जुलाई 2023

विषय सूची:

आवरण कहानी: मिशन अंत्योदय सर्वेक्षण और साक्ष्य आधारित ग्रामीण विकास योजना

एनआईआरडीपीआर ने नेक्टर, शिलांग और सीएसआईआर-सीबीआरआई, रूड़की के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये

एनआईआरडीपीआर ने किया विषयगत जीपीडीपी और पंचायत विकास पर युवा अधिसदस्‍यों और राज्य कार्यक्रम संयोजकों के साथ कार्यशाला का आयोजन

लेख: ए बर्डस आई विव्‍यू ऑफ ओपन गवर्नमेंट डेटा प्लेटफ़ॉर्म इंडिया

ग्रामीण विकास फ्लैगशिप कार्यक्रमों में सुशासन पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

प्रबंधकीय कौशल, नेतृत्व विकास, विस्तार और लेखांकन के विकास पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिए सीएसआर निधि पोषण का लाभ उठाने और प्रभावशाली परियोजना प्रस्ताव लिखने पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

जल जीवन मिशन में स्रोत स्थिरता और प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

युक्तधारा का उपयोग करके ग्राम पंचायत स्तर पर मनरेगा की जीआईएस-आधारित योजना और निगरानी पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

एनआईआरडीपीआर ने निदेशक (एफएम एवं एफए) एवं डीडीजी (प्रभारी) श्री शशि भूषण को दी भावभिनी विदाई

एनआईआरडीपीआर और केआईएलए ने किया आर्द्रभूमि संरक्षण और सतत आजीविका पर टीओटी का आयोजन

टॉलिक-2 ने आईसीएआर-एनआरसीएम में किया हिंदी कार्यशाला का आयोजन

लाभार्थी सर्वेक्षण पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

समापन बिंदु उपकरणों के लिए आईटी सुरक्षा पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

नौकरी के अवसर/प्रवेश अधिसूचना


आवरण कहानी:

मिशन अंत्योदय सर्वेक्षण और साक्ष्य आधारित ग्रामीण विकास योजना

डॉ. सी. कथिरेसन, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष
डॉ. वेंकटमल्लू थडाबोइना, अनुसंधान अधिकारी
अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संयोजन और नेटवर्किंग केंद्र (सीआरटीसीएन),
एनआईआरडीपीआर, हैदराबाद

kathiresan.nird@gov.in; venkatamallu.nird@gov.in

परिचय

मिशन अंत्योदय एक अभिसरण और जवाबदेही ढांचा है, जिसे ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2017 में अपनाया था, जिसका लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के तहत भारत सरकार के 27 मंत्रालयों/विभागों द्वारा आबंटित संसाधनों का पर्याप्‍त उपयोग और प्रबंधन करना है। देश भर की ग्राम पंचायतों में वार्षिक सर्वेक्षण मिशन अंत्योदय ढांचे का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसे पंचायत राज मंत्रालय के जन योजना अभियान (पीपीसी) के साथ मिलकर चलाया जाता है और इसका उद्देश्य ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) के लिए भागीदारी योजना की प्रक्रिया को समर्थन देना है।

मिशन अंत्योदय सर्वेक्षण का प्राथमिक उद्देश्य देश के लगभग 6,50,000 गांवों के लिए ग्रामीण बुनियादी ढांचे और सेवाओं का डेटा एकत्र करना है। गांवों से एकत्र किए गए डेटा को जीपी को रैंक करने और व्यक्तिगत ग्राम पंचायतों के लिए गैप रिपोर्ट तैयार करने के लिए एकत्रित किया जाता है। यह प्रक्रिया 2017 से प्रतिवर्ष की जा रही है।

2017 में, जब मिशन प्रारंभ किया गया था, तो चयनित 5,000 समूहों में बेसलाइन सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें 780 एसएजीवाई ग्राम पंचायतों सहित 44,125 ग्राम पंचायतें (जीपी) शामिल थीं। जीपी रैंकिंग को दोहराकर और अंतराल की पहचान कर, सर्वेक्षण को 2018 में पूरे देश में शेष सभी जीपी (लगभग 2,47,000 जीपी) तक विस्तारित किया गया। 2018 में, प्रश्नावली में छह विषयगत क्षेत्रों में कुल 64 पैरामीटर शामिल थे।

2017 और 2018 में एमए सर्वेक्षण के प्रमुख परिणाम:

  1. सामान्य रिपोर्ट (एसईसीसी प्रोफ़ाइल / ग्राम-वार रिपोर्ट)
  2. ग्राम पंचायतों की रैंकिंग
  3. सेक्टर-विशिष्ट रिपोर्टें
  4. गैप रिपोर्ट
  5. अन्य मंत्रालय/कार्यक्रम-विशिष्ट रिपोर्ट (एसएजीवाई/पीएमएजीवाई/एमएसएमई)
ग्राम पंचायत स्‍कोर कार्ड
ग्राम पंचायत की गैप रिपोर्ट

2019 में, ग्राम पंचायतों में सतत विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बेहतर नीतिगत सुसंगतता सुनिश्चित करने के लिए, एनआर्इआरडीपीआर द्वारा आयोजित एक परामर्शी प्रक्रिया के माध्यम से सर्वेक्षण प्रश्नावली को संशोधित किया गया, जिसमें 29 विषयों को शामिल किया गया था। कुल मिलाकर, 143 मापदंडों को अंतिम रूप दिया गया और एक ग्राम पंचायत (घांसिमियागुडा जीपी, रंगा रेड्डी जिला, तेलंगाना) में प्रायोगिक परीक्षण किया गया। संशोधित प्रश्नावली का उपयोग करके देश भर के सभी ग्राम पंचायतों में सफलतापूर्वक सर्वेक्षण आयोजित किया गया। यह दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 715 जिलों में फैले 7000 से अधिक ब्लॉकों में किया गया था।

2020 में, सभी जीपी की गणना वर्ष 2019 में उपयोग की गई समान प्रश्नावली पर की गई थी। गांव के लिए उपलब्ध पिछला डेटा, यानी जनगणना 2011 या एमए 2017, 2018, या 2019 का उपयोग बेसलाइन डेटा के रूप में किया गया था जिसे ग्राम सेवकों द्वारा मिशन अंत्योदय 2020 डेटा के रूप में अद्यतन और डिजिटलीकृत किया गया था। जिन ग्राम पंचायतों में सर्वेक्षण के पिछले चरणों में पहले से ही डेटा एकत्र किया गया था, उन्हें इस चरण के दौरान डेटा अद्यतन के लिए विचार किया गया था।

2021 और 2022 में, कोविड  महामारी के कारण कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया। दो साल के अंतराल के बाद, एमओआरडी द्वारा 9 फरवरी 2023 से एमए सर्वेक्षण 2023 शुरू किया जा रहा है। सर्वेक्षण के 2023 संस्करण के लिए, 21 क्षेत्रों को कवर करने वाले 182 संकेतकों को कवर करने के लिए प्रश्नावली का विस्तार किया गया है। यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) से जुड़े देश भर के 92,000 सामुदायिक स्‍त्रोत व्यक्तियों (सीआरपी) द्वारा किया जा रहा है।

मिशन अंत्योदय सर्वेक्षण 2023 में शामिल 21 सेक्टर/क्षेत्र:

  1. बुनियादी पैरामीटर (ये ग्राम पंचायत और उसके घटक गांवों के स्थान विवरण हैं)
  2. सुशासन – जीपी अवसंरचना और सेवाएँ (केवल पंचायत गाँव के लिए)
  3. कृषि एवं भूमि विकास, ईंधन एवं चारा
  4. पशुपालन
  5. मछली पालन
  6. ग्रामीण आवास
  7. जल एवं पर्यावरण स्वच्छता
  8. सड़कें एवं संचार
  9. पारंपरिक और गैर पारंपरिक ऊर्जा
  10. वित्तीय और संचार अवसंरचना
  11. बाज़ार और मेले
  12. सार्वजनिक वितरण प्रणाली
  13. पुस्तकालय
  14. मनोरंजन और खेल
  15. शिक्षा/व्यावसायिक शिक्षा
  16. स्वास्थ्य, पोषण, मातृ एवं शिशु विकास एवं परिवार कल्याण
  17. कमजोर वर्गों का कल्याण
  18. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
  19. खादी, ग्राम एवं कुटीर उद्योग
  20. सामाजिक वानिकी
  21. लघु उद्योग

2017 में शुरू किए गए पहले सर्वेक्षण के बाद से एनआईआरडीपीआर एमओआरडी के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है, जो सर्वेक्षण प्रक्रिया पर हितधारकों को उन्मुख करता है, सर्वेक्षण प्रश्नावली में मूल्य जोड़ता है और प्रश्नावली और एंड्रॉइड ऐप को क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराता है।

राज्य नोडल अधिकारियों, राज्य स्तरीय मास्टर प्रशिक्षकों और जिला स्तरीय मास्टर प्रशिक्षकों के लिए जनवरी 2023 में एनआईआरडीपीआर द्वारा आयोजित ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में से एक सत्र

एनआईआरडीपीआर ने जनवरी 2023 में चार ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से लगभग 480 प्रतिभागियों (राज्य नोडल अधिकारी, राज्य स्तरीय मास्टर ट्रेनर और जिला स्तरीय मास्टर ट्रेनर) का मार्गदर्शन किया गया। प्रतिभागियों को संशोधित मिशन अंत्योदय प्रश्नावली और एमए सर्वेक्षण ऐप पर प्रशिक्षित किया गया। डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) और एनआईसी-एमओआरडी के स्‍त्रोत व्यक्तियों ने इन अभिविन्यास प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पूरा करने में एनआईआरडीपीआर का समर्थन किया। एमए ऐप का एक लाइव डेमो आयोजित किया गया और प्रतिभागियों को पंजीकरण की प्रक्रिया और सर्वेक्षण प्रक्रिया के पूर्ण चक्र के बारे में बताया गया।

मिशन अंत्योदय पोर्टल – https://missionantyodaya.nic.in/

ग्रामीण विकास के लिए साक्ष्य आधारित योजना

ग्रामीण विकास के लिए जमीनी स्तर योजना की अवधारणा विकास के लिए सूक्ष्म नियोजन की रणनीतियों में एक महत्वपूर्ण जोड है। भारत में, स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने वाले 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के प्रभावी प्रवर्तन के बाद जमीनी स्तर की योजना पर बहुत ध्यान दिया गया है। संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची 29 कार्यों को पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) के दायरे में रखती है और अनुच्छेद 243जी स्थानीय निकायों को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करने और लागू करने का आदेश देता है। भारत सरकार ने विकास कार्यक्रमों की योजना और कार्यान्वयन में लोगों की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए ग्राम सभा जैसे कई पूरक संस्थान और उपाय बनाए है। भागीदारी योजना के परिणामस्वरूप जमीनी स्तर पर तैयार की गई कुछ योजनाओं में ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी), ब्लॉक पंचायत स्तर पर ब्लॉक पंचायत विकास योजना (बीपीडीपी), जिला परिषद स्तर पर जिला पंचायत विकास योजना (डीपीडीपी), एसआरएलएम द्वारा ग्राम गरीबी निवारण योजना (वीपीआरपी), सांसद आदर्श ग्राम योजना, एमओआरडी के लिए ग्राम विकास योजना (वीडीपी), आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी), और आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (एबीपी) के लिए तैयार की गई रणनीतिक योजनाएं शामिल हैं। नियोजन प्रक्रिया में एक प्रमुख तत्व है पहचाने गए क्षेत्र में प्राथमिक और माध्यमिक डेटा का संग्रह है।

ग्रामीण क्षेत्रों में योजना पारंपरिक योजना विधियों से साक्ष्य-आधारित योजना की ओर बढ़ गई है, विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध डेटा तक वास्तविक-समय पहुंच के कारण यह संभव हुआ है। योजना प्रक्रिया में शामिल लोगों के लिए सार्वजनिक डोमेन में विश्वसनीय डेटा तक पहुंच प्राप्त करना हमेशा एक चुनौती होती है। विश्वसनीय स्रोतों से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करके विकास अंतराल की पहचान करना और उसके अनुसार योजना तैयार करने से उस क्षेत्र में विकास दिखाई देगा। मिशन अंत्योदय सर्वेक्षण डेटा विश्वसनीय डेटा प्रदान करने और ग्रामीण क्षेत्रों में साक्ष्य-आधारित योजना को वास्तविकता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

एमए पोर्टल में उपलब्ध क्षेत्र-विशिष्ट अंतर विश्लेषण सरकारों को योजनाएं बनाने और एक अभिसरण दृष्टिकोण के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के तहत वित्तीय संसाधनों का पर्याप्‍त उपयोग करने में मदद करेगा। 2019-20 के सर्वेक्षण परिणाम, पहली बार, 2.67 लाख ग्राम पंचायतों, जिसमें 6.48 लाख गाँव शामिल हैं, के बुनियादी ढांचे के अंतराल पर प्रकाश डालते हैं। राष्ट्रीय स्तर और राज्य-वार डेटा कुछ क्षेत्रों में प्रगति दिखाते हैं और लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यकता को उजागर करते हैं। गैप रिपोर्ट और समग्र सूचकांक से पता चलता है कि विकेंद्रीकरण सुधारों के 30 वर्षों के बाद भी ‘आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय’ का निर्माण एक दूर का लक्ष्य बना हुआ है।

मिशन अंत्योदय पोर्टल से डेटा कैसे एक्सेस करें?

2017 से 2023 तक की सर्वेक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक पहुंच के लिए – https://missionantyodaya.nic.in/ पोर्टल पर डाउनलोड के लिए विभिन्न प्रारूपों में उपलब्ध कराई गई है। सर्वेक्षण के परिणाम विभिन्न प्रारूपों में प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनमें गांवों की रैंकिंग, समग्र सूचकांक, क्षेत्र-विशिष्ट रिपोर्ट, अंतराल रिपोर्ट, पिछले तीन वर्षों में गांव का विकास, ग्राम पंचायतों में बुनियादी ढांचे की उपलब्धता, कार्यक्रम/योजना-विशिष्ट रिपोर्ट आदि शामिल हैं। अंतराल विश्लेषण नागरिकों और नीति निर्माताओं को राष्ट्रव्यापी रुझानों के अलावा, प्रत्येक गांव/ग्राम पंचायत में विकास को ट्रैक करने की अनुमति देता है।

निष्कर्ष

भारत सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से मापने योग्य परिणामों पर लोगों के जीवन और आजीविका को बदलने के उद्देश्य से 2017 से देश की सभी ग्राम पंचायतों में मिशन अंत्योदय सर्वेक्षण आयोजित कर रहा है। यह सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कई विकास-उन्मुख क्षेत्रों को कवर करने वाले सबसे बड़े डेटा में से एक है। 2018 से सभी ग्राम पंचायतों में जीपीडीपी योजना प्रक्रिया में एमए डेटा का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन जमीनी स्तर की योजना प्रक्रिया में शामिल अन्य हितधारकों द्वारा इसकी उपयोगिता बहुत कम लगती है। सतत विकास हासिल करने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर विभिन्न हितधारकों द्वारा तैयार की जा रही विभिन्न विकासात्मक योजनाओं को ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) के साथ एकीकृत करने की तत्काल आवश्यकता है। एमए सर्वेक्षण डेटा विभिन्न योजना प्रक्रियाओं के लिए सत्य का एक एकल स्रोत हो सकता है, जिससे ग्रामीण स्तर पर संसाधनों का पर्याप्‍त उपयोग हो सकता है और विभिन्न कार्यक्रमों का अभिसरण भी हो सकता है।


एनआईआरडीपीआर ने किया नेक्टर, शिलांग और सीएसआईआर-सीबीआरआई, रूड़की के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर), हैदराबाद ने उत्‍तर पूर्वी प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं अनुसंधान केन्‍द्र (एनईसीटीएआर), शिलांग, मेघालय और सीएसआईआर-सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई), रूड़की, उत्तराखंड के साथ 01 जुलाई 2023 को माननीय केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री गिरिराज सिंह की उपस्थिति में समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।

माननीय केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री गिरिराज सिंह की उपस्थिति में समझौता ज्ञापनों का आदान-प्रदान करते हुए डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर (सबसे दाएं) और डॉ. अरुण कुमार सरमा, महानिदेशक, एनईसीटीएआर (बाएं से दूसरे)

कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, नवीकरणीय ऊर्जा, बांस, भू-स्थानिक, आपदा प्रबंधन आदि के क्षेत्र में कारीगरों/उद्यमियों और समूहों के लाभ के लिए ज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रसार के लिए संयुक्त रूप से काम करने के और ग्रामीण विकास के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने, जैव विविधता एटलस विकसित करने और बांस तथा केले पर विशेष ध्यान देने के साथ विभिन्न प्रौद्योगिकियों में कौशल और क्षमता विकास पर आगे काम करने के उद्देश्य से एनईसीटीएआर के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

 

माननीय केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री गिरिराज सिंह की उपस्थिति में समझौता ज्ञापनों का आदान-प्रदान करते हुए डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर (दाएं से दूसरे) और प्रो. प्रदीप कुमार, निदेशक, सीएसआईआर-सीबीआरआई (बाएं से चौथे)

सतत पर्यावरण-अनुकूल आवास प्रौद्योगिकियों, लागत प्रभावी घर-निर्माण सामग्री को बढ़ावा देने, विभिन्न राज्य/क्षेत्र-विशिष्ट आवास मॉडल विकसित करने, भारत सरकार के उद्देश्य यानी सभी के लिए आवास के प्रभावी कार्यान्वयन और उपलब्धि को सुनिश्चित करने के लिए पीएमएवाई-जी योजना पर विशेष ध्यान देने के साथ ग्रामीण इंजीनियरों, राजमिस्त्रियों, निर्माणकर्ताओं और श्रमिकों और अन्य हितधारकों में कौशल/क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ सीएसआईआर-सीबीआरआई के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा, समझौता ज्ञापन का उद्देश्य सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड के तहत पंचायतों में भवनों के निर्माण के लिए एक मॉडल विकसित करना है।

कार्यक्रम में डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर, डॉ. अरुण कुमार सरमा, महानिदेशक, एनईसीटीएआर, प्रोफेसर प्रदीप कुमार, निदेशक, सीएसआईआर-सीबीआरआई, डॉ. वल्ली मनिकम, निदेशक, सीआईपीएस, डॉ. सी. कथिरेसन, एसोसिएट प्रोफेसर, एनआईआरडीपीआर, श्री मोहम्मद खान, वरिष्ठ सलाहकार, एनआईआरडीपीआर, डॉ. राधिका रानी, एसोसिएट प्रोफेसर, एनआईआरडीपीआर और एनआईआरडीपीआर के संकाय तथा एनईसीटीएआर और सीबीआरआई के अधिकारियों ने भाग लिया।

एनआईआरडीपीआर ने किया विषयगत जीपीडीपी और पंचायत विकास पर युवा अधिसदस्‍यों और राज्य कार्यक्रम संयोजकों के साथ कार्यशाला का आयोजन

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान ने अपने हैदराबाद परिसर में 11 -12 जुलाई 2023 तक ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) और पंचायत विकास सूचकांक (पीडीआई) के विषयगत दृष्टिकोण पर युवा अधिसदस्‍यों (वाईएफ) और राज्य कार्यक्रम संयोजकों (एसपीसी) के साथ दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की।

कार्यशाला में भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय (एमओपीआर) के सचिव श्री सुनील कुमार, आईएएस, सचिव डॉ. चंद्र शेखर कुमार, आईएएस, अपर सचिव और श्री विकास आनंद, आईएएस, संयुक्त सचिव ने भाग लिया। एमओपीआर अधिकारियों के अलावा, 100 से अधिक वाईएफ, 250 मॉडल क्लस्टर विकास परियोजनाओं के एसपीसी और एनआईआरडीपीआर के संकाय ने इस राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला में भाग लिया।

डॉ. ए.के. भंज, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, पंचायती राज केंद्र, एनआईआरडीपीआर ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यशाला की पृष्ठभूमि तथा उद्देश्यों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि एमओपीआर ने मार्च 2022 में श्रीमती जयश्री रघुनंदन, आईएएस (सेवानिवृत्त), के नेतृत्व में पंचायत विकास सूचकांक (पीडीआई) के माध्यम से एसडीजी (एलएसडीजी) के स्थानीयकरण के कार्यान्वयन की निगरानी करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। तदनुसार, समिति ने ग्राम पंचायतों की विकास स्थिति का आकलन करने के लिए 144 लक्ष्यों और 577 संकेतकों की सिफारिश की है। ये संकेतक एसडीजी के साथ संरेखित हैं और स्थानीय स्तर पर सतत विकास को बढ़ावा देते हैं,” डॉ. भंज ने कहा। उन्होंने आगे कहा कि कार्यान्वयन के साधन निर्धारित करने के लक्ष्‍य से लेकर प्रगति की निगरानी के लिए पीडीआई का उपयोग करने तक ग्राम पंचायतें, जीपीडीपी तैयार करते समय, एसडीजी की उपलब्धि में स्थानीय संदर्भों को ध्यान में रखेंगी ।

डॉ. चंद्र शेखर कुमार, आईएएस, अपर सचिव, ने प्रतिभागियों को अपने संबोधन के दौरान कहा कि एमओपीआर के एलएसडीजी और पीडीआई दिशानिर्देश ग्राम पंचायतों को स्थानीय समुदाय द्वारा समझे जाने वाले मुद्दों की पहचान और प्राथमिकता, संदर्भ-विशिष्ट समाधान की पहचान और अभिसरण कार्रवाई के माध्यम से उपलब्ध धन का बेहतर उपयोग के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह कार्यशाला पीडीआई के संचालन की एक आम समझ विकसित करेगी और पंचायतों को जीपीडीपी के माध्यम से एसडीजी हासिल करने में सक्षम बनाएगी।

श्री सुनील कुमार, आईएएस, सचिव, एमओपीआर ने मुख्य भाषण प्रस्‍तुत किया। उन्होंने कहा कि पीडीआई का कार्यान्वयन ग्रामीण भारत में एसडीजी हासिल करने की दिशा में यात्रा की शुरुआत है। उन्होंने बताया कि पंचायतें ग्रामीणों के निकटतम संस्थान होने के नाते सतत विकास प्राप्त करने के लिए एसडीजी के साथ संरेखित स्थानीय रूप से प्रासंगिक नीतियों को डिजाइन और कार्यान्वित करेंगी।  “पीडीआई ग्राम पंचायत स्तर पर प्रगति की निगरानी करके विकासात्मक अंतराल को कम करने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है। पीडीआई स्कोर, और विषयगत एंव संकेतक स्कोर एलएसडीजी के नौ विषयों में स्पष्ट विकास प्रक्षेप पथ प्रदान करेंगे और जरूरत के क्षेत्रों में लक्षित हस्तक्षेप को सक्षम करेंगे, जिससे पंचायतों को हमारे प्रयासों और संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलेगी जहां उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है, ”श्री सुनील कुमार ने कहा। .

बाद में, एमओपीआर के परामर्शदाता श्री तौकीर खान ने जीपीडीपी के विषयगत दृष्टिकोण पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी।

श्री विकास आनंद, आईएएस, संयुक्त सचिव, एमओपीआर ने पीडीआई के संचालन पर एक प्रस्तुति दी। “पीडीआई स्थानीय संकेतकों को जीपीडीपी प्रक्रिया में शामिल करने में मदद करता है। इसमें अंतर-एजेंसी डेटा साझाकरण और संस्थागत सूचना विनिमय के लिए अंतर्निहित तंत्र है, ”उन्होंने कहा।

इस कार्यशाला ने सभी प्रतिभागियों को योजना बनाने के लिए विषयगत दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से लागू करने और प्रगति पर नज़र रखने के लिए पीडीआई का उपयोग करने के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि, रणनीतियाँ और उपकरण प्रदान किए।


लेख:

लेख: ए बर्डस आई विव्‍यू ऑफ ओपन गवर्नमेंट डेटा प्लेटफ़ॉर्म इंडिया

डॉ. उमेश एम. एल.
सहायक पुस्‍तकाध्‍यक्ष, विकास प्रलेखन एवं संचार केंद्र
एनआईआरडीपीआर
umeshaml.nird@gov.in

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ग्रामीण विकास फ्लैगशिप कार्यक्रमों में सुशासन पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

प्रतिभागियों के साथ पाठ्यक्रम संयोजक डॉ. के. प्रभाकर, सहायक प्रोफेसर, सीजीजी एवं पीए, एनआईआरडीपीआर (आगे की पंक्ति, बाएं से चौथे) डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर (आगे की पंक्ति, बाएं से 5वें)

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) ने अपने हैदराबाद परिसर में 4 से 7 जुलाई 2023 तक ‘ग्रामीण विकास फ्लैगशिप कार्यक्रमों में सुशासन’ पर चार दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। फ्लैगशिप कार्यक्रमों से निपटने वाले आरडी एवं पीआर के अधिकारी, डीआरडीए परियोजना निदेशक, विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों के प्रभारी अधिकारी और राज्य तथा जिला स्तर के नोडल अधिकारी, आरडी एंड पीआर, एसआईआरडी, ईटीसी में अनुसंधान एवं  प्रशिक्षण संस्थानों के संकाय सदस्य, जिला और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों, शोधकर्ताओं, विकास व्‍यावसायियों और सार्वजनिक नीति उत्साहियों सहित कुल 24 लोगों ने प्रशिक्षण में भाग लिया।

एनआईआरडीपीआर में सु-शासन एवं नीति विश्‍लेषण केन्‍द्र (सीजीजी एवं पीए) द्वारा संचालित, प्रशिक्षण कार्यक्रम इस विचार पर आधारित था कि प्रभावी नीति निर्धारण, जवाबदेह नेतृत्व और पेशेवर प्रशासन के लिए सुशासन आवश्यक है। यह ग्रामीण विकास फ्लैगशिप कार्यक्रमों की सफलता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जबकि, मौजूदा संस्थागत व्यवस्थाएँ और प्रक्रियाएँ अक्सर वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में चुनौतियाँ पैदा करती हैं।

इसलिए, ग्रामीण विकास फ्लैगशिप कार्यक्रमों में सुशासन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण विकास योजनाओं में शासन के मुद्दों को लागू करने और संबोधित करने में प्रतिभागियों की समझ और कौशल को बढ़ाना है। प्रशिक्षण में न केवल शासन और उसके उपकरणों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई, बल्कि प्रतिभागियों को प्रमुख योजनाओं के बारे में सीखने और बाधाओं की पहचान करने की सुविधा प्रदान करने के लिए भी डिज़ाइन किया गया था।

कार्यक्रम के उद्देश्य थे i) शासन, सुशासन, ई-शासन, आदि जैसी अवधारणाओं की समझ का निर्माण करना, ii) प्रमुख योजनाओं को लागू करने में शासन के मुद्दों और चुनौतियों का विश्लेषण करना, iii) प्रतिभागियों में शासन सुधारों के बारे में सर्वोत्तम पद्धतियों और अवधारणाओं का प्रमाण साझा करना।, iv) शासन उपकरणों पर प्रतिभागियों का परिचय और क्षमता निर्माण, और v) सहकर्मी सीख की संस्कृति को बढ़ावा देना।

पहले दिन की शुरुआत प्री-कोर्स मूल्यांकन के साथ हुई, जिसमें सुशासन और संबंधित अवधारणाओं पर प्रतिभागियों में वैचारिक स्पष्टता की कमी पर प्रकाश डाला गया। सत्र का नेतृत्व डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर ने किया, जिन्होंने कल्याणकारी सेवाएं प्रदान करने के लिए मजबूत संस्थानों की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने सिंगापुर और केरल की मामला अध्‍ययनों का भी हवाला दिया।

परिचयात्मक सत्र के बाद, पाठ्यक्रम निदेशक ने सुशासन की मूल अवधारणा का परिचय दिया और प्रतिभागियों को शेष प्रशिक्षण के लिए आधार तैयार करने में मदद की। सत्र में चार शासन संबंधी कमियों की ओर इशारा किया जिनका नागरिकों को सामना करना पड़ता है, अर्थात् विकल्प, सूचना, जवाबदेही और आवाज की कमी। इसने प्रतिभागियों को भारत में फ्लैगशिप कार्यक्रमों में शासन के मुद्दों के बारे में गहराई से सोचने की चुनौती दी। सत्रों से मुख्य निष्कर्ष जबरन निवेश था, जिसका असर सुशासन के अभाव में होता है।

कार्यक्रम का एक सत्र

सुशासन पर सत्र ने शेष प्रशिक्षण के लिए एक आधार के रूप में काम किया क्योंकि विशिष्ट योजनाओं पर कई सत्र उनके कार्यान्वयन और सफलता में सुशासन की भूमिका पर चर्चा करने के लिए आयोजित किए गए थे। जल जीवन मिशन पर चर्चा से नल जल कनेक्शन और कार्यात्मक नल जल कनेक्शन के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित हुआ। इस सत्र की मुख्य बात यह थी कि अगर सरकार जेजेएम जैसे कार्यक्रमों को स्थायी रूप से शुरू करने की योजना बना रही है तो अभिसरण मॉडल कितने अपरिहार्य हैं।

दूसरे दिन की शुरुआत महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) नामक फ्लैगशिप योजना पर चर्चा के साथ हुई। प्रतिभागी और सुविधाकर्ता आजीविका कार्यक्रमों के विविधीकरण, मनरेगा के वितरण में शासन के सुधार में सरकार की भूमिका और मनरेगा में अभिसरण की अनिवार्यता से संबंधित बातचीत में लगे रहे। सत्र की मुख्य सीख वार्षिक मास्टर सर्कुलर उपयोग के बारे में थी, जिसका अर्थ प्रतिभागी अधिकारियों के साथ जुड़ सकते हैं और इसके आसपास नवाचारों के बारे में सोच सकते हैं।

सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) पर हुई दूसरे सत्र में सुविधा प्रदाता और प्रतिभागियों के बीच सबसे दिलचस्प संवाद हुए क्योंकि यह बिना किसी फंड/वित्त वाली योजना है। एसएजीवाई  किसी भी अनुदान की भागीदारी के बिना प्रभावी सेवा वितरण में सुशासन की भूमिका पर एक दिलचस्प मामला अध्ययन है। एसएजीवाई  की नींव अभिसरण और डेटा पर टिकी हुई है। सत्र की मुख्य सीख एसएजीवाई बेसलाइन की प्रतिकृति और अन्य ग्राम पंचायतों के लिए ग्राम विकास योजना की कार्यप्रणाली पर थी।

प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) पर तीसरा सत्र और ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क (आरटीपी) का परिचयात्‍मक दौरा आपस में जुड़ा हुआ था। सत्र में पीएमएवाई की सफलता पर प्रकाश डाला गया और बहिष्करण सूची की सीमा और अंतराल को भरने के लिए सरकार द्वारा की गई नई पहलों को रेखांकित किया। सत्र में पहल मॉड्यूल जैसी पहल पर चर्चा करके पीएमएवाई घरों के लिए स्थानीय और पर्यावरण-अनुकूल डिजाइन अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। इसी सन्दर्भ में ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क भ्रमण की योजना बनाई गई। स्थानीय और पर्यावरण-अनुकूल संरचनाओं को देखने का अनुभव सभी प्रतिभागियों द्वारा जागरूक जीवन जीने की दिशा में उठाया गया पहला कदम था।

तीसरे दिन के पहले सत्र में, पाठ्यक्रम समन्वयक ने सामुदायिक स्कोर कार्ड जैसे सूक्ष्म उपकरण और नागरिक रिपोर्ट कार्ड जैसे मैक्रो उपकरण पेश किए। इस सत्र में, प्रतिभागियों को उस तात्कालिक पारिस्थितिकी तंत्र में शासन में सुधार जिसमें हम काम करते हैं या रहते हैं और स्वयं शासन सुधारों को संस्थागत बनाते हैं के बारे में सिखाया गया। मुख्य सीख यह थी कि सरल कदम उठाकर तत्काल प्रशासन में सुधार संभव है।  टूल ने प्रतिभागियों को कुछ समस्याओं के समाधान की कल्पना कर ने या यदि आवश्यक हो तो विभिन्न सेवा वितरणों की तुलना करके अनुसंधान-आधारित वकालत बनाने में मदद की। सत्र में कुछ डेटा गुणवत्ता जांच पर भी प्रकाश डाला गया और निष्कर्षों को सामान्य बनाने के लिए नमूना आकार को बनाए रखना आवश्यक है।

अंतिम दिन की शुरुआत ई-गवर्नेंस जैसे एक बेहद जरूरी सत्र के साथ हुई। इस सत्र में, फैसिलिटेटर ने विभिन्न अनुप्रयोगों और मॉड्यूल जिन पर सरकार वर्तमान में काम कर रही है और भविष्य के लिए इसकी क्‍या संभावनाएं हैं पर चर्चा की। ई-गवर्नेंस टूल पर चर्चा के बाद, पाठ्यक्रम समन्वयक ने कर्नाटक पुलिस विभाग द्वारा की गई जांच में पुलिस सुधारों के मामला अध्ययन के आधार पर प्रतिभागियों को आपूर्ति-पक्ष टूल के बारे में समझाया।  एक मामला अध्ययन की मदद से सहभागिता से प्रतिभागियों को यह समझने में मदद मिली कि शासन हमेशा इसकी मांग करने वाले नागरिकों तक ही सीमित नहीं रह सकता। आपूर्ति पक्ष स्वयं को सही करने/सेवा वितरण में सुधार के लिए स्वैच्छिक कार्रवाई भी कर सकता है। सत्र का समापन सीखने को साझा करने और आपूर्ति-पक्ष उपकरणों के संबंध में एक पारिस्थितिकी तंत्र में हस्तक्षेप के अधिक उदाहरणों और संभावित क्षेत्रों के सह-निर्माण के साथ हुआ।

समापन सत्र के दौरान प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए और मुख्य बातों पर विचार किया। विभिन्न मॉड्यूल, इंटरैक्टिव कार्यप्रणाली और परिचयात्‍मक दौरा, पीर लर्निंग के माध्‍यम से, प्रतिभागियों ने जनता को बेहतर सेवा वितरण के लिए शासन के मुद्दों और चुनौतियों को संबोधित करने में अंतर्दृष्टि प्राप्त की।  प्रमुख सरकारी अधिकारियों ने कहा कि प्रशिक्षण से उन्हें सेवा वितरण संबंधी बाधाओं और नागरिकों द्वारा सामना किए जाने वाले मांग-पक्ष के मुद्दों के बारे में अधिक जानने में मदद मिली। फैसिलिटेटर ने प्रतिभागियों से फीडबैक भी लिए, जिस पर प्रशिक्षण की गुणवत्ता में और सुधार के लिए समूह में रचनात्मक चर्चा की गई।

सुशासन एवं नीति विश्‍लेषण केन्‍द्र (सीजीजी एंड पीए), एनआईआरडीपीआर के सहायक प्रोफेसर डॉ. के. प्रभाकर ने राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।

(नोट: प्रशिक्षण सारांश रिपोर्ट एक प्रतिभागी सुश्री पल्लवी लौंगानी, वरिष्ठ कार्यक्रम प्रमुख, पीरामल फाउंडेशन, राजस्थान द्वारा तैयार की गई है।


प्रबंधकीय कौशल, नेतृत्व विकास, विस्तार और लेखांकन के विकास पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और आपदा न्यूनीकरण केंद्र ने ओडिशा के  मत्स्य विभाग के सहायक मत्स्य अधिकारियों के लिए 17 से 22 जुलाई 2023 तक ‘प्रबंधकीय कौशल, नेतृत्व विकास, विस्तार और लेखांकन के विकास’ पर छह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। कुल 37 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

सीएनआरएम, सीसी एवं डीएम के संकाय डॉ. रवींद्र एस. गवली, प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष (आगे की पंक्ति, बाएं से तीसरे) और डॉ. सुब्रत कुमार मिश्रा, एसोसिएट प्रोफेसर (सामने की पंक्ति, बाएं से 5वें) के साथ प्रतिभागीगण

कार्यक्रम के उद्देश्य थे i) प्रबंधकीय क्षमताओं में सुधार के लिए निर्णय लेने, रणनीतिक योजना, नेतृत्व, संचार, टीम निर्माण और संघर्ष समाधान में मत्स्य विभाग के अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर प्रबंधकीय कौशल बढ़ाना, ii) अधिकारियों को आधुनिक उपकरणों से लैस करके विस्तार तकनीकों में सुधार करना ज्ञान को प्रभावी ढंग से फैलाने और हितधारकों में सतत मत्स्य पालन पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए विस्तार पद्धति, सामुदायिक जुड़ाव और प्रौद्योगिकी का उपयोग, और iii) मत्स्य विभाग के अंतर्गत प्रभावी वित्‍तीय प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शी वित्तीय पद्धतियों, बजट और संसाधन आबंटन के लिए लेखा अधिकारियों की लेखांकन दक्षता को बढ़ाकर लेखांकन और वित्तीय प्रबंधन कौशल को मजबूत करना।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. रवींद्र एस. गवली, प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, सीएनआरएम, सीसी एवं डीएम, एनआईआरडीपीआर, हैदराबाद द्वारा प्रतिभागियों के स्वागत भाषण के साथ हुई। डॉ. गवली ने आगे उद्घाटन भाषण प्रस्‍तुत करते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम और मत्स्य पालन क्षेत्र की वृद्धि और विकास के महत्व पर प्रकाश डाला।  

कार्यक्रम के पहले तकनीकी सत्र को एनएफडीबी के वरिष्ठ कार्यकारी (तकनीकी) डॉ. ए. माधुरी ने संबोधित किया। डॉ. माधुरी के व्याख्यान में सतत मत्स्य पालन की अवधारणा और मत्स्य अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने और मछली पकड़ने वाले समुदायों का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार मछली पकड़ने की पद्धतियों की आवश्यकता पर बल दिया।  व्याख्यान में पीएमएमएसवाई जो कि मछली उत्पादन को बढ़ावा देने, मत्‍स्‍य पालन उद्योग को आधुनिक बनाने और जलीय कृषि और मत्स्य पालन बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने की एक सरकारी पहल है, की प्रमुख विशेषताओं को भी शामिल किया गया। कुल मिलाकर, सत्र ने संरक्षण प्रयासों के महत्व पर जोर दिया और इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मत्स्य अधिकारियों और पीएमएमएसवाई के महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता दी।

दूसरे तकनीकी सत्र को डॉ. सुब्रत कुमार मिश्रा, एसोसिएट प्रोफेसर, सीएनआरएम, सीसी एवं डीएम, एनआईआरडीपीआर, हैदराबाद ने संबोधित किया। डॉ. सुब्रत ने अपनी व्याख्यान में ‘मत्स्य पालन गतिविधियों के साथ ग्रामीण विकास के फ्लैगशिप कार्यक्रमों के अभिसरण’ पर प्रकाश डाला। उन्होंने मत्स्य पालन पहल के साथ मनरेगा, एनआरएलएम और पीएमएमएसवाई जैसे ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को एकीकृत करने के संभावित लाभों पर चर्चा की।  इस दृष्टिकोण से ग्रामीण क्षेत्रों में सतत विकास और बेहतर आजीविका हो सकती है। डॉ. सुब्रत ने रोजगार सृजन, गरीबी उन्‍मूलन और समग्र ग्रामीण विकास पर इस अभिसरण के सकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने इन एकीकृत कार्यक्रमों को लागू करने में प्रभावी योजना, समन्वय और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दिया। व्याख्यान ने समग्र ग्रामीण विकास को प्राप्त करने और ग्रामीण विकास और मत्स्य पालन गतिविधियों दोनों के सकारात्मक परिणामों को अधिकतम करने के प्रयासों के महत्व को रेखांकित किया।

एनआईआरडीपीआर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सी. काथिरेसन के नेतृत्व में एनआईआरडीपीआर के ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क के दौरे के दौरान, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण, विस्तार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के व्यावहारिक पहलुओं का पता लगाया गया। ग्रामीण समुदायों के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण, कृषि, जल प्रबंधन और नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों में अनुरूप नवाचारों का प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित किया गया था।  अनुसंधान संस्थानों और ग्रामीण समुदायों के बीच अंतर को कम करना, किसानों और ग्रामीणों तक ज्ञान का प्रसार करने में विस्तार सेवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया गया। इस दौरे ने सतत पद्धतियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों को सशक्त बनाने, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और समग्र विकास में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की। इसने आजीविका बढ़ाने और व्‍यवहार्य ग्रामीण समुदायों के निर्माण में प्रशिक्षण, विस्तार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के महत्व पर प्रकाश डाला।

डॉ. ए.के. सक्सेना ने ‘नेतृत्व और प्रेरण कौशल’ पर एक सत्र लिया और यह सिद्धांत से परे चला गया, जिसमें नेतृत्व क्षमताओं और प्रेरणा को बढ़ाने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण शामिल थे। पारस्‍परिक अभ्यास और रोल-प्‍ले परिदृश्यों ने प्रतिभागियों को निर्णय-क्षमता और संचार कौशल का अभ्यास करने की अनुमति दी।  डॉ. सक्सेना ने टीम के सदस्यों की जरूरतों को समझने, सकारात्मक कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने और उपलब्धियों को पहचानने पर जोर दिया। सत्र ने तत्काल आवेदन के लिए कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि प्रदान की, जिससे उपस्थित लोग अपने संबंधित क्षेत्रों में प्रभावी नेता और प्रेरक बन सके।

डॉ आकांक्षा शुक्ला ने ‘सूचना प्रसार और संचार कौशल’ पर एक सत्र आयोजित किया, जिसमें उपयुक्त पैकेज और पद्धतियों के प्रसार के लिए स्थानीय और सोशल मीडिया के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया। सत्र के दौरान, डॉ. शुक्ला ने ग्रामीण समुदायों तक बहुमूल्य जानकारी पहुंचाने में प्रभावी संचार के महत्व पर प्रकाश डाला। कुल मिलाकर, डॉ आकांक्षा शुक्ला के सत्र ने उपस्थित लोगों को सूचना अंतर को कम करने और ग्रामीण समुदायों को उनकी प्रगति और कल्याण के लिए प्रासंगिक ज्ञान के साथ सशक्त बनाने के लिए व्यावहारिक संचार कौशल से सुसज्जित किया।

तेलंगाना के महबूबनगर जिले के बालानगर ब्लॉक के गुंडेड गांव में पीआरए अभ्यास के दौरान प्रतिभागी

एनआईआरडीपीआर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पारथ प्रतिम साहू ने ‘मत्स्य पालन क्षेत्र में उद्यमशीलता को बढ़ावा देना’ पर एक ज्ञानवर्धक सत्र आयोजित किया। सत्र का उद्देश्य सतत विकास के लिए मत्स्य उद्योग में उद्यमशीलता के अवसरों का पता लगाने के लिए व्यक्तियों को सशक्त बनाना है। डॉ. साहू ने बाजार के रुझान और ग्राहकों की जरूरतों को समझने और नवाचार को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करने और व्यावसायिक संभावनाओं का लाभ उठाने के लिए मत्स्य उद्यमियों की प्रेरक सफलता कहानियां साझा कीं। सत्र में वित्तीय नियोजन, सरकारी योजनाओं और इच्छुक मत्स्य उद्यमियों के लिए महत्वपूर्ण सहायता प्रणालियों के रूप में नेटवर्किंग को भी कवर किया गया। डॉ. साहू के मार्गदर्शन ने एक संपन्न और जिम्मेदार मत्स्य पालन व्यवसाय के निर्माण के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की।

सीपीजीएस एवं डीई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ देबप्रिया ने ‘मत्स्य पालन क्षेत्र में किसान और बाजार लिंकेज’ पर एक सत्र का नेतृत्व किया। लाभप्रदता और सततता को बढ़ाने के लिए मछली किसानों और बाजारों के बीच अंतर को जोडने पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रतिभागियों ने विपणन रणनीतियों, मूल्य-संवर्धन तकनीकों और पारदर्शी और कुशल लिंकेज बनाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका के बारे में सीखा। सत्र का उद्देश्य मछली किसानों को क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा देने और बाजार में उचित रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए अंतर्दृष्टि के साथ सशक्त बनाना है।

एनआईआरडीपीआर में सहायक प्रोफेसर डॉ. सोनल मोबार रॉय ने सहायक मत्स्य अधिकारियों के लिए ‘सहभागी ग्रामीण मूल्यांकन’ पर एक सत्र लिया। सत्र का उद्देश्य अधिकारियों को ग्रामीण मछली पकड़ने वाले समुदायों को सक्रिय रूप से शामिल करने के लिए कौशल से लैस करना था। स्थानीय जरूरतों को समझने पर जोर देते हुए, सत्र में फोकस समूह चर्चा और मानचित्रण अभ्यास जैसे भागीदारी उपकरण शामिल थे।  यह सत्र सामुदायिक भागीदारी, सतत मछली पकड़ने की पद्धति को बढ़ावा देना और स्थानीय आवश्यकताओं के साथ विकास पहलों को संरेखित करने के लिए अधिकारियों को सशक्त बनाने पर केंद्रित था। सत्र का उद्देश्य प्रभावी और स्थानीय रूप से प्रासंगिक मत्स्य पालन विकास हस्तक्षेपों के लिए सहायक मत्स्य अधिकारियों और मछली पकड़ने वाले समुदायों के बीच संचार और सहयोग को मजबूत करना है।

क्रविस एक्वा के अध्यक्ष श्री विश्वनाथ राज एमडी द्वारा फील्ड प्रदर्शन

क्राविस एक्वा की दौरे के दौरान, अध्यक्ष श्री विश्वनाथ राज ने अपने फार्म पर मत्स्य पालन में अपनी अनुकरणीय पद्धति का प्रदर्शन करने के लिए एक कक्षा ली। प्रतिभागियों को उद्योग में उनकी विशेषज्ञता और अनुभव से सीधे सीखने का अनूठा अवसर मिला। श्री विश्वनाथ राज ने नवीन मत्स्य पालन तकनीकों, सतत पद्धतियों और अपने फार्म पर उपयोग की जाने वाली आधुनिक प्रौद्योगिकियों पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि साझा की।  उनकी विशेषज्ञता ने उपस्थित लोगों को बहुमूल्य ज्ञान और प्रेरणा प्रदान की। इस दौरे ने एक व्यावहारिक सीखने का अनुभव प्रदान किया और भारत में मत्स्य पालन उद्योग की वृद्धि और विकास को बढ़ाने के लिए विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।

बालानगर में क्रैविस एक्वा आरएएस क्षेत्र दौरे के दौरान प्रतिभागी

क्राविस एक्वा सत्र के बाद, पास के गांव गुंडेड में एक सहभागी ग्रामीण मूल्यांकन (पीआरए) अभ्यास आयोजित किया गया। डॉ. सोनल मोबार रॉय के नेतृत्व में, पीआरए में फोकस समूह चर्चा और भागीदारी मानचित्रण जैसी गतिविधियां शामिल थीं। पीआरआई, एसएचजी और एफपीओ सहित स्थानीय समुदाय के सदस्यों ने बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हुए सक्रिय रूप से भाग लिया। इस अभ्यास का उद्देश्य समुदाय की जरूरतों और आकांक्षाओं को समझना, मत्स्य पालन गतिविधियों के विस्तार के लिए विभागों, पीआरआई और समुदाय के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।

श्रीमती नागलक्ष्मी, चार्टर्ड अकाउंटेंट, एनआईआरडीपीआर ने बैलेंस शीट, लाभ और हानि खाता, फंड फ्लो और कैश फ्लो को कवर करते हुए ‘वित्तीय लेखांकन की मूल बातें’ पर एक जानकारीपूर्ण अतिथि व्याख्यान प्रस्‍तुत किया। प्रतिभागियों ने इन वित्तीय विवरणों के लिए मूलभूत सिद्धांतों और तैयारी तकनीकों को सीखा। सत्र ने वित्तीय गतिविधियों की निगरानी और राजस्व, व्यय और शुद्ध लाभ का विश्लेषण करने में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की। उपस्थित लोगों ने विविध व्यावसायिक और संगठनात्मक संदर्भों में लागू आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया। 

‘समस्या समाधान और संघर्ष समाधान’ पर डॉ. ए.के. सक्सेना का सत्र प्रतिभागियों को प्रभावी तकनीकों से लैस करने पर केंद्रित था। व्यवस्थित दृष्टिकोण पर जोर देते हुए, उपस्थित लोगों ने व्यक्तिगत और व्यावसायिक चुनौतियों के लिए समस्या-समाधान के तरीके सीखे। सत्र में प्रभावी संचार, सक्रिय श्रवण और बातचीत कौशल सहित संघर्ष समाधान रणनीतियों को भी शामिल किया गया। अंत तक, प्रतिभागियों को समस्याओं से निपटने और संघर्षों को रचनात्मक ढंग से प्रबंधित करने, सामंजस्यपूर्ण और उत्पादक वातावरण को बढ़ावा देने के लिए व्यावहारिक उपकरण प्राप्त हुए।

‘टीम वर्क के सिद्धांत और व्यवहार’ पर डॉ. वी. के. रेड्डी के सत्र में एकजुट टीम वर्क के महत्व पर प्रकाश डाला गया। प्रतिभागियों ने प्रभावी संचार, सहयोग और व्यक्तिगत शक्तियों का लाभ उठाने के बारे में सीखा। सत्र में संघर्ष समाधान और एक सकारात्मक टीम संस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया, जिससे उपस्थित लोगों को सामूहिक सफलता के लिए मजबूत और उत्पादक टीम बनाने में सक्षम बनाया जा सके।

डॉ. सुब्रत कुमार मिश्रा के सत्र में “ओडिशा सरकार के वित्तीय नियम” शामिल थे, जिसमें वित्तीय प्रबंधन, बजट, लेखांकन पद्धतियों और खरीद प्रक्रियाओं की व्याख्या की गई। उपस्थित लोगों ने ओडिशा सरकार द्वारा लागू अनुपालन आवश्यकताओं और पारदर्शिता उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त की, जिससे वे प्रभावी वित्तीय प्रबंधन और दिशानिर्देशों के पालन के लिए सक्षम हो सके।

सीएनआरएमसीसीडीएम के प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष डॉ. रवींद्र गवली ने ‘मत्स्य पालन क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन’ पर एक सत्र संचालित किया । सत्र ने मछली के आवास, प्रजातियों के वितरण और उत्पादकता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का पता लगाया। डॉ. गवली ने सतत पद्धतियों और नवीन दृष्टिकोणों के माध्यम से लचीलेपन के महत्व पर जोर दिया।  उपस्थित लोगों ने जलवायु-व्‍यवहार्य मछली पकड़ने की तकनीक, संसाधन संरक्षण और अनुकूलन के लिए समुदाय-आधारित पहलों के बारे में जानकारी प्राप्त की। सत्र का उद्देश्य प्रतिभागियों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक ज्ञान और उपकरणों से लैस करना, मत्स्य पालन क्षेत्र की दीर्घकालिक सततता और समृद्धि सुनिश्चित करना है।

प्रतिभागियों ने मत्स्य पालन क्षेत्र के मद्देनजर एक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुति तैयार करने के लिए समूह कार्य में सहयोग किया। उन्होंने सतत कृषि तकनीकों, जल प्रबंधन और बाजार संबंधों पर विचार-मंथन किया और रणनीति बनाई। चर्चाओं में वित्तीय नियोजन, प्रौद्योगिकी एकीकरण और सामुदायिक सहभागिता पर भी चर्चा हुई। प्रत्येक समूह ने मछली पालन पद्धतियों को बढ़ाने के लिए नवीन समाधानों का प्रदर्शन करते हुए अपनी परिप्रेक्ष्य योजना प्रस्तुत की।  इस अभ्यास ने मछली पालन क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा देते हुए सक्रिय भागीदारी और सामूहिक सोच को प्रोत्साहित किया। सत्र के अंत तक, प्रतिभागियों को मछली पालन में सुधार और उद्योग में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक विचार प्राप्त हुए।

डॉ. रवींद्र एस. गवली, प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, सीएनआरएमसीसीडीएम, एनआईआरडीपीआर, समापन सत्र को संबोधित करते हुए

प्रशिक्षण कार्यक्रम समापन भाषण, मूल्यांकन और फीडबैक के साथ समाप्त हुआ। डॉ. रवींद्र एस. गवली, प्रोफेसर और डॉ. सुब्रत कुमार मिश्रा, एसोसिएट प्रोफेसर, सीएनआरएम, सीसी एवं डीएम ने सत्र का नेतृत्व किया। डॉ. गवली ने कार्यक्रम की सफलता में उनके समर्पण और योगदान की सराहना करते हुए उनकी सक्रिय और उत्साही भागीदारी की सराहना की। यह कार्यक्रम सकारात्मक रूप से संपन्न हुआ, जिससे उपस्थित लोग नए ज्ञान, कौशल और सौहार्द की भावना के साथ मत्स्य पालन क्षेत्र में सकारात्मक प्रभाव पैदा करने और इसी तरह की पहल में दूसरों को प्रेरित करने के लिए तैयार हो गए। समापन भाषण के दौरान, डॉ. सुब्रत ने पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभागियों की सक्रिय भागीदारी और प्रतिबद्धता के लिए सराहना व्यक्त करते हुए अपने विचार भी साझा किए। उन्होंने सीखने और चर्चाओं में शामिल होने की उनकी उत्सुकता की सराहना की, जिसने कार्यक्रम की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

भारत सरकार के प्रशिक्षण प्रबंधन पोर्टल में समापन सत्र और पाठ्यक्रम के मूल्यांकन में प्रतिभागियों से फीडबैक लिया गया और प्रशिक्षण कार्यक्रम को 88 प्रतिशत की समग्र प्रभावशीलता प्राप्त हुई।


ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिए सीएसआर निधि पोषण का लाभ उठाने और प्रभावशाली परियोजना प्रस्ताव लिखने पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

एनआईआरडीपीआर-दिल्ली शाखा ने 5 जुलाई 2023 से 7 जुलाई 2023 तक इंडिया हैबिटेट सेंटर, लोधी रोड, नई दिल्ली में ‘ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिए सीएसआर फंडिंग का लाभ उठाने और प्रभावशाली परियोजना प्रस्ताव लिखने’ पर एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम में 14 राज्यों के एनजीओ, सीएसओ और सरकारी विभागों से 25 पदाधिकारियों ने भाग लिया।

प्रतिभागी और स्‍त्रोत व्यक्ति

श्री यशपाल, निदेशक, एसएजीवाई और मिशन अंत्योदय ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया और राज्यों में सफल एसएजीवाई कार्यान्वयन के लिए सीएसआर प्रशिक्षण और एनजीओ क्षमता निर्माण की आवश्यकता को रेखांकित किया।

प्रशिक्षण की शुरुआत ग्रामीण विकास कार्यक्रमों और ग्रामीण विकास के पहलू में सीएसआर की स्थिति के संक्षिप्त परिचय के साथ हुई। श्री के.जी. श्याम परांडे, अंतर राष्ट्रीय सहयोग परिषद (एआरएसपी) के महासचिव ने 5 जुलाई, 2023 को उद्घाटन भाषण प्रस्‍तुत करते हुए ‘संभावना को उजागर करना: ग्रामीण विकास पहल के लिए सीएसआर का लाभ उठाना’ पर प्रस्तुति दी। उन्होंने विकास क्षेत्र में खर्च किए गए सीएसआर पर आंकड़ों के साथ-साथ सतत पहल और निवेश के माध्यम से समाज के लिए सकारात्मक रूप से योगदान देने के लिए कंपनी की प्रतिबद्धता के बारे में जानकारी दी।

श्री के.जी.श्याम परांडे ने भारत में सीएसआर और ग्रामीण विकास में बदलते रुझानों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बताया कि ग्रामीण कार्यबल के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और उद्यमिता कार्यक्रमों में निवेश करके ग्रामीण कुशल कार्यबल के कौशल विकास में सीएसआर निवेश की आवश्यकता है।  “यह रोजगार क्षमता बढ़ाने, कौशल अंतर को पाटने और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में उपयोगी हो सकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में भी इसकी आवश्यकता है, जिसके लिए हम अधिक प्रासंगिकता के लिए स्थानीय अनुसंधान के आधार पर अनुकूलित सीएसआर हस्तक्षेप के लिए संपर्क कर सकते हैं। साझेदारी परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन के लिए क्षमता निर्माण में स्थानीय शासन को मजबूत करना भी सहायक है।  पीपीपी (सार्वजनिक, निजी और लोग) भागीदारी के माध्यम से सरकार, एनजीओ और कॉरपोरेट्स जैसे विभिन्न हितधारकों के साथ मिलकर, ग्रामीण विकास में सीएसआर के अभिनव, अनुकरणीय और स्केलेबल मॉडल को क्रियान्वित किया जा सकता है, ”उन्होंने कहा। उन्होंने प्रभावी प्रस्ताव लिखने के लिए रूपरेखा भी प्रस्तुत की और बताया कि कैसे कुछ रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाकर ग्रामीण विकास के लिए सीएसआर फंडिंग को अनुकूलित किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रभावशाली परियोजनाएं बनती हैं जो समुदाय की जरूरतों को संबोधित करती हैं, स्थिरता को बढ़ावा देती हैं और सकारात्मक सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करती हैं।

पहले तकनीकी सत्र में अच्छे प्रस्ताव और लिखने के घटक और चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका अभ्यास शामिल थी। जनसंख्या परिषद के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी डॉ अभिषेक हजरा द्वारा सत्र चलाया  गया। डॉ ह‍जरा ने सीएसआर संगठनों के लिए प्रभावशाली प्रस्तावों के घटकों के बारे में विस्तार से बताया और सीख को ठोस बनाने के लिए प्रस्ताव-समूह अभ्यास आयोजित किया।

 प्रस्ताव लेखन पर एक सत्र का संचालन कर रहे डॉ अविषेक हजरा, वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी, जनसंख्या परिषद

दूसरे दिन, सुश्री हेन्ना वैद, 3आई इंप्‍याक्‍ट की वरिष्ठ बीडी एसोसिएट ने प्रभावी अनुदान प्रस्तावों को लिखने को प्राथमिकता देने पर सत्र चलाय। उन्होंने सीएसआर निधि पोषण जुटाने के प्रभावी तरीकों का वर्णन किया और बताया कि कैसे उनका संगठन अवसर की उचित पहचान, उचित परिश्रम, अद्यतन कुंजी सीवी और प्रस्ताव पर काम करने के लिए एक कोर टीम तैयार करने, आरएफपी में उल्लिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने के माध्यम से सफल होता है। 

प्रशिक्षण का तीसरा तकनीकी सत्र यूनिसेफ के डॉ. राकेश मिश्रा द्वारा लिया गया, जिन्होंने ग्रामीण विकास और आवश्यकता के विश्लेषण और डेटासेट से परियोजना उद्देश्यों की पहचान पर भारत के माध्यमिक डेटा स्रोतों को प्रस्तुत किया। डॉ. मिश्रा ने प्रतिभागियों को डेटा के विभिन्न स्रोतों और प्रकारों के बारे में बताया और दिखाया कि इसका उपयोग अनुसंधान, निगरानी, मूल्यांकन और योजना आदि के क्षेत्र में प्रभावी ज्ञान कार्य के लिए एक आधार के रूप में कैसे किया जा सकता है।  सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डैशबोर्ड का उल्लेख करते हुए जहां से हम राज्य, जिलों, ओवरटाइम आदि का अनुमान प्राप्त कर सकते हैं, उन्होंने प्रतिभागियों को डेटा के पदानुक्रम और उसके संकेतकों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के लिए डेटा तैयार करने की प्रक्रिया और इसके प्रकाशन और आगे के विश्लेषण तक इसके विभिन्न चरणों और समयसीमा के बारे में बताया।  

प्रशिक्षण कार्यक्रम से एक सत्र

चौथा तकनीकी सत्र एनआईआरडीपीआर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रमेश शक्तिवेल द्वारा ऑनलाइन लिया गया। डॉ शक्तिवेल ने प्रतिभागियों को परियोजना योजना, निगरानी और मूल्यांकन के लिए तार्किक ढांचे के विश्लेषण से परिचित कराया। उन्होंने तार्किक रूपरेखा विश्लेषण की संरचना और फायदों के बारे में जानकारी दी और यह कैसे प्रमुख घटकों को बताते हुए परियोजनाओं को डिजाइन करने में मदद करता है और निर्णय निर्माताओं, प्रबंधकों और शामिल अन्य हितधारकों में आम समझ को सुविधाजनक बनाता है।  उन्होंने हितधारक विश्लेषण, समस्या वृक्ष और वस्तुनिष्ठ वृक्ष पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने उद्देश्यों के पदानुक्रम का वर्णन किया और कहा कि उद्देश्यों को परियोजना के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में परियोजना लाभार्थियों या लक्ष्य समूह द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों के संदर्भ में मुख्य समस्या का समाधान करना चाहिए।

पांचवां तकनीकी सत्र डॉ. रुचिरा भट्टाचार्य ने संचालित किया । समूह अभ्यास के दौरान, प्रतिभागियों को चरण-दर-चरण एक प्रस्ताव विकसित करने के लिए कहा गया और अच्छे लेखन सीएसआर प्रस्ताव के प्रत्येक घटक को व्यावहारिक अभ्यास के माध्यम से परिष्कृत और बेहतर बनाया गया था। डॉ रुचिरा ने बताया कि एक प्रस्ताव में किसी विशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गतिविधियों की एक श्रृंखला का विस्तृत विवरण होना चाहिए।  “परियोजना के लक्ष्य को परिभाषित करने के लिए, विकास के दृष्टिकोण से जुड़ना आवश्यक है। लक्ष्य की प्राप्ति को समझने के लिए संकेतक स्पष्ट होने चाहिए। गतिविधियों के चयन के मानदंड व्यावहारिक, स्वीकार्य, प्रभावी, कुशल और सतत होने चाहिए। प्रस्ताव के लिए, बजट आबंटन और संसाधन योजना उचित, यथार्थवादी और विशिष्ट होनी चाहिए, ” उन्‍होनें  कहा।

तीसरे दिन, प्रतिभागियों ने डॉ. पारथ प्रतिम साहू, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, सीईडीएफआई, एनआईआरडीपीआर को अपने प्रस्ताव प्रस्तुत किए। डॉ. साहू ने प्रस्तावों को संशोधित करने के विभिन्न घटकों को स्पष्ट किया।

श्री संतोष गुप्ता, आईएसआरएन के सीईओ को प्रशंसा प्रमाण पत्र सौंपते हुए डॉ रुचिरा भट्टाचार्य, सहायक प्रोफेसर,

प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतिम दिन का अंतिम सत्र श्री संतोष गुप्ता, आईएसआरएन के सीईओ द्वारा चलाया गया। सीएसआर कार्यान्वयन मॉडल और सीएसआर कार्यान्वयन के लिए नैतिक पद्धतियों को प्रस्तुत करते हुए, उन्होंने संकल्पना और शुरुआत, परिभाषा और योजना, लॉन्च/निष्पादन तथा  निगरानी और दस्तावेज़ीकरण जैसे विभिन्न चरणों के बारे में बताया।  परियोजना के सफल समापन तक पहुंचने के लिए, किसी को एक परियोजना चार्टर विकसित करना होगा, जिसमें मुख्य बिंदु प्रमुख परियोजना हितधारकों की पहचान, परियोजना के लिए सबसे उपयुक्त टीम का चयन, परियोजना व्यवहार्यता अध्ययन आयोजित करना, परियोजना के दायरे को परिभाषित करना, गतिविधियां और डिलिवरेबल्स, परियोजना प्रबंधन योजना का विकास, जोखिम प्रबंधन और संचार योजना का विकास, परिभाषित भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के साथ मानव संसाधनों की तैनाती, परियोजना के लिए आवश्यक बजट/लागत का प्रारंभिक मूल्यांकन, परियोजना प्रबंधन योजना का निष्पादन, प्रबंधन टीम वर्क, हितधारकों के साथ परियोजना संचार का प्रबंधन करना, टीम-निर्माण अभ्यास आयोजित करना, जोखिम प्रबंधन का आकलन करना, परियोजना वितरण को पूरा करना, सुधार के क्षेत्रों और सर्वोत्तम पद्धतियों की पहचान करना, बिलिंग और राजस्व वर्कफ़्लो शुरू करना और अंतिम परियोजना दस्तावेज़ीकरण तैयार करना हैं। डॉ. गुप्ता ने सीएसआर कार्यान्वयन की आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय नैतिक पद्धतियों पर भी ध्यान केंद्रित किया।

डॉ. रुचिरा के प्रमाण पत्र वितरण धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रुचिरा भट्टाचार्य एवं डॉ. रमेश शक्तिवेल ने किया।


जल जीवन मिशन में स्रोत निरंतरता और प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

ग्रामीण आधारभूत संरचना केन्‍द्र, एनआईआरडीपीआर ने 10-12 जुलाई 2023 तक जल जीवन मिशन में काम करने वाले इंजीनियरों, अधिकारियों और केआरसी के लिए ‘जल जीवन मिशन में स्रोत निरंतरता और प्रबंधन’ पर 3 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों के कुल 13 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

प्रतिभागियों के साथ श्री. एच. के. सोलंकी, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, सीआरआई और पाठ्यक्रम संयोजक

पहले दिन डॉ. आर. रमेश, अध्‍यक्ष, सीआरआई ने प्रतिभागियों को जल जीवन मिशन (जेजेएम) के बारे में जानकारी दी। श्री एच.के. सोलंकी, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर ने स्रोत निरंतरता की आवश्यकता पर एक व्याख्यान प्रस्‍तुत किया।

क्रित्स्नम टेक्नोलॉजीज की उद्योग विशेषज्ञ डॉ. सोनाली श्वेतपद्म द्वारा ‘आईओटी की मूल बातें, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में इसके अनुप्रयोग, आईओटी उपकरणों का उपयोग करके जल प्रवाह निगरानी का प्रबंधन और प्रदर्शन’ पर एक सत्र चलाया गया। इंजीनियर एच.के. सोलंकी द्वारा ‘वाटरशेड, एक्वीफर्स और ग्राम पंचायत की बातचीत: एमएसडब्ल्यूएमयू का विकास’ पर सत्र चलाया गया, जिसके बाद आरटीपी में विभिन्न जल संचयन और पुनर्भरण संरचनाओं का दौरा किया गया और श्री एमडी खान, वरिष्ठ सलाहकार, आरटीपी द्वारा आरटीपी कार्यों का परिचय प्रदान किया गया।

दूसरे दिन डॉ. पी.के. सिंह, डीन, सीटीएई, एमपीयूएटी, उदयपुर द्वारा ‘वाटरशेड की सर्वोत्तम पद्धतियाँ, जल संचयन के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकियाँ, भूजल स्रोत प्रबंधन: पद्धतियाँ और मामला अध्ययन’ विषय पर ऑनलाइन सत्र चलाया गया। श्री पी. ज्योति कुमार, उप निदेशक, तेलंगाना राज्य भूजल विभाग द्वारा ‘भूजल पुनर्भरण और सतत उपाय’ पर सत्र चलाया गया।  डॉ. एनएसआर प्रसाद, संकाय सदस्य, सीगार्ड, एनआईआरडीपीआर द्वारा ‘भूजल स्रोत निरंतरता और प्रबंधन के लिए जीआईएस और रिमोट सेंसिंग के अनुप्रयोग’ पर सत्र चलाया गया, इसके बाद ‘हर ग्रामीण घर में सुनिश्चित जल आपूर्ति – मिशन भागीरथ: चुनौतियां और’ सफलताएँ’ पर श्री ल्यूक कम्मारा, उप कार्यकारी अभियंता, मिशन भगीरथ, टीडीडब्ल्यूएसपी, तेलंगाना द्वारा सत्र चलाया गया।

परिसर में छिद्रीकरण टैंक का दौरा कर रहे प्रतिभागी

तीसरे दिन, डॉ. रवीन्द्र एस. गवली, प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, सीएनआरएम, एनआईआरडीपीआर ने ‘ग्राम स्तर पर जल बजट और जल सुरक्षा योजना: तरीके और चुनौतियाँ’ पर एक सत्र चलाया। इसके बाद डॉ. सुब्रत मिश्रा, एसोसिएट प्रोफेसर, सीएनआरएम, एनआईआरडीपीआर द्वारा ‘ वाटरशेड, मनरेगा और 15वें एफसी से जुड़ा फंड के साथ जेजेएम का अभिसरण: चुनौतियां और अवसर’ पर सत्र चलाया।

टीएमपी पर लिए गए फीडबैक के अनुसार, प्रशिक्षण में कुल मिलाकर 87 प्रतिशत प्रभावशीलता प्राप्त हुई। श्री एच.के. सोलंकी, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, सीआरआई ने सुश्री आर एल सुधा, प्रशिक्षण सहयोगी, सीआरआई के सहयोग से पाठ्यक्रम का समन्वय किया।

दो टीओटी का आयोजन किया गया

श्री एच के सोलंकी, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, सीआरआई, एनआईआरडीपीआर के साथ प्रतिभागी।

17-19 जुलाई 2023 और 20-22 जुलाई 2023 के दौरान आईजीपीआर एंड जीवीएस (एसआईआरडी, राजस्थान) में ‘युक्तधारा का उपयोग करके जीपी स्तर पर महात्मा गांधी नरेगा की जीआईएस-आधारित योजना और निगरानी’ पर 3-दिवसीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।

कुल मिलाकर, राजस्थान के विभिन्न ब्लॉकों से क्रमशः 34 और 31 प्रतिभागियों ने कार्यक्रम में भाग लिया। राजस्थान के प्रत्येक ब्लॉक से मनरेगा के तहत काम करने वाले एमआईएस प्रबंधकों, जेटीए सहित औसतन दो प्रतिभागियों ने कार्यक्रम में भाग लिया।

श्री. एच.के. सोलंकी,  वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, सीआरआई, एनआईआरडीपीआर ने डॉ. पी. केशव राव, अध्‍यक्ष, सीगार्ड, एनआईआरडीपीआर के समग्र पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के तहत श्री हितबल्लभ शर्मा, एसआईआरडी के संयुक्त निदेशक और सुश्री आर.एल. सुधा, प्रशिक्षण सहयोगी, सीआरआई के सहयोग से पाठ्यक्रम का संयोजन किया।


युक्तधारा का उपयोग करके ग्राम पंचायत स्तर पर मनरेगा की जीआईएस-आधारित योजना और निगरानी पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

04-06 जुलाई 2023 तक आईजीपीआर एंड जीवीएस (एसआईआरडी, राजस्थान) में ‘युक्तधारा का उपयोग करके जीपी स्तर पर महात्मा गांधी नरेगा की जीआईएस-आधारित योजना और निगरानी’ पर दो 3-दिवसीय ऑफ-कैंपस प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए। कार्यक्रम की परिकल्पना नरेगा में ब्लॉक तकनीकी स्‍त्रोत टीमों के रूप में काम करने वाले इंजीनियरों और अधिकारियों के लिए की गई थी।

आईजीपीआर एंड जीवीएस, राजस्थान में प्रतिभागियों के साथ श्री एच. के. सोलंकी, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, सीआरआई, एनआईआरडीपीआर

कार्यक्रम में राजस्थान के विभिन्न जिलों से कुल 41 प्रतिभागियों ने भाग लिया। औसतन, प्रत्येक ब्लॉक से दो प्रतिभागियों – मनरेगा के तहत जूनियर तकनीकी सहायक और एमआईएस प्रबंधक – ने कार्यक्रम में भाग लिया।

पहले दिन के विषय थे- मनरेगा और रिज टू वैली अवधारणा की योजना और निगरानी में भू-संसूचना और इसके अनुप्रयोगों का परिचय, ई-मैप ऐप के माध्यम से राज्य निगरानी रणनीति; युक्तधारा का परिचय – मनरेगा की योजना और निगरानी के लिए एक भू-स्थानिक अनुप्रयोग, और युक्तधारा का प्रदर्शन।

दूसरे दिन, लैंडस्केप परिचितीकरण और जल निकासी लाइन उपचार की पहचान के लिए व्यावहारिक युक्तधारा, क्षेत्र उपचार और मानचित्र संरचना की पहचान के लिए व्यावहारिक युक्तधारा, युक्तधारा का उपयोग करके मनरेगा के तहत जीपी योजनाओं की तैयारी, और इसके बाद युक्तधारा का उपयोग करते हुए मनरेगा के तहत जीपी योजनाओं की व्यावहारिक तैयारी पर सत्र आयोजित किए गए।

सत्र का नेतृत्व करते हुए श्री. एच.के. सोलंकी, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, सीआरआई, एनआईआरडीपीआर

तीसरे दिन के सत्र में सिक्योर ऐप के माध्यम से राज्य निगरानी रणनीति, तैयार की गई जीपी योजनाओं की समीक्षा और स्पष्टीकरण पर चर्चा की गई। इस सत्र में, प्रत्येक जिले के ब्लॉक स्तर के अधिकारियों ने सहयोगी सदस्यों के साथ युक्तधारा में आबंटित डम्‍मी आईडी और जीपी के अनुसार चयनित जिलों और जीपी के लिए तैयार की गई योजनाओं को प्रस्तुत किया। इसके बाद प्रशिक्षण का टीएमपी मूल्यांकन किया गया और इसमें 77 प्रतिशत की समग्र प्रभावशीलता दर्ज की गई।

श्री. एच.के. सोलंकी,  वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, सीआरआई, एनआईआरडीपीआर ने डॉ. पी. केशव राव, अध्‍यक्ष, सीगार्ड, एनआईआरडीपीआर के समग्र पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के तहत श्री हितबल्लभ शर्मा, एसआईआरडी के संयुक्त निदेशक और सुश्री आर.एल. सुधा, प्रशिक्षण सहयोगी, सीआरआई के सहयोग से पाठ्यक्रम का संयोजन किया।


एनआईआरडीपीआर ने निदेशक (एफएम एवं एफए) एवं डीडीजी (प्रभारी) श्री शशि भूषण को भावभिनी विदाई दी

विदाई समारोह में श्री शशि भूषण, निदेशक (एफएम और एफए) और उप महानिदेशक (प्रभारी) को स्मृति चिन्ह भेंट करते हुए डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान, हैदराबाद ने 31 जुलाई 2023 को श्री शशि भूषण, निदेशक (एफएम और एफए) और उप महानिदेशक (प्रभारी) को हार्दिक विदाई दी।

श्री मनोज कुमार, रजिस्ट्रार एवं निदेशक (प्रशासन) प्रभारी ने स्वागत भाषण प्रस्‍तुत किया और श्री शशि भूषण के सेवा इतिहास का संक्षिप्त उल्लेख दिया, साथ ही उनके साथ अपने संबंध को भी याद किया।

इस अवसर पर बोलते हुए, डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर ने संस्थान को आगे ले जाने के लिए श्री शशि भूषण के योगदान की सराहना की। महानिदेशक ने कहा कि श्री शशि भूषण ने उन्हें दिए गए सभी अतिरिक्त कार्यभार, जैसे कि उप महानिदेशक (प्रभारी) और सीजीसी वैशाली के प्रभारी, को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया और उन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता से काम पूरा किया। महानिदेशक ने उन्हें शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित भी किया ।

राजभाषा और लेखा अनुभाग के संकाय सदस्यों और कर्मचारियों ने भी श्री शशि भूषण के साथ अपने सहयोग को याद किया।

सभा को संबोधित करते हुए श्री शशि भूषण, निदेशक (एफएम एवं एफए) एवं उप महानिदेशक (प्रभारी); साथ में डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर और श्री मनोज कुमार, रजिस्ट्रार एवं निदेशक (प्रशासन) प्रभारी भी उपस्थित हैं।

सभा को संबोधित करते हुए, श्री शशि भूषण ने एनआईआरडीपीआर में चार वर्षों की अपनी सेवा को याद किया। उन्होंने कहा कि यह उनकी सेवा में पहली बार है कि वह इतनी लंबी अवधि के लिए किसी संस्थान से जुड़े हैं। उन्होंने संस्थान के कार्यों में योगदान देने में सक्षम होने पर संतुष्टि व्यक्त की और कहा कि उन्होंने उप महानिदेशक (प्रभारी) की भूमिका का आनंद लिया, जो सीखने का एक शानदार अनुभव था।


एनआईआरडीपीआर और केआईएलए ने किया आर्द्रभूमि संरक्षण और सतत आजीविका पर टीओटी का आयोजन

5 जून, 2023 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर, भारत के माननीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने दो योजनाएं शुरू की। आर्द्रभूमि और मैंग्रोव को पुनर्जीवित करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत अमृत धरोहर योजना और मिष्टी (तटरेखा आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल) योजना।

अमृत धरोहर योजना भारत सरकार की एक दूरदर्शी पहल है जिसका उद्देश्य देश की आर्द्रभूमि की प्राकृतिक सुंदरता को संरक्षित करना है। अगले तीन वर्षों में, यह योजना इन मूल्यवान पारिस्थितिक तंत्रों के पर्याप्‍त उपयोग को बढ़ावा देने की दिशा में काम करेगी।

केरल के त्रिशूर में केआईएलए  में आर्द्रभूमि संरक्षण और सतत आजीविका पर आयोजित टीओटी के स्‍त्रोत व्यक्ति और प्रतिभागी

इस प्रमुख पहल के बारे में जागरूकता लाने के लिए, केरल स्‍थानीय प्रशासन संस्‍थान  (केआईएलए) ने 13 से 15 जुलाई 2023 तक राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्‍थान (एनआईआरडीआर), हैदराबाद के सहयोग से केरल के त्रिशूर संस्थान में ‘आर्द्रभूमि संरक्षण और सतत आजीविका: अमृत धरोहर पहल’ के तहत पर प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण आयोजित किया।  । डॉ. ज्योतिस सत्यपालन, प्रोफेसर, एनआईआरडीपीआर ने कार्यक्रम का नेतृत्व किया।

डॉ. ज्योतिस सत्यपालन के साथ, कार्यक्रम का मार्गदर्शन डॉ. पी.एस. ईसा, केरल वन अनुसंधान संस्थान (केएफआरआई) के पूर्व निदेशक, श्री ई.जे. जेम्स, करुण्या विश्वविद्यालय के डीन और जल संसाधन प्रबंधन केंद्र (सीडब्ल्यूआरडीएम) के पूर्व कार्यकारी निदेशक, श्री के जी पद्मकुमार, विशेष अधिकारी और निदेशक, समुद्र तल से नीचे खेती के लिए अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (आईआरटीसीबीएसएफ) और श्री द्रुव वर्मा, तकनीकी प्रबंधक, वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया (डब्ल्यूआईएसए) ने किया। स्‍त्रोत व्यक्तियों ने एनपीसीए ढांचे के अनुसार आर्द्रभूमि के प्रबंधन और संरक्षण के बारे में अपने गहन ज्ञान को साझा किया, जिससे प्रतिभागियों को सीखने का एक शानदार अनुभव मिला।

केएफआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टी.आर. सजीव ने लैंटाना कैमारा, मिमोसा डिप्लोट्रिका आदि जैसी आक्रामक प्रजातियों के कारण होने वाले पारिस्थितिक खतरों के बारे में जानकारी दी। डॉ. जॉय एलमोन ने स्थानीय शासन और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विस्तार से बताया, जबकि केआईएलए के सहायक प्रोफेसर डॉ. मोनिश जोस ने ईआईए और लोक प्रशासन के बारे में बात करते हुए ग्राम सभा की शक्ति एवं प्रभाव पर प्रकाश डाला।

श्री श्री बेनकिन, चित्रा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्‍थान, तिरुवनंतपुरम के अनुसंधानकर्ता ने केरल के अलाप्पुझा जिले के कुट्टनाडु के कैनकारी गांव से गैर-संचारी रोगों पर चल रहे अपने शोध और क्षेत्र के अनुभवों से इनपुट साझा किए।

विभिन्न पंचायतों और अन्य एनजीओ के सदस्यों ने भी मूल्यवान वास्तविक अनुभव साझा किए। टीओटी में स्‍त्रोत व्यक्तियों और प्रतिभागियों सहित कुल 51 लोगों की उपस्थिति दर्ज हुई। निदेशक डॉ. जॉय एलमोन के नेतृत्व में केआईएलए के स्टाफ सुश्री रीमा अखिल और सुश्री मलिका के.एस. ने टीओटी का समन्वय किया।

आयोजकों ने डॉ. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर को उनके दृष्टिकोण और भारत में केरल राज्य, जहां बड़ी संख्या में आर्द्रभूमि मानवजनित गतिविधियों के खतरे का सामना कर रही है में अपनी तरह का पहला कार्यक्रम शुरू करने के लिए धन्यवाद दिया, ।


टॉलिक-2 ने आईसीएआर-एनआरसीएम में हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया

आईसीएआर-एनआरसीएम में हिंदी कार्यशाला के दौरान पुस्तक का विमोचन करते हुए टॉलिक-2 के सदस्य; कार्यशाला के प्रतिभागी

7 जुलाई 2023 को नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति-2 के तत्वावधान में आईसीएआर-राष्ट्रीय मांस अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएम), चेंगिचेरला, हैदराबाद में अनुवाद पर एक हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया।

आईसीएआर-एनआरसीएम के निदेशक डॉ. एस.बी. बारबुद्धे ने संस्थान की गतिविधियों पर एक पावरपॉइंट प्रस्तुति दी। श्रीमती अनिता पांडे, सदस्य सचिव, टीओएलआईसी-2 और सहायक निदेशक (रा.भा), राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यशाला की विशेषताओं के बारे में बताया।

मुख्य अतिथि डॉ. आर.के. माथुर, निदेशक, आईसीएआर-आईआईओआर ने हिंदी में काम करने के महत्व को समझाने के अलावा, टीओएलआईसी-2 और आयोजक कार्यालय के काम की सराहना की। श्री जय शंकर प्रसाद तिवारी, सहायक निदेशक (रा.भा) (सेवानिवृत्त) ने सॉफ्टवेयर का उपयोग करके अनुवाद कार्य कैसे किया जा सकता है के बारे में बताया। श्री प्रदीप बेहरा, संयुक्त सचिव, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया ने सूचना सुरक्षा के बारे में बताया।

प्रतिभागियों ने कहा कि कार्यशाला से उन्हें अत्यधिक लाभ हुआ। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान के वरिष्ठ हिंदी अनुवादक श्री ई. रमेश ने कार्यक्रम का संचालन किया। एनआईआरडीपीआर और एनआरआईएम के राजभाषा अनुभाग से जुड़े कर्मचारियों ने कार्यक्रम का समन्वय किया।


लाभार्थी सर्वेक्षण पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

24 से 28 जुलाई 2023 तक योजना निगरानी और मूल्यांकन केंद्र (सीपीएमई), एनआईआरडीपीआर ने ‘लाभार्थी सर्वेक्षण’ पर एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम भारतीय लेखा परीक्षा लेखाविभाग, क्षेत्रीय प्रशिक्षण संस्थान, हैदराबाद द्वारा प्रायोजित किया गया था। तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और नई दिल्ली से वरिष्ठ लेखापरीक्षा अधिकारी (एसएओ), वरिष्ठ लेखापरीक्षा अधिकारी (वाणिज्यिक) और सहायक लेखापरीक्षा अधिकारी (एएओ) सहित प्रधान महालेखाकार (लेखापरीक्षा – I और II) विभाग के कुल 26 अधिकारी पांच दिवसीय आवासीय कार्यक्रम में शामिल हुए ।

पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. के. प्रभाकर, सहायक प्रोफेसर, एनआईआरडीपीआर (आगे की पंक्ति, बाएं से चौथे) के साथ प्रतिभागी

लाभार्थी सर्वेक्षण में, अन्वेषक कार्यक्रम/योजना/नीति के बारे में वास्तविक समय का अनुभव प्राप्त करने के लिए लाभार्थियों के अनुभवों को सुनता है। इस पद्धति का उपयोग विकास कार्यों के मानक को बढ़ाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है। लाभार्थी सर्वेक्षण पद्धति किसी गतिविधि के मूल्य का उसके प्राथमिक उपभोक्ताओं की धारणा के अनुसार मूल्यांकन करती है। यह विधि गुणात्मक है क्योंकि यह दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण के महत्व को प्राथमिकता देती है और साझा अनुभव के साथ-साथ अवलोकन के माध्यम से समझने का प्रयास करती है। अपने प्रदर्शन में सुधार करने की योजना बना रही सरकारों के लिए, विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है, कार्य/परियोजना/नीति के लिए अंतिम उपयोगकर्ता या इच्छित लाभार्थी द्वारा लगाया गया मूल्य और उसके जीवन पर इसका प्रभाव।

सेवा प्रदाताओं के समान, कार्यक्रमों/योजनाओं/नीतियों के लाभार्थी भी अनुभव करते हैं और देखते हैं कि कार्यक्रम/योजना/नीति कैसे वितरित की जा रही है। यहां तक कि जब सेवा प्रदाता और फील्ड कर्मचारी अपने निगरानी कार्य की उपेक्षा करते हैं, तब भी कार्यक्रमों/योजनाओं/नीतियों के लाभार्थियों से प्राप्त फीडबैक का उपयोग सेवा वितरण की स्थिति का आकलन करने और उनकी गुणवत्ता और उत्पादकता में महत्वपूर्ण अंतराल की पहचान करने के लिए किया जा सकता है।  किसी सेवा के बारे में लाभार्थियों की संतुष्टि का स्तर सेवा प्रदाता की जवाबदेही की गुणवत्ता को अच्छी तरह से प्रतिबिंबित कर सकता है। सेवाओं पर लाभार्थियों की प्रतिक्रिया भी उनकी आवाज़ को व्यक्त करने का एक अधिक लागत प्रभावी और व्यवस्थित तरीका है। यह एक सामूहिक ‘आवाज़’ है जो सरकारों पर सेवाओं में सुधार के लिए दबाव डाल सकती है। जब उपयोगकर्ता की प्रतिक्रिया बड़ी संख्या में लाभार्थियों द्वारा समर्थित आवाज में परिवर्तित हो जाती है, तो यह सरकारों को सार्वजनिक धन का बेहतर उपयोग करने, सेवाओं को फिर से डिजाइन करने, समस्याओं को सुधारने, सार्वजनिक व्यय के प्रभाव का आकलन करने में अंतराल को भरने और प्रदाताओं को जवाबदेह बनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।

प्रशिक्षण सत्र में भाग लेते प्रतिभागी

प्रशिक्षण कार्यक्रम को चर्चा किए गए प्रत्येक विषय को समझाने, चर्चा करने और समूह कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। प्रत्येक विषय के लिए एक रिपोर्टिंग प्रणाली में प्रतिभागियों के लिए क्विज़, एमसीक्यू परीक्षण और असाइनमेंट शामिल थे। इसका उद्देश्य प्रतिभागियों को सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए व्यावहारिक अनुभव देना और निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्यों को संबोधित करना है:

  • सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए वैज्ञानिक लाभार्थी सर्वेक्षण कैसे करें?
  • लाभार्थी सर्वेक्षण यह कैसे पता लगा सकता है कि कार्यक्रम दिशानिर्देशों के अनुसार लाभ लक्षित आबादी तक समय पर और प्रभावी तरीके से पहुंच गया है या नहीं?
  • लाभार्थी सर्वेक्षण के माध्यम से सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के प्रदर्शन के प्रभाव को कैसे कैप्‍चर किया जाए?
  • योजनाओं/कार्यक्रमों की प्रगति, प्रदर्शन और प्रभाव का आकलन करने के लिए एक ‘लाभार्थी सर्वेक्षण’ उपकरण डिज़ाइन करना।
सत्र का संचालन कर रहे पाठ्यक्रम संयोजक डॉ. के. प्रभाकर

प्रशिक्षण कार्यक्रम में लाभार्थी सर्वेक्षण का परिचय, संदर्भ और औचित्य, विशेषताएं, अनुप्रयोग, अनुसंधान/अध्ययन उद्देश्यों को परिभाषित करना, साक्षात्कार अनुसूची डिजाइन करने के लिए महत्वपूर्ण नियम, लाभार्थी सर्वेक्षण आयोजित करने के चरण, डेटा संग्रह उपकरण डिजाइन करना, नमूनाकरण, डेटा संग्रह, सर्वेक्षण टीमों को कैसे जुटाएं और प्रशिक्षित करें, फील्डवर्क और पर्यवेक्षण, फील्डवर्क/डेटा संग्रह की गुणवत्ता कैसे सुनिश्चित करें, ओडीके – कहीं भी डेटा एकत्र करें – मोबाइल ऐप-आधारित डेटा संग्रह, लाभार्थी अनुभवों का मात्रात्मक और गुणात्मक अनुमान, डेटा विश्लेषण और व्याख्या, लाभार्थी सर्वेक्षण निष्कर्षों, वकालत रणनीतियों और अनुवर्ती कार्रवाई आदि का प्रसार करना जैसे प्रमुख विषयों को शामिल किया गया।

प्रशिक्षण डिज़ाइन के भाग के रूप में, प्रतिभागियों ने निम्नलिखित के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए लाभार्थी सर्वेक्षण कार्यक्रम विकसित किए:

  • महिलाओं के विकास के लिए तमिलनाडु सहयोग की कार्यप्रणाली
  • एससी/एसटी और एससीसी छात्रों के लिए पूर्व और पश्‍च मैट्रिक छात्रवृत्ति/योजना
  • आपदा प्रबंधन
  • वीजेएनएल कार्यक्रम द्वारा येट्टनाहोल पेयजल परियोजना
  • जेलों की कार्यप्रणाली

डॉ. के. प्रभाकर, सहायक प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष (प्रभारी) योजना, निगरानी एवं मूल्‍यांकन केन्‍द्र (सीपीएमई) के ने प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।


समापन बिंदु उपकरणों के लिए आईटी सुरक्षा पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

सूचना संचार एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (सीआईसीटी), एनआईआरडीपीआर ने 28 जून 2023 को ‘एंड प्वाइंट डिवाइसेज के लिए आईटी सुरक्षा’ पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया।  कार्यक्रम का उद्देश्य कार्यस्थल की सुरक्षा बढ़ाना और कर्मचारियों को साइबर हमलों से बचाव के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस करना है।

प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य i) प्रतिभागियों को कार्यस्थल में सुरक्षा के महत्व और संगठन पर इसके प्रभाव के बारे में शिक्षित करना, ii) सुरक्षा ढांचे के तत्वों और विशेषताओं की व्यापक समझ प्रदान करना, iii) डेटा और खाता सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिभागियों को ज्ञान और सर्वोत्तम पद्धतियों  से लैस करना है, iv) प्रतिभागियों को मजबूत पासवर्ड और उन्हें बनाने और प्रबंधित करने की तकनीकों के महत्व पर शिक्षित करना, v) कमजोरियों और प्रति उपायों सहित नेटवर्किंग और मोबाइल सुरक्षा की समझ प्रदान करना, और vi) रोकथाम और शमन के लिए मैलवेयर और रणनीतियों के विभिन्न प्रकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. रवींद्र एस. गवली, प्रोफेसर और स्कूल प्रमुख के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने दिन की कार्यवाही के लिए सकारात्मक माहौल तैयार किया। डॉ. एम. वी. रवि बाबू, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष (प्रभारी) सीआईसीटी ने कार्यक्रम की शुरुआत की और इसके महत्व पर जोर दिया।

इसके अलावा, इंजीनियर धर्मेंद्र सिंह, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग एसोसिएट ने आईटी सुरक्षा का एक मूलभूत दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्होंने जोखिम त्रिकोण अवधारणा के माध्यम से संपत्तियों, खतरों और कमजोरियों के बीच संबंधों पर जोर देकर सुरक्षा विशेषताओं और तत्वों पर चर्चा की। प्रतिभागियों को विभिन्न प्रकार के साइबर हमलों और उनके अनुरूप जवाबी उपायों के बारे में जानकारी दी गई।

श्री एम. जगदीशबाबू, परियोजना इंजीनियर, सीडीएसी से आईएसईए ने ‘सुरक्षित रहें और सुरक्षा उपाय’ पर एक आकर्षक व्याख्यान प्रस्‍तुत किए। उन्होंने मानवीय लापरवाही त्रुटियों के खतरों पर प्रकाश डालते हुए पासवर्ड सुरक्षा जैसे आवश्यक विषयों को कवर किया।  इसके अलावा, उन्होंने व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा और ऑनलाइन गोपनीयता बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डाला। सत्र में फ़िशिंग घोटालों के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया और साइबर सुरक्षा पहलुओं में व्यावहारिक अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए लाइव वेब पोर्टल का प्रदर्शन किया गया।

डॉ. शिव राम कृष्णा, जेएनटीयूके-एपी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख ने ‘आपके डिजिटल जीवन की सुरक्षा’ पर अपनी विशेषज्ञता साझा की। उन्होंने व्यक्तिगत सूचना सुरक्षा, ऑनलाइन गोपनीयता और साइबर खतरों की रोकथाम के महत्व पर जोर दिया। सत्र में दो-कारक प्रमाणीकरण को लागू करने, कमजोरियों को ठीक करने के लिए सॉफ़्टवेयर को नियमित रूप से अपडेट करने और फ़िशिंग घोटालों के प्रति सतर्क रहने के महत्व पर प्रकाश डाला गया। डॉ शिव राम कृष्णा की अंतर्दृष्टि ने प्रतिभागियों को उनकी डिजिटल उपस्थिति सुरक्षित करने पर व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया।

श्री एम. सुंदरा चिन्ना, डेटा प्रोसेसिंग सहायक ने प्रतिभागियों को एनआईआरडीपीआर में एलएएन और डब्‍ल्‍यूएएन  संरचनाओं के बारे में बताया। उन्होंने नेटवर्क फ़ायरवॉल सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभाग स्तर पर सुरक्षा चौकियों की विस्तृत व्याख्या प्रदान की। प्रतिभागियों ने एंडपॉइंट उपकरणों की सुरक्षा के लिए इंट्रूशन प्रिवेंशन सिस्‍टम (आईपीएस) और इंट्रूशन डिटेंशन सिस्‍टम (आईडीएस) में अंतर्दृष्टि प्राप्त की। इसके अतिरिक्त, सत्र ने मैक्स सिक्योर एंटी-वायरस सुरक्षा समाधान पेश किया और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिए वास्तविक समय अपडेट के महत्व को रेखांकित किया।

इन प्रमुख वक्ताओं के योगदान ने एंडपॉइंट उपकरणों के लिए आईटी सुरक्षा के महत्वपूर्ण विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करके प्रशिक्षण कार्यक्रम को समृद्ध किया। उनकी विशेषज्ञता और आकर्षक प्रस्तुतियों ने प्रतिभागियों को कार्यस्थल सुरक्षा बढ़ाने के लिए व्यावहारिक ज्ञान और अंतर्दृष्टि प्रदान की।

कार्यक्रम में 30 कर्मचारियों की सक्रिय आंतरिक भागीदारी देखी गई, जो पारस्‍परिक परिचर्चा और व्यावहारिक प्रदर्शनों में शामिल हुए। प्रतिभागियों को जोखिम प्रबंधन, पासवर्ड सुरक्षा, सोशल मीडिया गोपनीयता और नेटवर्क सुरक्षा सहित आईटी सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं की मूल्यवान समझ प्राप्त हुई। उपस्थित लोगों ने कवर की गई विषयों पर संतुष्टि व्यक्त की और सत्र को जानकारीपूर्ण और व्यावहारिक पाया।


नौकरी के अवसर/प्रवेश अधिसूचना



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