटने के लिए अभिनव, स्थानीय रूप से उपयुक्त समाधान विकसित करने और लागू करने में महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन भारत में गरीबी उन्मूलन और सतत विकास के लिए एक गंभीर खतरा है, जिसमें ग्रामीण गरीब विशेष रूप से असुरक्षित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवहार्य बनाने और समावेशी, जलवायु-स्मार्ट विकास को बढ़ावा देने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। इसके लिए सभी स्तरों पर विकास योजना और कार्यान्वयन में जलवायु अनुकूलन और शमन को एकीकृत करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ग्रामीण विकास में निवेश करने से कई सह-लाभ होते हैं – यह खाद्य और आजीविका सुरक्षा को बढ़ा सकता है, असमानता को कम कर सकता है, तथा सतत भूमि उपयोग पद्धतियों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान दे सकता है। ग्रामीण गरीबों को सहायता देने के लिए लक्षित हस्तक्षेप तथा तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए वैश्विक प्रयास, सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा सभी के लिए न्यायसंगत और समतापूर्ण भविष्य सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में उल्लिखित नीतिगत प्रतिक्रियाएँ और हस्तक्षेप भारत में जलवायु-गरीबी गठजोड़ को संबोधित करने के लिए एक रोडमैप प्रदान करते हैं। ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने, अभिनव समाधानों का लाभ उठाने और संसाधनों को जुटाने वाले एक समग्र, बहु-हितधारक दृष्टिकोण को अपनाकर, नीति निर्माता देश के ग्रामीण गरीबों के लिए अधिक लचीला और संधारणीय भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
(उद्यमिता विकास एवं वित्तीय समावेशन केंद्र (सीईडीएफआई), एनआईआरडीपीआर द्वारा भारतीय आर्थिक सेवा (आईईएस) – बैच 2024 के अधिकारी प्रशिक्षुओं (ओटी) के लिए ‘ग्रामीण विकास: मुद्दे, चुनौतियां, हस्तक्षेप और प्रभाव’ विषय पर 01 से 05 जुलाई 2024 तक एनआईआरडीपीआर, हैदराबाद में आयोजित 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में सुश्री पवित प्रतिभागी रही,)।
गरीबी मुक्त गांव ही मेरा सपना है: श्री शिवराज सिंह चौहान
माननीय ग्रामीण विकास तथा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने 13 अगस्त 2024 को राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान का दौरा किया
गरीबी मुक्त गांव मेरा सपना है, यह बात ग्रामीण विकास और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कही। मंत्री महोदय ने 13 अगस्त 2024 को राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान की 66वीं महा परिषद की बैठक में भाग लेने के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित किया।
इस अवसर पर श्री कमलेश पासवान, माननीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री, डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानी, माननीय ग्रामीण विकास एवं संचार राज्य मंत्री, श्री शैलेश कुमार सिंह, ग्रामीण विकास सचिव, डॉ. जी. नरेन्द्र कुमार, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर, सुश्री तनुजा ठाकुर खलखो, संयुक्त सचिव एवं वित्तीय सलाहकार, ग्रामीण विकास मंत्रालय, सुश्री कैरलिन खोंगवार देशमुख, अपर सचिव, एमओआरडी, प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित, कुलपति, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और प्रो. नूपुर तिवारी, प्रोफेसर, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान भी उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि “गांवों में कोई भी गरीब नहीं होना चाहिए और सभी को रोजगार मिलना चाहिए। महात्मा गांधी का सपना ग्राम स्वराज था; जब हम गांवों के विकास की बात करते हैं, तो आधारभूत संरचना का विकास सबसे आगे होता है। गांवों को उचित सड़क संपर्क, पीने योग्य पानी, मजबूत और विशाल स्कूल भवन, पंचायत भवन, स्वास्थ्य सुविधाएं आदि की आवश्यकता है। माननीय दिवंगत प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2000 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) शुरू की थी और इस परियोजना को हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़ाया है। जब ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास की चर्चा होती है, तो जल जीवन मिशन एक और योजना है जिसका उल्लेख करना ज़रूरी है।”
आजीविका योजना का जिक्र करते हुए माननीय मंत्री ने कहा कि भारत भर में महिलाओं को दिए जा रहे प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के कारण वे नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर रही हैं। उन्होंने कहा, “महिलाएं कई तरह की भूमिकाएं निभाकर देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हम गांवों में सभी आवश्यक सुविधाएं पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। मंत्रालय के विचार भंडार के रूप में एनआईआरडीपीआर द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के अलावा, अधिक क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण गतिविधियों की आवश्यकता है।”
श्री शिवराज सिंह चौहान ने एनआईआरडीपीआर में स्नातकोत्तर कार्यक्रम कर रहे छात्रों से ग्रामीण विकास के लिए काम करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में जेएनयू, नई दिल्ली और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए), नई दिल्ली के साथ पीएचडी कार्यक्रम के लिए दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। माननीय ग्रामीण विकास मंत्री ने ग्राम रोजगार सेवक (जीआरएस) के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी प्रारंभ किया।
बाद में, श्री शिवराज सिंह चौहान ने परिसर में स्थित ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क का दौरा किया और पीएमएवाई-जी मॉडल हाउस (डबल बेडरूम) का उद्घाटन किया। यह घर 409.5 वर्ग फीट में 4.04 लाख रुपये की लागत से बनाया गया था, जो 987 रुपये प्रति वर्ग फीट के हिसाब से है। घर का निर्माण ऐसी तकनीकों का उपयोग करके किया गया है जैसे कि नींव के लिए बेतरतीब मलबे का पत्थर, ईंट के स्तंभ और आरसीसी बीम, रासायनिक उपचारित बांस की पट्टियों का उपयोग करके बामक्रेट दीवार, शंक्वाकार टाइल की छत, फर्श के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध पत्थर और गाय के गोबर से बने पेंट से पेंटिंग।
माननीय मंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने आरटीपी में पौधे रोपे और पार्क में मिट्टी ब्लॉक बनाने वाली इकाई का भी दौरा किया।
एनआईआरडीपीआर ने मनाया भारत का 78वां स्वतंत्रता दिवस
राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान ने 15 अगस्त 2024 को देश का 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाया।
संस्थान परिसर में महात्मा गांधी ब्लॉक के सामने आयोजित समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर थे।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद संकायों, गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों, उनके परिवार के सदस्यों, प्रतिभागियों और छात्रों को शुभकामनाएं देते हुए महानिदेशक ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में एनआईआरडीपीआर द्वारा किए गए योगदान को याद किया।
“संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 से पता चलता है कि 2015-16 और 2019-21 के बीच 13.5 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल आए हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, पोषण, स्वच्छता, स्कूली कई वर्षों की स्कूलिंग और खाना पकाने के ईंधन तक पहुंच के मापदंडों में सुधार के दम पर पांच साल में उन्हें बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला गया। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में सबसे तेज गिरावट देखी गई, जो 32.59 प्रतिशत से 19.28 प्रतिशत हो गई। एनआईआरडीपीआर ने ग्रामीण भारत में जीवन की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में अपने अथक प्रयासों से इस कारण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, ”महानिदेशक ने कहा।
इस अवसर पर सुरक्षा दस्ते में कार्यरत गार्डों ने मार्च पास्ट किया। महानिदेशक ने प्रशासन एवं लेखा अनुभागों में कार्यरत वरिष्ठ अधिकारियों तथा संकाय सदस्यों के साथ मिलकर स्वतंत्रता दिवस समारोह के अंतर्गत आयोजित विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार वितरित किए।
फोटो गैलरी
ग्रामीण समुदायों के लिए उद्यमिता और सतत आजीविका मॉडलों पर टीओटी
एनआईआरडीपीआर की उद्यमिता विकास और वित्तीय समावेशन केंद्र (सीईडीएफआई) ने कौशल और नौकरियों के लिए नवाचार और उपयुक्त प्रौद्योगिकी केंद्र (सीआईएटीएंडएसजे) के सहयोग से 26 से 30 अगस्त 2024 तक प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण (टीओटी) का पांच दिवसीय कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विकास क्षेत्र में प्रशिक्षकों की क्षमता को बढ़ाना, ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता और स्थायी आजीविका मॉडल को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना था।
प्रशिक्षण में 13 राज्यों के 28 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम), प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के औपचारिकीकरण (पीएमएफएमई) योजना, लखपति दीदी, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), नागरिक समाज संगठन (सीएसओ), आकांक्षी ब्लॉक फेलो और सीएसआर लीड सहित विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारी शामिल थे।
5 दिवसीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण प्रतिभागियों के आधारभूत ज्ञान का आकलन करने के लिए एक पूर्व-प्रशिक्षण प्रश्नोत्तरी के साथ शुरू हुआ। इसके बाद समावेशी और सतत ग्रामीण उद्यम विकास पर एक व्यापक सत्र चलाया गया। इसका फोकस समावेशी पद्धतियों और सतत व्यापार मॉडल के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमशीलता के विकास को बढ़ावा देने पर था। प्रशिक्षण का उद्देश्य संसाधनों, बाजारों और प्रशिक्षण तक पहुंच सुनिश्चित करके महिलाओं, आदिवासी समूहों और विकलांग व्यक्तियों सहित सीमांत समुदायों के लिए अवसर पैदा करना था। इन सत्रों में विशेषज्ञ ज्ञान साझाकरण, परिचयात्मक दौरे, समूह गतिविधियां और चर्चाएं शामिल थे।
पहले दिन समावेशी और सतत ग्रामीण उद्यम विकास की अवधारणा पर गहन चर्चा की गई। इसमें स्थानीय कौशल का उपयोग करके, पर्यावरण अनुकूल पद्धतियों को एकीकृत करके और पारंपरिक शिल्प और कृषि में आधुनिक तकनीक को शामिल करके उद्यमशीलता के अवसरों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया। आधारभूत संरचना की सीमाओं और बाजार पहुंच की कमी जैसी चुनौतियों पर चर्चा की गई, साथ ही इन बाधाओं को दूर करने के तरीकों पर भी चर्चा की गई। प्रतिभागियों को समुदाय-आधारित उद्यम, सतत कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा समाधान जैसी संभावनाओं का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। दिन का मुख्य आकर्षण ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क (आरटीपी) का दौरा था, जहां एनआईआरडीपीआर के डॉ रमेश शक्तिवेल, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीएसआर और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप ने प्रतिभागियों को मधुमक्खी पालन, शहद प्रसंस्करण, बायोगैस उत्पाद और पर्यावरण-मैत्री शिल्प सहित विभिन्न तकनीकों और आजीविका मॉडल से परिचित कराया।
दूसरे दिन, ग्रामीण आजीविका परिदृश्यों में जेंडर मुख्यधारा पर चर्चा की गई, जिसमें मनरेगा पर विशेष ध्यान दिया गया। समूह चर्चा के माध्यम से, प्रतिभागियों ने महिला और पुरुष उद्यमियों के लिए चुनौतियों और अवसरों, सरकारी निकायों और सामुदायिक नेताओं की भूमिकाओं और निवेशकों से अपेक्षित समर्थन का पता लगाया। मनरेगा जैसे सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रमों और ग्रामीण आजीविका के लिए उनकी प्रासंगिकता का भी विश्लेषण किया गया। तेलंगाना के शादनगर में एक जलीय कृषि फार्म, विनिंग फिन्स के क्षेत्रीय दौरे ने प्रतिभागियों को जलीय कृषि और पशुधन, जैविक खेती और तालाब प्रबंधन को एकीकृत करने वाले एक संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र से अवगत कराया।
तीसरे दिन मूल्य श्रृंखला विश्लेषण, पैकेजिंग और भंडारण तकनीकों के साथ-साथ मशरूम की खेती और सुगंधित फसल की खेती जैसे ग्रामीण उद्यमिता के संभावित रास्ते पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रतिभागियों ने उत्पाद की सुरक्षा और विपणन क्षमता सुनिश्चित करने में पैकेजिंग के महत्व के बारे में सीखा। खराब होने या संदूषण से बचने के लिए उचित भंडारण की तकनीकों का प्रदर्शन किया गया। मशरूम की खेती को एक अत्यधिक लाभदायक उद्यम के रूप में खोजा गया जो अपने कम पूंजी निवेश और उच्च पोषण संबंधी मांग के कारण ग्रामीण उद्यमियों को सशक्त बना सकता है। पारंपरिक फसलों के विकल्प के रूप में सुगंधित फसलों की खेती पर चर्चा की गई, जिससे आवश्यक तेलों और अन्य उप-उत्पादों के लिए आकर्षक बाजार उपलब्ध होगा।
चौथे दिन ग्रामीण आजीविका और आय स्तर को बेहतर बनाने में मूल्य श्रृंखला हस्तक्षेपों के महत्व पर फिर से विचार किया गया। चर्चाओं में गरीबी उन्मूलन में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) द्वारा संचालित समुदाय-आधारित उद्यमों की भूमिका पर जोर दिया गया।
पांचवें दिन वाश (जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य) क्षेत्र में उद्यमशीलता के अवसरों पर चर्चा की गई। प्रतिभागियों ने समूह गतिविधियों में भाग लिया, वाश क्षेत्र के भीतर प्रमुख उद्यमशीलता के अवसरों की पहचान की। प्रशिक्षण का समापन एक समूह अभ्यास के साथ हुआ, जो ‘विकसित भारत’ को प्राप्त करने में ग्रामीण उद्यमों की भूमिका और क्षमता पर केंद्रित था। इस पारस्परिक सत्र से सक्रिय बातचीत उभरी, जिसमें प्रतिभागियों ने सवाल उठाए और ग्रामीण विकास का समर्थन करने के लिए अभिनव विचारों का प्रस्ताव दिया।
जैसे ही प्रशिक्षण समाप्त हुआ, प्रतिभागियों में गहरी सौहार्द की भावना थी। कई लोगों ने बताया कि प्रशिक्षण से न केवल उनका ज्ञान समृद्ध हुआ, बल्कि प्रोफेसरों और साथी प्रतिभागियों के साथ उनके स्थायी संबंध भी विकसित हुए है। प्रमाणपत्र वितरण समारोह में प्रशिक्षुओं ने परिवर्तनकारी अनुभव के लिए अपनी प्रशंसा साझा की, तथा इस अमूल्य सीख को स्वीकार किया कि वे अपने संबंधित क्षेत्रों में वापस ले जाएँगे।
5 दिवसीय प्रशिक्षण सत्र का संचालन सीईडीएफआई के डॉ पार्थ प्रतिम साहू तथा सीआईटीए एवं एसजे के डॉ रमेश शक्तिवेल ने संयुक्त रूप से किया, जिन्होंने अपने सत्रों को अत्यधिक आकर्षक तथा ज्ञानवर्धक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रशिक्षण ने प्रतिभागियों को प्रेरित किया तथा ग्रामीण उद्यम विकास में सार्थक परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक कौशल से सुसज्जित किया।
(नोट: यह रिपोर्ट प्रशिक्षण प्रतिभागियों सुश्री ग्रिशा माथुर तथा सुश्री मेघश्री मठपाल द्वारा डॉ पार्थ प्रतिम साहू के इनपुट से तैयार की गई है)
मालदीव गणराज्य के स्थानीय सरकारी प्राधिकरण के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण
पंचायती राज, विकेन्द्रीकृत योजना और सामाजिक सेवा वितरण केंद्र (सीपीआरडीपी और एसएसडी) ने 21 जुलाई से 3 अगस्त 2024 तक मालदीव गणराज्य के स्थानीय सरकार प्राधिकरण (एलजीए) के अधिकारियों के लिए भूमि उपयोग योजना, जीआईएस और शहरी विकास योजना पर एक अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया।
डॉ अंजन कुमार भँज, पाठ्यक्रम निदेशक, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीपीआरडीपी एवं एसएसडी, एनआईआरडीपीआर ने उद्घाटन भाषण प्रस्तुत किया। प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए उन्होंने उन्हें दो सप्ताह के प्रशिक्षण कार्यक्रम की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि एनआईआरडीपीआर ने मालदीव के एटोल परिषद के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सदस्यों के साथ-साथ महिला विकास समितियों के लिए पांच प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरे किए हैं। डॉ भंजा ने प्रतिनिधियों से ग्रामीण विकास के क्षेत्र में संगठन के कैनवास और इसके मुख्य कार्यात्मक पहलुओं की व्यापक समझ हासिल करने के लिए एनआईआरडीपीआर के अन्य केंद्रों का दौरा करने को कहा।
डॉ. पी. केशव राव, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीगार्ड, एनआईआरडीपीआर के सीजीएआरडी ने भू-संसूचना विज्ञान और भूमि उपयोग एवं शहरी नियोजन के लिए भारतीय उपग्रह कार्यक्रम पर संक्षिप्त जानकारी दी। डॉ. मरियम जुल्फा, स्थानीय सरकार प्राधिकरण की मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने विशेष भाषण में एकीकृत शहरी विकास के महत्व तथा सतत योजना में स्थानीय सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया गया। इसके बाद एनआईआरडीपीआर के महानिदेशक डॉ. जी नरेंद्र कुमार, आईएएस ने मुख्य भाषण प्रस्तुत किया, जिन्होंने अत्याधुनिक तकनीकों के साथ भूमि उपयोग नियोजन के संयोजन के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण को रेखांकित किया।
कार्यक्रम के व्यापक और विशिष्ट उद्देश्यों, प्रतिभागियों की अवधि और अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए, व्याख्यान और पारस्परिक सत्र, वीडियो क्लिप, लघु फिल्में और चर्चाएं, पुनर्कथन सत्र और क्यूजीआईएस सॉफ्टवेयर और अनुप्रयोगों पर व्यावहारिक अभ्यास जैसी पद्धतियों का उपयोग किया गया।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया, जैसे भूमि उपयोग नियोजन और शहरी नियोजन के लिए भू-संसूचना विज्ञान और भारतीय उपग्रह कार्यक्रम, भूमि उपयोग नियोजन और शहरी एवं अवसंरचना नियोजन सहित रिमोट सेंसिंग के अनुप्रयोग, भूमि उपयोग नियोजन और शहरी एवं अवसंरचना नियोजन में जीआईएस और इसके अनुप्रयोग, भूमि उपयोग नियोजन के लिए इसरो-भुवन भू-पोर्टल पर प्रदर्शन, गांवों की आबादी के सर्वेक्षण के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग और ग्राम क्षेत्र में सुधारित प्रौद्योगिकी के साथ मानचित्रण (स्वामित्व), अवसंरचना नियोजन के लिए शहरी क्षेत्रों में 2डी/3डी मानचित्रण के लिए हवाई सर्वेक्षण और डिजिटल इलाके मॉडल (डीटीएम), शहरी एवं अवसंरचना नियोजन के लिए जीआईएस और उच्च रिज़ॉल्यूशन उपग्रह डेटा का उपयोग- अमृत और स्मार्ट सिटी कार्यक्रम सहित भारत की अच्छी पद्धतियां, एलयूपी और यूपी में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस)/जीएनएसएस सिद्धांत, अवधारणाएँ और अनुप्रयोग, भारत में प्रणालियों का संदर्भ, शहरी स्थानीय निकायों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सर्वोत्तम अभ्यास, मालदीव के साथ क्यूजीआईएस पर व्यावहारिक अनुभव, शहरी प्रबंधन – सेवा वितरण और शहरी वित्त में चुनौतियां – संसाधनों और शहरी प्रबंधन और नागरिक भागीदारी का अनुकूलन, मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग योजना के लिए रिमोट सेंसिंग और जीआईएस की भूमिका, शहरी स्थानीय निकायों के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोगों पर प्रदर्शन (xxii) ग्रामीण परिवर्तन और स्थानिक योजना और मॉडल अधिनियम का निर्माण और आपदा प्रबंधन के लिए रिमोट सेंसिंग और जीआईएस की भूमिका।
भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्द्र (आईएनसीओआईएस), भारतीय संसाधन सूचना एवं प्रबंधन प्रौद्योगिकी लिमिटेड (आईएन-आरआईएमटी) तथा विश्वेश्वरैया औद्योगिक एवं प्रौद्योगिकी संग्रहालय के लिए भी दौरे आयोजित किए गए।
कार्यक्रम में मालदीव गणराज्य के महानिदेशक, निदेशक, वरिष्ठ परिषद कार्यकारी, परिषद कार्यकारी, सहायक परिषद कार्यकारी, योजना अधिकारी, वरिष्ठ परिषद अधिकारी, सहायक परिषद अधिकारी, सहायक वास्तुकार और सहायक कंप्यूटर तकनीशियन सहित स्थानीय सरकार प्राधिकरण अधिकारियों की विभिन्न परिषदों के कुल 30 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
स्त्रोत व्यक्तियों में सीपीआरडीपी और एसएसडी, सीजीएआरडी और एनआईआरडीपीआर के आंतरिक संकाय सदस्य और विषय विशेषज्ञ सह व्यवसायी के रूप में चयनित अतिथि संकाय शामिल थे, जिनके पास जीआईएस और भूमि उपयोग योजना, शहरी विकास योजना, ड्रोन प्रौद्योगिकी, रिमोट सेंसिंग, हवाई सर्वेक्षण और डिजिटल इलाके मॉडल आदि के क्षेत्रों में समृद्ध अनुभव और विशेषज्ञता है।
कार्यक्रम के भाग के रूप में प्रतिभागियों ने कर्नाटक के राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग योजना ब्यूरो का भी दौरा किया। यह ब्यूरो भारत के विभिन्न क्षेत्रों से मिट्टी एकत्र करता है, अनुसंधान करता है, तथा सतत विकास और कृषि को समर्थन देने के लिए मिट्टी और भूमि संसाधनों पर वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करता है।
कर्नाटक राज्य रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर, जो रिमोट सेंसिंग और जीआईएस का उपयोग करने में विशिष्टता लिए हुए है, में प्रतिभागियों ने रिमोट सेंसिंग की मूल बातें, उपग्रह इमेजरी का उपयोग कैसे किया जाता है, और जीआईएस के अनुप्रयोगों के बारे में सीखा। वैज्ञानिकों ने प्रतिभागियों को शहरी और स्थानीय निकायों के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग का प्रदर्शन किया।
उन्होंने कर्नाटक राज्य प्राकृतिक आपदा निगरानी केंद्र (केएसएनडीएमसी) का भी दौरा किया, जहां कर्मचारियों ने डेटा संग्रह और विश्लेषण, मौसम निगरानी प्रणाली, सेंसर और बाढ़ पूर्वानुमान उपकरणों के लिए प्रौद्योगिकी और उपकरणों का प्रदर्शन किया। प्रतिभागियों ने सीखा कि डेटा कैसे एकत्र, संसाधित और प्रसारित किया जाता है, और पूर्वानुमान मॉडल और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के बारे में भी जानकारी हासिल की। इस दौरे ने राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन को कैसे लागू किया जाता है और आपदा के प्रभावों को कम करने में प्रौद्योगिकी और समन्वय की भूमिका के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की।
प्रशिक्षण कार्यक्रम ने प्रतिभागियों की भू-संसूचना विज्ञान, भारतीय उपग्रह कार्यक्रम और भूमि उपयोग नियोजन, शहरी नियोजन और आपदा प्रबंधन के लिए रिमोट सेंसिंग अनुप्रयोगों की समझ को बढ़ाया। इसने महासागर सूचना सेवाओं और उनके अनुप्रयोगों के बारे में उनकी जागरूकता बढ़ाई और उन्हें भारत की सांस्कृतिक विरासत और शहरी एवं ग्रामीण विकास में इसकी प्रासंगिकता से अवगत कराया। इसने उन्हें शहरी विकास सुविधाओं, नवीन ग्रामीण प्रौद्योगिकी, जीआईएस-आधारित भूमि उपयोग नियोजन; क्यूजीआईएस सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों, शहरी प्रबंधन और सेवा वितरण, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन, मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन, शहरी स्थानीय निकायों के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों और नियोजन और आपदा प्रबंधन में ड्रोन और स्मार्ट प्रौद्योगिकियों की समझ प्रदान की।
प्रतिभागियों से प्राप्त फीडबैक के अनुसार, कार्यक्रम सफल रहा। सभी प्रतिभागियों ने महसूस किया कि कार्यक्रम व्यवस्थित तरीके से आयोजित किया गया था। इसके अलावा, उन्होंने महसूस किया कि शांत प्रशिक्षण माहौल, स्वच्छ और स्वास्थ्यकर परिवेश और आधारभूत संरचनाओं ने इसकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
https://swachhbharatmission.ddws.gov.in/swachhata-samachar
डॉ. वानिश्री जोसेफ
सहायक प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीजीएसडी
महान कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण और उनके प्रतिष्ठित ‘आम आदमी’ से प्रेरित होकर, एनआईआरडीपीआर के जेंडर अध्ययन केंद्र प्रगति समाचारपत्र के “जेंडर कैलिडोस्कोप” खंड में ‘आम महिला’ को पेश करते हुए खुशी महसूस कर रही है। यह नया चरित्र ग्रामीण भारत में महिलाओं की भावना, संघर्ष और ताकत को दर्शाता हुआ, हर दिन के भारतीय महिला का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी गहरी टिप्पणियों और तीक्ष्ण बुद्धि के साथ, कॉमन वुमन जेंडर गतिशीलता, सामाजिक मानदंडों और महिला सशक्तिकरण की जटिलताओं को जीवंत करेगी।
जिस तरह ‘आम आदमी’ समाज की विचित्रताओं का मूक पर्यवेक्षक होता है, उसी तरह ‘आम महिला’ उन महिलाओं की आवाज़ बनती है जो कई भूमिकाएँ निभाती हैं — घर, कार्यस्थल, सामाजिक अपेक्षाएँ और उनकी आकांक्षाएँ संभालना। एक साधारण साड़ी पहने, गोल चश्मा पहने और एक मामूली बैग लेकर, वह हमारे सेगमेंट में महिलाओं की रोज़मर्रा की चुनौतियों पर प्रकाश डालती है, सभी में हास्य और विडंबना का तड़का है।
समाचार पत्र के हर संस्करण में ‘आम महिला’ नियमित रूप से नहीं दिखाई देगी, लेकिन जब वह दिखाई देगी, तो वह आर्थिक स्वतंत्रता, जेंडर पूर्वाग्रह, अदृश्य श्रम, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य मुद्दों पर एक ताज़ा, मजाकिया दृष्टिकोण प्रदान करेगी। उनकी हास्यपूर्ण टिप्पणी का उद्देश्य हमारे पाठकों को आकर्षित करना है, साथ ही उन्हें महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाले मानदंडों और संरचनाओं पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
उनकी कहानियों के माध्यम से, हम बातचीत को बढ़ावा देने और जेंडर समानता की दिशा में कार्रवाई को प्रेरित करने की उम्मीद करते हैं। ‘कॉमन वुमन’ हमें सोचने, हंसने और सवाल करने पर मजबूर करती है – एक समय में एक चतुर अवलोकन।
प्रगति के ‘जेंडर कैलिडोस्कोप’ खंड में उनकी उपस्थिति पर नज़र रखें और हर जगह महिलाओं की ताकत और व्यवहार्यता का जश्न मनाने में हमारे साथ शामिल हों!
यूबीए सामुदायिक प्रगति रिपोर्ट
उन्नत भारत अभियान पर समीक्षा बैठक
उन्नत भारत अभियान (यूबीए) शिक्षा मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यक्रम है। एनआईआरडीपीआर का ग्रामीण अवसंरचना केंद्र (सीआरआई) उन्नत भारत अभियान के तहत एक क्षेत्रीय समन्वय संस्थान (आरसीआई) है।
30 जुलाई 2024 को एनआईआरडीपीआर परिसर में सभी भाग लेने वाले संस्थानों (पीआई) के साथ एक समीक्षा बैठक आयोजित की गई और एनआईआरडीपीआर के तहत काम करने वाले भाग लेने वाले संस्थानों ने यूबीए के तहत अपनी गतिविधियों को प्रस्तुत किया।
भाग लेने वाले संस्थानों में से एक, विष्णु इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (वीआईपीईआर), नरसापुर, मेदक जिले ने मेदक जिले के अपने अभिग्रहित पांच गांवों, अर्थात् अवांचा, चेन्नापुर इब्राहिमबाद, मूसापेट और रुस्तमपेट पर एक प्रस्तुति दी।
वीआईपीईआर की यूबीए टीम ने भागीदारीपूर्ण ग्रामीण मूल्यांकन किया। पीआरए ने बहुत ही अनौपचारिक तरीके से उन्नत भारत अभियान के उद्देश्य को समझाकर शुरुआत की, और उसके बाद ग्रामीणों के साथ खुलकर चर्चा की। ग्रामीणों ने कई मुद्दों पर प्रकाश डाला, जैसे कि बच्चों में कुपोषण, अवंचा गांव में परिवहन की कमी, आस-पास के उद्योगों के कारण पीने के पानी में संभावित रासायनिक संदूषण और पीने के लिए असुरक्षित पानी पर निर्भरता के कारण स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ, अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ, खेती और आजीविका में समस्याएँ, स्कूलों में शौचालय या सुरक्षित पेयजल न होना आदि।
समस्याओं के संभावित समाधानों पर विचार-विमर्श सत्र आयोजित किया गया और इस बात पर भी चर्चा की गई कि यदि ग्रामीण अपने द्वारा उठाए गए मुद्दों को हल करने के लिए पहल करने के लिए तैयार हों तो वीआईपीईआर किस प्रकार उनकी सहायता कर सकता है। संस्था ने समस्याओं की पहचान की और संभावित समाधानों पर चर्चा की, जो अंततः सभी पांच गांवों में जागरूकता कार्यक्रम बन गए। इब्राहिमबाद और चेन्नापुर गांवों में ग्राम सभा की बैठकें आयोजित की गईं और यूबीए टीम ने अवंचा और रुस्तमपेट के सरपंचों के साथ बैठकें कीं।
शिनाख्त समस्याओं के साथ, अभिग्रहित गांवों में निम्नलिखित कार्यक्रम/गतिविधियाँ आयोजित की गईं।
- श्री सीता राम राव, जिला ग्रामीण विकास अधिकारी, मेदक के सहयोग से वैकल्पिक फसलों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।
- आईसीएआर के सहयोग से ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचारों में हालिया प्रगति’ पर एक कार्यशाला आयोजित की गई।
- अभिग्रहित गांवों में स्पिरुलिना की खेती और फोर्टिफिकेशन के साथ सशक्तीकरण और कुपोषण का उन्मूलन।
यूबीए टीम ने अपोलो अस्पताल के साथ मिलकर एक निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया। सेवा गांवों में रोग जागरूकता कार्यक्रम, रोगी परामर्श सत्र और कैंसर जागरूकता और जांच शिविर आयोजित किए गए।
आईआईटी दिल्ली द्वारा दिए जाने वाले बारहमासी सहायता पुरस्कार के तहत, संस्थान चेन्नापुर गांव में स्कूल बेंच दान कर सकता है और इब्राहिमबाद गांव में एक वाटर प्यूरीफायर स्थापित कर सकता है, जिससे छात्रों की भूख और ज्ञान तथा विकास की उनकी खोज को ज्ञान केंद्र के माध्यम से वैज्ञानिक प्रयोगों के माध्यम से संतुष्ट किया जा सकता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ कंटेंट निर्माण में महारत हासिल करने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान के विकास प्रलेखन एवं संचार केंद्र (सीडीसी) ने 27-29 अगस्त 2024 तक संस्थान के हैदराबाद परिसर में ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ के साथ सामग्री निर्माण में महारत हासिल करना’ पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में करीब 40 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्देश्य सरकारी और निजी संगठनों, एनजीओ, स्वयं सहायता समूहों और छोटे पैमाने के उद्यमियों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके सामग्री निर्माण में नवीनतम रुझानों से परिचित कराना था।
डॉ. ज्योतिस सत्यपालन, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीडीसी और पाठ्यक्रम निदेशक ने एस.के. राव हॉल में आयोजित उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि, स्त्रोत व्यक्तियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया।
श्री जेआरके राव, आईएएस (सेवानिवृत्त), राष्ट्रीय स्मार्ट शासन संस्थान के पूर्व सीईओ, उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे। उद्घाटन भाषण प्रस्तुत करते हुए, श्री जेआरके राव ने कहा कि कई स्टार्ट-अप असफल हो जाते हैं क्योंकि युवा उचित व्यवसाय मॉडल विकसित करने के बजाय प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
उन्होंने एआई की शुरूआत और मशीन लर्निंग पर 2017 में प्रकाशित शोध पत्र ‘अटेंशन इज ऑल यू नीड’ के बारे में भी बात की, जिसके कारण अंततः जीपीटी का विकास हुआ। उन्होंने प्रतिभागियों से स्टुअर्ट रसेल और पीटर नॉरविग की कृत्रिम बुद्धिमत्ता : एक आधुनिक दृष्टिकोण’ और माइकल गेल्ब की ‘हाउ टू थिंक लाइक लियोनार्डो दा विंची’ के किताबें पढ़ने को कहा।
“एआई को डेटा पर प्रशिक्षित किया गया है, और इसलिए इसके साथ पूर्वाग्रह भी जुड़े हैं।” श्री जेआरके राव ने कहा कि हर उपकरण के अपने फायदे और नुकसान होते हैं।
श्री सुनील प्रभाकर, सलाहकार, मातृभूमि ऑनलाइन ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जनरेटिव एआई, एलएलएमएस आदि की अवधारणाओं को समझाते हुए ‘कंटेंट क्रिएशन के फंडामेंटल’ और ‘कंटेंट क्रिएशन में एआई का परिचय’ पर तकनीकी सत्र की शुरुआत की।
दोपहर के भोजन के बाद, सुश्री अंजली चंद्रन, इम्प्रेसा की संस्थापक ने सामाजिक प्रभाव उद्यमिता: बदलाव लाना विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि महिलाएं किस तरह से सकारात्मक सामाजिक प्रभाव वाले व्यवसाय शुरू कर सकती हैं, जैसे कि गैर-लाभकारी, सामाजिक उद्यम और मजबूत सामुदायिक फोकस वाले व्यवसाय। उन्होंने यह भी चर्चा की कि सामाजिक मुद्दों की पहचान कैसे करें और ऐसे व्यवसाय मॉडल बनाएं जो आर्थिक रूप से स्थायी होने के साथ-साथ उनका समाधान भी करें, उन्होंने सफल सामाजिक प्रभाव उद्यमियों और उनकी यात्राओं के उदाहरणों पर प्रकाश डाला। इसके अलावा, प्रतिभागियों ने परिसर में स्थित ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क का दौरा किया।
दूसरे दिन, डॉ. पार्थ प्रतिम साहू, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीईडीएफआई, एनआईआरडीपीआर ने ‘ग्रामीण उद्यमिता: नीतियां, कार्यक्रम और हस्तक्षेप’ पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। डॉ साहू ने उद्यमशील उपक्रम, बैंक योग्य व्यावसायिक प्रस्ताव, वित्त के स्रोत, विभागों और मंत्रालयों की योजनाएं/कार्यक्रम, योजना-प्रेरित उद्यमों की प्रगति आदि जैसे विषयों पर बात की।
श्री सुनील प्रभाकर ने एनएलपी (नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग) में जेनरेटिव एआई और मल्टीमीडिया में जेनरेटिव एआई पर दो सत्र लिए। उन्होंने दिखाया कि चैट जीपीटी, लियोनार्डो और क्लिंग जैसे एआई टूल्स का उपयोग करके चित्र और वीडियो कैसे बनाएं। दोपहर के भोजन के बाद, प्रतिभागी स्थानीय दौरे पर गए।
अंतिम दिन, सुश्री अंजली चंद्रन ने ‘उद्यमी सफलता के लिए सोशल मीडिया टूल्स का लाभ उठाना’ पर एक व्याख्यान के साथ तकनीकी सत्र शुरू किया। उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, सोशल मीडिया और अन्य टूल्स सहित अपने व्यवसायों को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे करें। तकनीकी रुझानों के साथ अपडेट रहने और अभिनव समाधानों को अपनाने के महत्व पर प्रकाश डालें।
इसके बाद श्री सुनील प्रभाकर ने दो सत्र आयोजित किए – ‘वर्तमान एआई जनरेटिव टूल्स’ और ‘जनरेटिव एआई की नैतिकता और भविष्य’। उन्होंने मोबाइल फोन का उपयोग करके उत्पाद फोटोग्राफी, कागज और क्लिप का उपयोग करके घर पर स्टूडियो स्थापित करना और कैनवा जैसे एआई उपकरणों का उपयोग करके सोशल मीडिया पोस्टर बनाना प्रदर्शित किया।
डॉ एम.वी. रविबाबू, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीआईसीटी ने दोपहर के भोजन के बाद ‘आरडी एंड पीआर में एआई’ पर सत्र का नेतृत्व किया। उन्होंने ग्रामीण विकास क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न एआई उपकरणों के साथ-साथ एनआईआरडीपीआर में आरडी एंड पीआर में एआई पर उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए की गई गतिविधियों के बारे में बताया।
डॉ. ज्योतिस सत्यपालन ने समापन सत्र को संबोधित किया और प्रतिभागियों से प्रतिक्रिया मांगी। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम ने उनके सामने एआई टूल्स का पता लगाने के लिए कई विकल्प खोले हैं, जिससे उनका दिन-प्रतिदिन का काम आसान हो सके। विषयों के चयन, पाठ्यक्रम सामग्री और स्त्रोत व्यक्तियों द्वारा वितरण के तरीके पर अत्यधिक संतुष्टि व्यक्त करते हुए, वे भविष्य के कार्यक्रमों में और अधिक व्यावहारिक सत्र और अधिक दिनों के लिए कार्यक्रम का विस्तार चाहते थे।
डॉ. ज्योतिस सत्यपालन, डॉ. एम.वी. रविबाबू, श्री सुनील प्रभाकर और सुश्री अंजलि चंद्रन ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए। पाठ्यक्रम निदेशक के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। श्री कृष्ण राज के.एस., सहायक संपादक, सीडीसी ने श्री वेणुगोपाल भट, कलाकार; डॉ. उमेश एम.एल, सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष, श्री एस.ए. हुसैन, वरिष्ठ सहायक, और श्री हरिलाल, एमटीएस की सहायता से कार्यक्रम का संयोजन किया।
ग्रामीण विकास और पंचायती राज कार्यक्रमों की योजना और प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
ग्रामीण विकास क्षेत्र में सीएसआर परियोजनाएं प्रभावी मॉडल निर्माण को बढ़ावा देने, सरकारी योजनाओं के साथ तालमेल बिठाने और परियोजनाओं, लाभार्थियों और स्थानों को चुनने में व्यवहार्यता की अपनी क्षमता के कारण महत्व प्राप्त कर रही हैं। हालांकि, सीएसआर परियोजनाएं, जो अल्पकालिक परियोजनाओं और बुनियादी ढांचे के निर्माण पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं, को अधिक प्रभावी परियोजनाओं को लागू करने के लिए बेहतर बनाया जा सकता है जो लाभार्थियों की मदद करती हैं और लोगों के लिए स्थायी लाभ पैदा करती हैं। अच्छी तरह से विकसित सीएसआर परियोजनाओं से प्राप्त सबक को देश में सीएसआर परियोजनाओं के कार्यान्वयन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए सफलतापूर्वक बढ़ाया जा सकता है। इसी तर्ज पर, 22 से 26 जुलाई 2024 तक राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान, हैदराबाद में ग्रामीण विकास और पंचायती राज कार्यक्रमों की योजना और प्रबंधन पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रशिक्षण में नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ), गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पहलों और परोपकारी संस्थानों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ सरकार के हस्तक्षेप और उनके संरेखण पर जोर दिया गया।
सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से जमीनी हकीकत को समझने में सहभागी ग्रामीण मूल्यांकन (पीआरए) और इसकी भूमिका पर जोर दिया गया। निर्णय लेने में स्थानीय आबादी को शामिल करके, सीएसआर पहल नकारात्मक धारणाओं को सकारात्मक परिणामों में बदल सकती है। सरकार और सीएसआर के बीच प्रभावी अभिसरण नवाचार, बेहतर संसाधन उपयोग, लागत में कमी और बेहतर सार्वजनिक सेवा वितरण की ओर ले जा सकता है। ऐसी भागीदारी के लाभों में कम लागत, जोखिम शमन और राजस्व में वृद्धि शामिल है, ऐसी साझेदारियों के लाभों में लागत में कमी, जोखिम में कमी, तथा राजस्व में वृद्धि शामिल है, साथ ही सीएसआर परियोजनाओं के लिए स्थानीय बाजार संपर्क स्थापित करने वाले विक्रेताओं के रूप में समुदाय को शामिल करने के अवसर भी उपलब्ध होते हैं।
सीएसआर पहलों पर शोध करने और डेटा संग्रह तथा विश्लेषण के महत्व को उजागर करने की आवश्यकता है। एकत्र किए गए प्राथमिक और द्वितीयक डेटा एक दूसरे के पूरक होने चाहिए, परिणामों को अच्छी तरह से प्रलेखित किया जाना चाहिए और हितधारकों को प्रसारित किया जाना चाहिए। परियोजनाओं को दीर्घकालिक स्थिरता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुकूल हैं। सीएसआर पहलों में कृषि में प्रमुख विकास चुनौतियों, जैसे कि विविधीकरण, उत्पादकता में सुधार और प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रबंधन को संबोधित करने की क्षमता है।
ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 क्षेत्रों में अपने व्यापक दायरे के साथ, पंचायती राज प्रणाली सीएसआर परियोजनाओं के साथ अभिसरण के लिए विशाल अवसर प्रदान करती है। प्रशिक्षण में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) की क्षमता का पता लगाया गया। इसके अतिरिक्त, प्रशिक्षण में सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के स्थानीयकरण पर जोर दिया गया, उन्हें नौ स्थानीयकृत सतत विकास लक्ष्यों (एलएसडीजी) के साथ संरेखित किया गया और विषयगत विकास को बढ़ावा देने के लिए उन्हें जीपीडीपी के साथ एकीकृत किया गया।
भागीदारी ग्रामीण मूल्यांकन (पीआरए) और तार्किक रूपरेखा विश्लेषण (एलएफए) जैसे प्रमुख उपकरणों को परियोजनाओं के डिजाइन, प्रबंधन और मूल्यांकन में उनकी भूमिका के लिए उजागर किया गया। एलएफए, विशेष रूप से, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक परियोजना तत्व का व्यवस्थित रूप से विश्लेषण किया जाए, जिससे चुनौतियों और समाधानों की पहचान करना आसान हो जाता है। निर्णय लेने में स्थानीय हितधारकों को शामिल करने का बाटम-अप दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि परियोजनाएँ व्यापक, समावेशी और प्रभावी हों। जेंडर समानता पर भी एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में चर्चा की गई, जिसमें पुरुषों और महिलाओं के लिए संसाधनों तक पहुँच और अवसरों के बीच के अंतर को कम करने पर जोर दिया गया।
ग्रामीण विकास में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए सामाजिक लेखापरीक्षा को एक आवश्यक घटक के रूप में महत्व दिया गया। समुदाय सामाजिक लेखापरीक्षकों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और समुदाय-संचालित लेखापरीक्षा के माध्यम से सीएसआर निधियों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। सामाजिक लेखापरीक्षा न केवल मुद्दों को जल्दी पहचानने में मदद करती है बल्कि भविष्य की परियोजनाओं के लिए मूल्यवान मामला अध्ययन और सबक भी प्रदान करती है। निगरानी और मूल्यांकन सुनिश्चित करता है कि प्रगति को व्यवस्थित रूप से ट्रैक किया जाता है और संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाता है, जो दीर्घकालिक परियोजना की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रशिक्षण में सीएसआर कार्यों और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के बीच तालमेल का पता लगाया गया। एनआरएलएम के सिद्धांतों और सीएसआर परियोजनाओं के बीच संरेखण जमीनी स्तर पर आजीविका में सुधार के अवसर प्रदान करता है। गांव स्तर पर सरकारी योजनाएं सीएसआर पहलों के लिए विशिष्ट समुदायों को लक्षित करने के लिए मार्ग प्रदान करती हैं, जबकि सरकारी ढांचे और उपकरण लोक-केंद्रित परियोजनाओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। सीएसआर और सरकार के बीच साझेदारी संसाधनों के बेहतर रणनीतिक प्रबंधन को सुनिश्चित कर सकती है, जिसमें सीएसआर छोटी-छोटी बारीकियों को संभालता है और सरकार दीर्घकालिक सहायता प्रदान करती है। इसके अलावा, चर्चाओं ने सीएसआर परियोजनाओं के लिए बाजार संबंधों, क्षमता निर्माण और सामुदायिक जुड़ाव के महत्व को रेखांकित किया है। कॉर्पोरेट उपहार को एक नई अवधारणा के रूप में पेश किया गया, जहां सीएसआर पहल संसाधनों, बुनियादी ढांचे, कौशल और कुशल निकास रणनीतियों के माध्यम से सामुदायिक विकास की सुविधा प्रदान करती है।
(प्रतिभागी, श्री शुभम कुमार, मुख्य खाता प्रबंधक, एचडीएफसी परिवर्तन – गरीबी उन्मूलन, गुड़गांव द्वारा डॉ रमेश शक्तिवेल के मार्गदर्शन में रिपोर्ट तैयार की गई है।)
नया कॉलम : एनआरएलएम मामला अध्ययन श्रृंखला
ग्रामीण परिवर्तन एजेंटों को सशक्त बनाना: पश्चिम बंगाल एसआरएलएम का अनुभव
श्री आशुतोष धामी, युवा व्यवसायी, एनआरएलएमआरसी, एनआईआरडीपीआर
श्री रवि नायडू, मिशन कार्यकारी, एनआरएलएमआरसी, एनआईआरडीपीआर
श्री के. वेंकटेश्वर राव, मिशन प्रबंधक, एनआरएलएमआरसी, एनआईआरडीपीआर
परिचय
दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य समुदाय संचालित विकास के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं की आजीविका में सुधार करना है। यह पहल स्वरोजगार को बढ़ावा देती है और ग्रामीण गरीबों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित करती है। एनआईआरडीपीआर का राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन संसाधन सेल (एनआरएलएमआरसी) रणनीतिक समर्थन और क्षमता निर्माण पहल प्रदान करके इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विकसित करने और लागू करने, कार्यशालाओं की सुविधा प्रदान करने और यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि प्रशिक्षक और स्त्रोत व्यक्ति मिशन के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित हैं।
यह लेख पश्चिम बंगाल एसआरएलएम के साथ सूचीबद्ध राज्य और जिला संसाधन पूल की ग्रेडिंग और प्रशिक्षण से संबंधित पश्चिम बंगाल में हाल की गतिविधियों पर प्रकाश डालता है। पश्चिम बंगाल में कार्यान्वित व्यापक प्रशिक्षण और ग्रेडिंग प्रणाली का उद्देश्य इन संसाधन पूलों के कौशल और प्रभावशीलता को बढ़ाना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे डीएवाई-एनआरएलएम की समुदाय-केंद्रित पहलों की सफलता को प्रभावी ढंग से समर्थन और बढ़ावा दे सकें।
पृष्ठभूमि
एनआरएलएम संसाधन सेल (एनआरएलएमआरसी) राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डीएवाई-एनआरएलएम पहल को तैयार करने की आवश्यकता को समझता है। इसे ध्यान में रखते हुए, एनआरएलएमआरसी ने क्षेत्रीय चुनौतियों और अवसरों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए राज्य-स्तरीय अनुकूलन को प्राथमिकता दी है। पश्चिम बंगाल में आनंदधारा के रूप में जाने जाने वाले राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम) ने अपने जिला स्तरीय प्रशिक्षकों (डीएलटी) की क्षमताओं का मूल्यांकन करने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए एक योजना शुरू की है, जो राज्य में डीएवाई-एनआरएलएम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण है। इस पहल में वर्तमान दक्षताओं का गहन मूल्यांकन, लक्षित प्रशिक्षण मॉड्यूल का विकास, तथा डीएलटी को अपनी भूमिकाएं अधिक प्रभावी ढंग से निभाने के लिए आवश्यक उपकरण और ज्ञान से लैस करने हेतु एक संरचित प्रशिक्षण कार्यक्रम का क्रियान्वयन शामिल था। इन संवर्द्धनों पर ध्यान केंद्रित करके, कार्यक्रम यह सुनिश्चित करना चाहता है कि डीएलटी डीएवाई-एनआरएलएम के व्यापक लक्ष्यों में योगदान करने के लिए अच्छी तरह से तैयार हो, ताकि पश्चिम बंगाल में मिशन के समग्र प्रभाव को मजबूत किया जा सके।
क्रियाविधि
जिला स्तरीय प्रशिक्षकों (कुछ राज्यों में, उन्हें जिला स्त्रोत व्यक्ति (डीआरपी) के रूप में भी जाना जाता है) की क्षमताओं को बढ़ाने की कार्यप्रणाली में जरूरतों का आकलन, प्रशिक्षण डिजाइन और निष्पादन को शामिल करते हुए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण शामिल था।
फरवरी 2024 में, एनआरएलएम संसाधन सेल (आरसी) की आईबीसीबी टीम द्वारा आयोजित एक परामर्श कार्यशाला ने आनंदधारा की विशिष्ट आवश्यकताओं का मूल्यांकन किया। इस मूल्यांकन ने डीएलटी में विकास के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की। इसके बाद, मार्च से अप्रैल 2024 तक, इन जरूरतों को समेकित किया और एक केंद्रित प्रशिक्षण योजना बनाने के लिए प्राथमिकता दी गई।
मई 2024 में, 625 डीएलटी के ग्रेडिंग के उन्मुखीकरण और मूल्यांकन के लिए एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने के लिए एक कार्यशाला आयोजित की गई थी। इस कार्यक्रम में छह दिवसीय प्रशिक्षण मॉड्यूल शामिल था जिसे तीन खंडों में विभाजित किया गया था: दो दिन सहभागी प्रशिक्षण पद्धतियों (पीटीएम) को समर्पित थे, जिसमें सीखने के चक्र पर प्रशिक्षण, प्रतिभागियों के ज्ञान के आधार पर सत्र योजना तैयार करना और सत्रों को और अधिक आकर्षक कैसे बनाया जाए शामिल थे, पश्चिम बंगाल के संदर्भ में डीएवाई-एनआरएलएम घटकों पर प्रतिभागियों के डीएवाई-एनआरएलएम उन्मुखीकरण के लिए दो दिन और डीएलटी मूल्यांकन के लिए दो दिन। प्रशिक्षण पाठ्यक्रम सामग्री अंग्रेजी और बंगाली में विकसित की गई थी, और कार्यक्रम को 24 बैचों में आयोजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक में 25 प्रतिभागी थे और 50 एनआरपी शामिल थे।
22 मई, 2024 से 23 जुलाई, 2024 तक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया, जिसमें सहभागी प्रशिक्षण पद्धतियाँ, संस्थागत निर्माण, सामाजिक समावेशन, वित्तीय समावेशन और आजीविका जैसे विषयों को शामिल किया गया। प्रशिक्षण में व्यावहारिक मूल्यांकन, जैसे मॉक असेसमेंट और समूह प्रस्तुतियाँ शामिल थीं, जिसका समापन डीएलटी को ग्रेड देने के लिए लिखित परीक्षा में हुआ।
एनआईआरडीपीआर और एनआरएलएम आरसी द्वारा आयोजित छह दिवसीय प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण (टीओटी) सह मूल्यांकन कार्यक्रम का लक्ष्य कई उद्देश्यों को प्राप्त करना था: डीएवाई-एनआरएलएम पहलुओं पर फिर से विचार करना, विषयगत क्षेत्रों का अवलोकन प्रदान करना, पीटीएम के ज्ञान और जागरूकता को बढ़ाना और डीएलटी का आकलन करना। सत्रों में गरीबी और सामाजिक लामबंदी, पीटीएम का दर्शन, समूह प्रक्रियाएं, प्रशिक्षकों की भूमिका और गुण, सामाजिक समावेशन रणनीतियां और आजीविका अवधारणाओं सहित विभिन्न विषयों को कवर किया गया। प्रतिभागियों को प्रभावी ढंग से जोड़ने के लिए समूह चर्चा, रोल प्ले, मामला अध्ययन और प्रस्तुतियों जैसे पारस्परिक तरीकों का उपयोग किया गया। प्रशिक्षण का समापन डीएलटी के प्रदर्शन का मूल्यांकन और ग्रेड करने के लिए पांचवें और छठे दिन के मूल्यांकन चरण के साथ हुआ। यह संरचित दृष्टिकोण डीएलटी के कौशल और प्रभावशीलता में उल्लेखनीय सुधार लाने के लिए तैयार किया गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे पश्चिम बंगाल में डीएवाई-एनआरएलएम के कार्यों के सफल कार्यान्वयन में सहायता करने के लिए अच्छी तरह से तैयार हैं।
मूल्यांकन और ग्रेडिंग
चार दिनों तक चले इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 595 जिला स्तरीय प्रशिक्षकों (डीएलटी) ने भाग लिया। इस प्रशिक्षण की प्रभावशीलता का मूल्यांकन प्रतिभागियों के स्कोरिंग प्रदर्शन से किया गया, जो उनके ज्ञान और कौशल लाभ को दर्शाता है। प्रतिभागियों के प्रदर्शन का विश्लेषण इस प्रकार विस्तृत है:
- उच्च दक्षता (80% से अधिक): 595 प्रतिभागियों में से, 92 डीएलटी (18%) ने 80% से अधिक अंक प्राप्त किए। यह प्रशिक्षण सामग्री की मजबूत समझ और सत्रों के दौरान प्रदान किए गए कौशल और ज्ञान की असाधारण समझ और अनुप्रयोग को दर्शाता है।
- मध्यम दक्षता (65-79% के बीच): 275 प्रतिभागियों (53%) की एक महत्वपूर्ण संख्या ने 65% और 79% के बीच अंक प्राप्त किए। यह सीमा प्रशिक्षण में शामिल मुख्य क्षेत्रों में ठोस समझ और क्षमता को प्रदर्शित करती है। हालाँकि ये डीएलटी उच्चतम स्कोरिंग ब्रैकेट तक नहीं पहुँच पाए हैं, लेकिन उनका प्रदर्शन प्रशिक्षण सामग्री के सक्षम अनुप्रयोग का सुझाव देता है।
- निम्न दक्षता (65% से कम): शेष 178 प्रतिभागियों (30%) ने 65% से कम अंक प्राप्त किए। यह आगे सुधार के क्षेत्रों का सुझाव देता है और सामग्री की उनकी समझ और अनुप्रयोग को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त सहायता या अनुवर्ती प्रशिक्षण की आवश्यकता को इंगित करता है।
यह स्कोरिंग वितरण प्रशिक्षण कार्यक्रम के समग्र प्रभाव को दर्शाता है, जो दर्शाता है कि प्रतिभागियों के एक बड़े हिस्से ने उच्च दक्षता हासिल की है। साथ ही, एक बड़े समूह ने सामग्री की ठोस समझ प्रदर्शित की है। यह प्रगति डीएलटी की क्षमताओं को बढ़ाने में प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफलता का एक सकारात्मक संकेतक है, जो अंततः डीएवाई-एनआरएलएम पहल के प्रभावी कार्यान्वयन में योगदान देता है।
अपेक्षित परिणाम
- जिला स्तरीय प्रशिक्षकों (डीएलटी) के कौशल और ज्ञान में वृद्धि: प्रशिक्षण कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य डीएलटी के कौशल और ज्ञान में उल्लेखनीय सुधार करना था। उन्हें उन्नत प्रशिक्षण पद्धतियों, विषय वस्तु विशेषज्ञता और व्यावहारिक उपकरणों से लैस करके, कार्यक्रम का उद्देश्य दूसरों को उच्च-गुणवत्ता वाला प्रशिक्षण देने में उनकी समग्र प्रभावशीलता को बढ़ाना है। इस सुधार से अधिक सक्षम प्रशिक्षकों के आने की उम्मीद है जो अपने साथियों का प्रभावी ढंग से समर्थन और मार्गदर्शन कर सकते हैं।
- ब्लॉक-स्तरीय प्रशिक्षकों पर व्यापक प्रभाव: डीएलटी की बढ़ी हुई क्षमताओं का पर्याप्त व्यापक प्रभाव पड़ने का अनुमान है प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। अपने नए अर्जित कौशल और ज्ञान के साथ, ये डीएलटी 15,000 से अधिक ब्लॉक-स्तरीय प्रशिक्षकों के दृष्टिकोण, कौशल और समझ को उन्नत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। यह गुणक प्रभाव सुनिश्चित करता है कि प्रशिक्षण कार्यक्रम के लाभ प्रारंभिक समूह से कहीं आगे तक फैले, जिससे विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण गुणवत्ता में व्यापक सुधार हो सके।
- कुशल प्रशिक्षकों के राज्य-स्तरीय पूल का विकास: प्रशिक्षण कार्यक्रम कुशल डीएलटी का एक मजबूत पूल बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो राज्य-स्तरीय पहलों का समर्थन और संचालन कर सकते हैं। इस पूल का रणनीतिक रूप से राज्य भर में विभिन्न विषयगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किया जाएगा। उनकी विशेषज्ञता और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के आधार पर डीएलटी का आयोजन करके, कार्यक्रम का उद्देश्य राज्य-स्तरीय हस्तक्षेपों और पहलों की प्रभावशीलता को बढ़ाना है, जिससे विभिन्न चुनौतियों और अवसरों को संबोधित करने के लिए एक अच्छी तरह से वितरित और सक्षम टीम सुनिश्चित हो सके।
अन्य राज्य ग्रामीण आजीविका मिशनों (एसआरएलएम) में भी इसका कार्यान्वयन
पश्चिम बंगाल में जिला स्तरीय प्रशिक्षक (डीएलटी) ग्रेडिंग और प्रशिक्षण कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन ने अन्य राज्य ग्रामीण आजीविका मिशनों (एसआरएलएम) के लिए एक अनुकरणीय मॉडल का प्रदर्शन किया है। इस कार्यक्रम की संरचित कार्यप्रणाली, व्यावहारिक प्रशिक्षण मॉड्यूल और व्यापक मूल्यांकन प्रणाली एक सिद्ध रूपरेखा प्रदान करती है जिसे विभिन्न राज्यों में उनकी प्रशिक्षण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अनुकूलित और कार्यान्वित किया जा सकता है। पश्चिम बंगाल कार्यक्रम की सफलता इसकी सुव्यवस्थित संरचना में निहित है, जिसमें विस्तृत आवश्यकताओं का आकलन, अनुरूपित प्रशिक्षण मॉड्यूल और एक व्यवस्थित ग्रेडिंग प्रणाली शामिल है। यह संरचित दृष्टिकोण एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करता है जिसका अन्य एसआरएलएम अनुसरण कर सकते हैं। राज्य अपने विशिष्ट संदर्भों और आवश्यकताओं के आधार पर कार्यक्रम को अनुकूलित कर सकते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रशिक्षण मूल सिद्धांतों और कार्यप्रणालियों को बनाए रखते हुए स्थानीय आवश्यकताओं और चुनौतियों के साथ संरेखित है।
पश्चिम बंगाल में विकसित प्रशिक्षण मॉड्यूल में प्रशिक्षक कौशल को प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए व्यावहारिक तत्वों की एक श्रृंखला शामिल है। इन मॉड्यूल में सहभागी प्रशिक्षण पद्धतियाँ, संस्थागत निर्माण, सामाजिक और वित्तीय समावेशन और आजीविका रणनीतियाँ शामिल हैं। अन्य एसआरएलएम इन मॉड्यूल को क्षेत्रीय संदर्भों के अनुरूप संशोधित कर सकते हैं। इन व्यावहारिक प्रशिक्षण तत्वों का लाभ उठाकर, राज्य यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके प्रशिक्षक अपनी भूमिकाओं के लिए सीधे लागू होने वाले प्रासंगिक और व्यावहारिक कौशल प्राप्त करें। पश्चिम बंगाल में नियोजित ग्रेडिंग और मूल्यांकन प्रणाली प्रशिक्षण की प्रभावशीलता और डीएलटी की दक्षताओं के मूल्यांकन के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करती है। इस प्रणाली में विभिन्न मूल्यांकन उपकरण जैसे मॉक मूल्यांकन, समूह प्रस्तुतियाँ और लिखित परीक्षाएँ शामिल हैं। अन्य राज्य अपने प्रशिक्षकों का लगातार और व्यापक रूप से मूल्यांकन करने के लिए समान मूल्यांकन तंत्र लागू कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण न केवल उच्च प्रशिक्षण मानकों को बनाए रखने में मदद करता है बल्कि सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने और निरंतर कौशल विकास सुनिश्चित करने में भी मदद करता है।
निष्कर्ष
इस मॉडल को दोहराकर, एसआरएलएम पूरे देश में प्रशिक्षक क्षमताओं को एक समान रूप से बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं। प्रशिक्षक विकास के लिए एक मानकीकृत दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि प्रशिक्षण की गुणवत्ता सुसंगत है, जिससे देश भर में डीएवाई-एनआरएलएम पहल का अधिक प्रभावी और सुसंगत कार्यान्वयन हो सके। इस कार्यक्रम की पुनरावृत्ति से विभिन्न राज्यों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित और कुशल डीएलटी का एक नेटवर्क बनाकर डीएवाई-एनआरएलएम पहल को मजबूत करने की उम्मीद है। यह नेटवर्क डीएवाई-एनआरएलएम के व्यापक लक्ष्यों में योगदान करते हुए स्थानीय और क्षेत्रीय चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए कार्यक्रम की क्षमता को बढ़ाएगा। इस सफल मॉडल को बढ़ाकर, पहल व्यापक पहुँच और अधिक प्रभावशाली परिणाम प्राप्त कर सकती है, जिससे देश भर में ग्रामीण आजीविका में सुधार के अपने मिशन को आगे बढ़ाया जा सकता है। पश्चिम बंगाल डीएलटी ग्रेडिंग और प्रशिक्षण कार्यक्रम एक सफल मॉडल प्रदान करता है जिसे अन्य एसआरएलएम अपने संदर्भों के अनुसार दोहरा सकते हैं और अनुकूलित कर सकते हैं। यह देश भर के प्रशिक्षकों में एक सुसंगत और बढ़ी हुई क्षमता को सुविधाजनक बना सकता है, जिससे डीएवाई-एनआरएलएम पहल की समग्र प्रभावशीलता को सुदृढ़ किया जा सकता है और ग्रामीण विकास प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है।
एक पेड़ मॉं के नाम अभियान: एनआईआरडीपीआर में पौधारोपण अभियान
राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान, हैदराबाद ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किए गए एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत वृक्षारोपण अभियान चलाया।
इस राष्ट्रीय पहल के अनुरूप, महानिदेशक डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस के नेतृत्व में एनआईआरडीपीआर के अधिकारियों और कर्मचारियों ने 5 अगस्त 2024 को संस्थान के महात्मा गांधी ब्लॉक के पास आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया।
संकाय, गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों और छात्रों सहित प्रतिभागियों ने हरियाली प्रयासों में योगदान देने और पर्यावरणीय कारणों का समर्थन करने के लिए पौधे लगाए।
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