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जेंडर कैलिडोस्कोप – आधुनिक चुनौतियों के बहुआयामी अन्वेषण के लिए जेंडर पर एक पैनी नज़र
गरीबी और असमानता आकलन पर आईएसएस परिवीक्षार्थियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
एसएचजी के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के निर्यात विपणन की संभावना पर विचार-विमर्श के लिए राष्ट्रीय कार्यशाला
महात्मा गांधी एनआरईजीएस में मामलों के प्रलेखन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में विकास पत्रकारिता पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
मामला अध्ययन: मेघालय में अदरक और दालचीनी लघु उद्यमों की संभावनाओं की खोज
एनआईआरडीपीआर के पदाधिकारियों ने एनएएआरएम, हैदराबाद में आयोजित राजभाषा कार्यशाला में भाग लिया
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जेंडर कैलिडोस्कोप – आधुनिक चुनौतियों के बहुमुखी अन्वेशषण के लिए जेंडर पर एक पैनी नजर
डॉ. वानिश्री जोसेफ
सहायक प्रोफेसर, जेंडर अध्ययन केंद्र, एनआईआरडीपीआर
‘जेंडर कैलिडोस्कोप’ प्रगति समाचार पत्र में एक नया और समर्पित आयाम है, जिसे एनआईआरडीपीआर में जेंडर अध्य यन केन्द्र द्वारा प्रारंभ किया गया है। यह आयाम जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जेंडर से संबंधित बहुआयामी और गतिशील मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिए बनाया गया है। प्रत्येक संस्करण में जेंडर से संबंधित विषयों पर गहन विश्लेषण, शोध निष्कर्ष और व्यावहारिक टिप्पणी होगी, जिसका उद्देश्य हमारे पाठकों को शिक्षित, सूचित और प्रेरित करना है। जेंडर कैलिडोस्कोप एक खंड और अधिक समझ, समानता और समावेश की दिशा में एक आंदोलन है। महत्वपूर्ण जेंडर मुद्दों को संबोधित करना और सूचित चर्चाओं को बढ़ावा देना दृष्टिकोण बदलने और सकारात्मक बदलाव लाने में एक आवश्यक भूमिका निभाएगा, और जेंडर कैलिडोस्कोप ऐसा करने का प्रस्ताव करता है।
जेंडर कैलिडोस्कोप का उद्देश्य शैक्षणिक सामग्री प्रदान करके जेंडर मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है जो कि जानकारीपूर्ण और विचारोत्तेजक दोनों है। यह जेंडर समानता और महिला सशक्तिकरण से लेकर किन्नार व्यक्तियों के अधिकारों और मान्यता तक के विषयों को संबोधित करेगा। व्यक्तिगत कहानियों, मामला अध्यअयन और वास्तविक जीवन के उदाहरणों के माध्यम से, जेंडर कैलिडोस्कोप का उद्देश्य जेंडर मुद्दों के मानवीय पक्ष को उजागर करते हुए पाठकों मे सहानुभूति और समझ का निर्माण करना है। अच्छी तरह से शोध किए गए लेख और डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रस्तुत कर, जेंडर कैलिडोस्कोप नीति निर्माताओं, चिकित्सकों और आम जनता को जेंडर संबंधी मुद्दों और प्रभावी हस्तक्षेपों की आवश्यकता के बारे में सूचित करेगा। इस पहल के माध्यम से, एनआईआरडीपीआर और जेंडर अध्य यन केन्द्रस खुद को जेंडर अनुसंधान और वकालत में अग्रणी के रूप में स्थापित करेंगे, जिससे उनकी वृद्धि और प्रतिष्ठा में योगदान मिलेगा। यह खंड अन्य संस्थानों, एनजीओ और सरकारी निकायों के साथ सहयोग के लिए दरवाजे खोलेगा, जिससे साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा जो जेंडर-केंद्रित कार्यों के प्रभाव को बढ़ा सकता है।
जेंडर कैलिडोस्कोप के हर अंक में अंतर्दृष्टिपूर्ण लेख, सम्मोहक कहानियाँ और आकर्षक चर्चाएँ पढ़ने के लिए बने रहें, खास तौर पर प्रगति समाचार पत्र में। इस पहल की सफलता के लिए आपकी भागीदारी और प्रतिक्रिया बहुत ज़रूरी है, और हम सार्थक प्रभाव डालने के लिए तत्पर हैं। साथ मिलकर हम एक ज़्यादा न्यायपूर्ण और समतापूर्ण दुनिया बना सकते हैं।
इस पहले संस्करण में 18वीं लोकसभा चुनाव में जेंडर प्रतिनिधित्व के बारे में जानकारी दी गई है। 2024 के भारतीय आम चुनाव के डेटा से जेंडर भागीदारी और प्रतिनिधित्व के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है, खास तौर पर हाल ही में पारित महिला आरक्षण अधिनियम के संदर्भ में, जिसके तहत संसद और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी और इसे पांच साल में लागू किया जाएगा। वर्तमान में, पुरुष उम्मीदवारों की संख्या में सबसे अधिक हैं, जो 90.26 प्रतिशत हैं, जबकि महिलाओं की संख्या केवल 9.71 प्रतिशत है और किन्न र व्यक्तियों की संख्या मात्र 0.024 प्रतिशत है। इसके बावजूद, पुरुषों (51 प्रतिशत) और महिलाओं (49 प्रतिशत) के बीच मतदान लगभग बराबर है, जो महिलाओं में मजबूत राजनीतिक भागीदारी को दर्शाता है। हालांकि, निर्वाचित प्रतिनिधियों में पुरुषों की संख्या 87 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं की संख्या 13 प्रतिशत है, जो महिलाओं के आरक्षण की आवश्यकता को उजागर करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधायी निकायों में महिलाओं की आवाज़ का अधिक पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो। निर्वाचित महिलाओं की संख्या राज्यों में काफी भिन्न होती है, पश्चिम बंगाल में महिला प्रतिनिधियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक (11) है, जबकि अरुणाचल प्रदेश और गोवा जैसे राज्यों में कोई भी महिला प्रतिनिधि नहीं है। इसके अलावा, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि चुनावों के संबंध में जेंडर-पृथक डेटा प्राप्त करना वर्तमान में चुनौतीपूर्ण है, और इन असमानताओं को बेहतर ढंग से समझने और उनका समाधान करने के लिए अधिक विस्तृत और सुलभ जेंडर-विभाजन वाले आंकड़ों की अत्यधिक आवश्यकता है।
महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करके निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच गंभीर जेंडर असंतुलन को दूर करने के लिए महिला आरक्षण अधिनियम 2023 लागू किया गया, जिससे महिलाओं का न्यूनतम प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा और संभवतः अधिक महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। जबकि अधिनियम विधायी भूमिकाओं में अधिक महिलाओं को अनिवार्य करेगा, यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण समर्थन संरचनाओं की आवश्यकता होगी कि महिलाएँ न केवल मौजूद हों बल्कि इन भूमिकाओं में प्रभावी हों, जिसमें प्रशिक्षण, सलाह और वित्तीय सहायता शामिल है। राजनीतिक दलों और नागरिक समाज को संभावित महिला उम्मीदवारों की पहचान करने, उन्हें प्रशिक्षित करने और उनका समर्थन करने के लिए अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए जो बिल के लागू होने के बाद आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ सकें और जीत सकें। तत्काल कार्रवाई में प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना, महिला उम्मीदवारों को वित्तीय और रसद सहायता प्रदान करना और राजनीतिक दलों को महिला उम्मीदवारों के लिए आंतरिक कोटा अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, शासन में महिलाओं के बढ़ते प्रतिनिधित्व के लाभों के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कार्यान्वयन प्रक्रिया की निरंतर निगरानी और मूल्यांकन का समर्थन किया जाना चाहिए जिससे कि महिला आरक्षण अधिनियम अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकें ।
इन्फोग्राफ़िक्स और मुख्य डेटा
गरीबी और असमानता आकलन पर आईएसएस परिवीक्षार्थियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
उद्यमिता विकास एवं वित्तीय समावेशन केंद्र (सीईडीएफआई), एनआईआरडीपीआर ने 29 अप्रैल से 3 मई 2024 के दौरान अपने हैदराबाद परिसर में भारतीय सांख्यिकी सेवा (आईएसएस) परिवीक्षार्थियों (45 -2023 बैच) के लिए ‘गरीबी और असमानता आकलन’ पर 5 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया, जिसे राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणाली प्रशिक्षण अकादमी (एनएसएसटीए), सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित किया गया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम को सिद्धांत, अभ्यास, अनुभवात्मक शिक्षा और अच्छे अभ्यासों से प्राप्त सीख का एक बेहतरीन मिश्रण प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था जो प्रतिभागियों को गरीबी और असमानता से संबंधित उभरते मुद्दों और समस्याजओं की विविध श्रेणी को समझने और उनका आकलन करने में सक्षम बनाएगा। गरीबी और असमानता को दूर करने के लिए डिज़ाइन की गई सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का आलोचनात्मक विश्लेषण करने के लिए कौशल और विशेषज्ञता को बढ़ाने की भी परिकल्पना की गई थी। गरीबी और असमानता के विभिन्न आयामों, खासकर ग्रामीण विकास के परिप्रेक्ष्य पर व्याख्यानों की एक श्रृंखला आयोजित की गई। सभी सत्रों में अंतःविषयक, साक्ष्य-आधारित और शोध-आधारित विषयों पर चर्चा की गई। विभिन्न स्थानों पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे 27 आईएसएस परिवीक्षार्थियों ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया।
डॉ. पार्थ प्रतिम साहू, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्य2क्ष, सीईडीएफआई तथा पाठ्यक्रम निदेशक ने पूरे कार्यक्रम की शुरुआत की और गरीबी और असमानता पर अवधारणाओं, मापन मुद्दों और विभिन्न समितियों पर एक व्यापक सत्र लिया। उन्होंने गरीबी और असमानता के वैश्विक परिदृश्यों पर भी चर्चा की। गरीबी और असमानता के विभिन्न उपायों के लाभ और हानि पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसके बारे में सांख्यिकी अधिकारियों को अवश्य पता होना चाहिए। उन्होंने नए उपायों, यानी एमडीपीआई के उपयोग और इससे संबंधित विभिन्न चिंताओं पर भी चर्चा की। उन्होंने मजबूत नीति निर्माण के लिए सही समय पर अच्छी गुणवत्ता वाले डेटा की आवश्यकता पर जोर दिया। ये सभी मुद्दे ग्रामीण विकास परिदृश्य में उभरते बदलावों, यानी एसडीजी का स्थानीयकरण, स्थानीय संस्थानों की भूमिका, अभिसरण, रिवर्स माइग्रेशन, गैर-कृषि क्षेत्र का उदय और प्रमुख आरडी और पीआर हस्तक्षेपों के संदर्भ में हैं।
ग्रामीण विकास में गरीबी और असमानता को संदर्भ में रखना, विश्लेआषणपरक ग्राम अध्ययन, बड़े पैमाने पर सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रम – मनरेगा, जेंडर, कौशल, अनौपचारिक क्षेत्र, संसाधन संपन्न ग्राम पंचायतों की संभावनाएं, डिजिटल विभाजन, सामाजिक लेखा परीक्षा आदि विषयों पर आधारित व्याख्यानों की एक श्रृंखला आयोजित की गई। इन सभी सत्रों में चर्चा को गरीबी और असमानता तथा उनके विभिन्न आयामों से जोड़ने का प्रयास किया गया। प्रतिभागियों को बड़ी संख्या में डेटासेट से भी अवगत कराया गया, जिनका उपयोग गरीबी और असमानता के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए किया जा सकता है।
एआई और एमएल के बढ़ते उपयोग से, डिजिटल डिवाइड, एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह और डेटा-संचालित शासन चुनौतियों के रूप में उभरे हैं। इन मुद्दों पर एक सत्र में विस्तार से चर्चा की गई। प्रतिभागियों को बताया गया कि कैसे एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह डिजिटल डिवाइड को बढ़ा सकता है, जिससे डेटा-संचालित शासन प्रक्रियाओं में भेदभाव हो सकता है। स्त्रोौत व्यक्ति डॉ. नटाणी ने निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित करने के लिए इन पूर्वाग्रहों को समझने और संबोधित करने के महत्व पर जोर दिया।
गरीबी और असमानता के महत्वपूर्ण आयामों में से एक अनौपचारिक क्षेत्र की उपस्थिति है। अनौपचारिक क्षेत्र की प्रकृति, विशेषताओं और मापन तथा अनौपचारिक श्रमिकों और उद्यमों को औपचारिक संस्थागत व्यवस्था में स्थानांतरित करने के लिए संभावित हस्तक्षेपों पर विस्तृत चर्चा की गई। इस चर्चा के माध्यम से, प्रतिभागियों को समग्र अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र के योगदान को मापने में शामिल जटिलताओं के बारे में गहन समझ प्राप्त हुई।
सतत विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण पर उभरती चर्चा में, पंचायत जैसी स्थानीय संस्थाएं गरीबी और असमानता को दूर करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। भारत में ग्राम पंचायत वित्त की विभिन्न रूपरेखाओं पर हाल के डेटासेट, मामलों और अच्छी पद्धतियों के साथ चर्चा की गई। संसाधन संपन्न ग्राम पंचायत सुनिश्चित करने के लिए कई संभावित रास्तों पर भी विचार-विमर्श किया गया। इस सत्र में प्रतिभागियों को भारत में ग्राम पंचायतों के भीतर संसाधन आबंटन और प्रबंधन की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी दी गई, साथ ही स्थानीय शासन में उनकी वित्तीय स्थिरता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए संभावित सुधार विकल्पों पर भी विचार की गई। प्रतिभागियों ने इस संबंध में प्रमुख चुनौतियों और अवसरों की पहचान करने के लिए चर्चा और विश्लेषण में भाग लिया, ताकि जमीनी स्तर पर संसाधनों के अपेक्षित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई योग्य रणनीति तैयार की जा सके।
ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और असमानता को कम करने के लिए कौशल विकास एक महत्वपूर्ण साधन है। डीडीयू-जीकेवाई के संबंध में कौशल विकास की भूमिका और क्षमता पर चर्चा की गई, जो पदस्थाईपन से जुड़ा कौशल कार्यक्रम है। प्रतिभागियों को जुटाने से लेकर कार्यक्रम की निगरानी तक की पूरी प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की गई।
यद्यपि हमारे पास गरीबी और असमानता के विभिन्न आयामों से संबंधित बड़ी संख्या में योजनाएं और कार्यक्रम हैं, लेकिन खराब प्रदर्शन, पारदर्शिता और निगरानी प्रणालियों की कमी के कारण, हमें इन कार्यक्रमों से वांछित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। प्रतिभागियों को एक उभरते उपकरण, यानी सामाजिक लेखापरीक्षा के बारे में जानकारी देने के लिए, ‘गरीबी-विरोधी कार्यक्रमों की पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार: सामाजिक लेखापरीक्षा प्रणाली से सीख’ पर एक सत्र आयोजित किया गया।
प्रतिभागियों को 20 से अधिक आजीविका मॉडल के साथ-साथ किफायती आवास प्रकारों का लाइव प्रदर्शन देखने के लिए आरटीपी ले जाया गया। गरीबी और असमानता को कम करने के लिए गांवों में ऐसी आजीविका को आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया जा सकता है। प्रतिभागियों को ई-संसाधनों और समृद्ध पुस्तक संग्रह के बारे में जानकारी देने के लिए पुस्तकालय का दौरा आयोजित किया गया था।
इन सत्रों के अलावा, प्रशिक्षण से पहले और बाद में प्रश्नोत्तरी भी आयोजित की गई। प्रत्येक प्रतिभागी का मूल्यांकन प्रश्नोत्तरी, निबंध और कक्षा में भागीदारी के आधार पर किया गया। पिछले सत्र में प्रशिक्षण प्रबंधन पोर्टल (टीएमपी) पर भी विस्तृत फीडबैक लिया गया। गरीबी और असमानता पर सभी प्रेजेंटेशन फाइलें और पेपर का एक सेट भी प्रतिभागियों से साझा किया गया। उम्मीद है कि सभी आईएसएस-प्रोबेशनर्स को यह कार्यक्रम उपयोगी लगेगा और वे इससे सीखी गई बातों को अपने पेशेवर काम में लागू करेंगे। कुल मिलाकर, जिस भावना से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था लगता है कि इसने वांछित परिणाम प्राप्तय किए हैं।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में बाहरी स्त्रोपत व्यक्तियों के अलावा एनआईआरडीपीआर के संकाय सदस्य प्रोफेसर एस. ज्योतिस, डॉ. एस. रमेश शक्तिवेल, डॉ. सुरजीत विक्रमन, डॉ. वनीश्री जोसेफ, डॉ. सी. धीरजा और डॉ. संध्या गोपाकुमारन ने भी सत्र चलाए। इस कार्यक्रम का संयोजन सीईडीएफआई के एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्य क्ष डॉ. पार्थ प्रतिम साहू ने किया।
(यह रिपोर्ट श्री गौरव भारती [आईएसएस (पी) – 2023] द्वारा डॉ. पार्थ प्रतिम साहू, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यगक्ष, सीईडीएफआई के इनपुट्स से तैयार की गई है।)
एसएचजी के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के निर्यात विपणन की संभावना पर विचार-विमर्श के लिए राष्ट्रीय कार्यशाला
ग्रामीण उत्पाद विपणन एवं संवर्धन, उद्यमिता विकास केंद्र (सीएमपीआरपीईडी), राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर), दिल्ली शाखा द्वारा 14 से 15 मई 2024 तक कैसुरीना हॉल, इंडिया हैबिटेट सेंटर लोधी रोड, नई दिल्ली में ‘स्वयं सहायता समूहों के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के निर्यात विपणन’ के दायरे पर विचार-विमर्श के लिए एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
एसएचजी के उत्पादों का विपणन एनआईआरडीपीआर और ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार की प्रमुख चिंताओं में से एक है। अधिकांश ग्रामीण उद्यमी/एसएचजी/उत्पादक समूह/पीजी/सीबीओ अपने उत्पादों का विपणन स्थानीय स्तर पर या सरस मेला/मेलों के माध्यम से करते हैं, और वे बड़े पैमाने पर उत्पादन और वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर विपणन के बारे में नहीं सोचते हैं। इस बाधा को दूर करने के लिए, सीएमपीआरपीईडी, एनआईआरडीपीआर दिल्ली शाखा ने इस दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला का उद्देश्य हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के निर्यात विपणन के लिए प्रतिभागियों की क्षमता का निर्माण करना, अपने उत्पादों के निर्यात के लिए निर्यात परिषदों, निर्यात संघों, दूतावासों, कॉर्पोरेट संघों आदि के साथ एसएचजी के संबंधों पर चर्चा करना और एसएचजी उत्पादों के निर्यात विपणन के लिए रोडमैप तैयार करना रहा।
उद्घाटन समारोह में, एनआईआरडीपीआर दिल्ली शाखा की सहायक प्रोफेसर एवं अध्य क्ष डॉ. रुचिरा भट्टाचार्य ने गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया।
उन्होंने कहा, “स्वयं सहायता समूहों का विकास और स्थिरता भारत सरकार और उसके विकास भागीदारों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। चूंकि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम अभूतपूर्व पैमाने पर पहुंच गया है, जिसमें लगभग 10 करोड़ महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं, इसलिए अब एसएचजी को उच्च-स्तरीय आर्थिक संस्थाओं के रूप में विकसित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जो लाभदायक होंगी और बाजारों से अच्छी तरह जुड़ी होंगी। इसलिए, स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाए गए उत्पादों का विपणन अब एसएचजी के उद्यमों की सफलता के प्रमुख स्तंभों में से एक है।”
इसके अलावा, सुश्री स्वाति शर्मा, संयुक्त सचिव (आरएल) ग्रामीण विकास मंत्रालय, सुश्री कैरलिन खोंगवार देशमुख, अपर सचिव, ग्रामीण विकास मंत्रालय, श्री चरणजीत सिंह, अपर सचिव (ग्रामीण आजीखविका) और डॉ. जी नरेंद्र कुमार, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर द्वारा दीप प्रज्व लन किया गया।
डॉ. सी.एच. राधिका रानी, निदेशक (एनआरएलएम-आरसी) एवं केंद्र अध्यदक्ष (सीएमपीआरपीईडी), एनआईआरडीपीआर ने स्वागत भाषण प्रस्तुुत किया। उन्होंने हब और स्पोक मॉडल में अन्य उद्यमों का समर्थन करने वाले उच्च-स्तरीय उद्यम बनाने, मौजूदा गैर-कृषि उद्यमों की मैपिंग, क्षमता निर्माण ढांचे को विकसित करने, एसएचजी के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के निर्यात के लिए आवश्यक नियामक मानदंडों और अनुपालन, और एसएचजी उत्पादों के निर्यात के लिए निर्यात संवर्धन परिषदों, भारतीय दूतावासों आदि के साथ सहयोग के बारे में बात की।
अपने संबोधन में सुश्री स्वाति शर्मा, संयुक्त सचिव (ग्रामीण आजीविका) एमओआरडी ने कहा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय और एनआरएलएम की भूमिका मुख्य रूप से ऐसा अनुकूल वातावरण तैयार करना है, जहां दीदियों को न केवल तकनीकी सहायता बल्कि बैंक लिंकेज के मामले में भी सुविधाएं प्रदान की जाएं। वह चाहती थीं कि एसआरएलएम/दीदियां बाजार की मांग को समझें और मांग के अनुसार उत्पादन में शामिल हों। सुश्री स्वाति शर्मा ने कहा, “हमें इन उद्योगों के साथ एसएचजी दीदियों को जोड़ने के लिए एफआईसीसीआई, सीआईआई, एसोचेम आदि से संपर्क करना चाहिए।” उन्होंने कहा कि एनआरएलएम निर्यात संवर्धन परिषदों, वाणिज्य मंत्रालय, डीजीएफटी और इसी तरह की एजेंसियों/विभागों के साथ अभिसरण/साझेदारी करने का भी प्रयास कर रहा है।
सुश्री कैरलिन खोंगवार देशमुख, अपर सचिव, एमओआरडी ने इस बात पर जोर दिया कि स्थानीय स्वयं सहायता समूहों के सामने आने वाली रणनीतियों और मुद्दों तथा समस्याओं पर चर्चा करने तथा कुछ मानकों और गुणवत्ताओं के अनुरूप ढलने पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। “चूंकि हम वैश्विक बाजार को देख रहे हैं, इसलिए गुणवत्ता मानक और गुणवत्ता हस्तक्षेप अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए, जब हम इस बारे में सोचें कि वैश्विक बाजार में कैसे अपनी पहचान बनाई जाए, तो इन पहलुओं को ध्यान में रखना होगा।”
श्री चरणजीत सिंह, अपर सचिव (ग्रामीण आजीविका), एमओआरडी ने गुणवत्ता एवं प्रमाणन के महत्व, निर्यात साझेदारों की तलाश तथा स्वयं सहायता समूह दीदियों की कहानी, उत्पादों आदि के विपणन की आवश्यकता के बारे में बात की।
अपने मुख्य भाषण में डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर ने लखपति दीदी पहल के आगे बढ़ने पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “स्वयं सहायता समूह आंदोलन का उद्देश्य गरीब महिलाओं को गरीबी से बाहर निकालना था, लेकिन यह उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ” उन्होंबने कहा। महानिदेशक ने गुणवत्ता बनाए रखने, मूल्य निर्धारण, उत्पादन और अनुकूलन के लिए समूह, पुनः लागूकरण का महत्व, संभावित उत्पादों की पहचान, घरेलू बाजार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए व्यवसाय योजना और चार पी यानी प्रोडक्टघ, प्राईज, प्रमोशन और प्ले स पर प्रकाश डाला। डॉ. नरेंद्र कुमार ने एसएचजी उत्पादों के निर्यात के लिए एक अच्छा ढांचा विकसित करने, एक अच्छी व्यवसाय योजना बनाने और प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करने के महत्व पर जोर देते हुए अपना भाषण समाप्त किया।
श्री चिरंजी लाल, सहायक निदेशक (सीएमपीआरपीईडी), एनआईआरडीपीआर दिल्ली शाखा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
कार्यशाला में शामिल मुद्दों में एसएचजी उत्पादों के भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा निर्यात की चुनौतियां और अवसर, निर्यात विपणन की प्रक्रियाएं, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ग्रामीण एसएचजी द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के विपणन की संभावनाएं, ई-कॉमर्स की ओर एसएचजी उत्पादों के निर्यात की संभावनाएं, प्रभावी डिजाइनिंग और पैकेजिंग, लेबलिंग और बार कोडिंग रणनीतियों के माध्यम से विपणन क्षमता को अधिकतम करना, निर्यात के लाभ, आयात-निर्यात कोड प्राप्त करने की प्रक्रिया, निर्यात बाजार में एसएचजी के प्रवेश को सुविधाजनक बनाना और एसएचजी उत्पादों के निर्यात विपणन के लिए निर्यात परिषदों, भारतीय दूतावासों, भारतीय प्रवासियों के साथ सहयोग करना शामिल था।
उपरोक्त सत्रों के दौरान तकनीकी मुद्दों जैसे विनियामक अनुपालन, सीमा शुल्क विनियम (निर्यात दस्तावेज और शुल्क), उत्पाद मानक (लेबलिंग, डिजाइनिंग, पैकेजिंग, बारकोडिंग, आदि), बौद्धिक संपदा अधिकार (ट्रेडमार्क, पेटेंट, कॉपीराइट), शिपिंग चुनौतियां, सांस्कृतिक अंतर और भाषा बाधाएं, प्रचार और विपणन, गुणवत्ता नियंत्रण, एसएचजी उत्पादों के निर्यात के लाभ पर भी चर्चा की गई।
इसके अलावा, कार्यशाला के दौरान निर्यात के लिए एसएचजी को सुविधा प्रदान करने की रणनीतियों, अर्थात एसएचजी का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, प्रमाणन और गुणवत्ता आश्वासन, बाजार उत्पाद अनुसंधान और प्रवृत्ति विश्लेषण तथा निर्यात संवर्धन निकायों के साथ संपर्क के लिए तंत्र पर भी चर्चा की गई।
तकनीकी सत्रों और पैनल चर्चाओं में भाग लेने वाले विषय विशेषज्ञों और स्त्रोात व्यक्तियों में शामिल थे, डॉ एम सुंदर, संयुक्त निदेशक, हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद (एचईपीसी), श्री राहुल रंजन, कार्यक्रम अधिकारी, हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच), श्री जसवंत कसाना, प्रधान, श्री आर.पी. सिंह, निदेशक, भारतीय सूक्ष्म तथा लघु एवं मध्यम उद्यम फेडरेशन (एफआईएसएमई), श्री मयूर गुप्ता, उप प्रबंधक, भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन संघ (ट्राइफेड), सुश्री भव्या जग्गी, श्रेणी प्रबंधक, सीमा पार व्यापार, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी), डॉ शक्ति सागर कटरे, सहायक प्रोफेसर, एनआईएफटी, श्री मानस चुघ, निर्यात सलाहकार, श्री सी.पी. शर्मा, अध्यक्ष, हथकरघा हस्तशिल्प निर्यातक कल्याण संघ (एचएचईडब्ल्यूए), श्री भरत दीप वढेरा, महासचिव और श्री मानस चुघ, निर्यात सलाहकार ।
सुश्री स्वाति शर्मा, संयुक्त सचिव (ग्रामीण आजीविका) ग्रामीण विकास मंत्रालय और डॉ. जी. नरेन्द्र कुमार, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर समापन सत्र में भाए और समापन भाषण प्रस्तुरत किए।
महात्मा गांधी एनआरईजीएस में मामलों के प्रलेखन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
मजदूरी रोजगार और आजीविका केंद्र, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) ने 20 से 22 मई 2024 तक अपने हैदराबाद परिसर में महात्मा गांधी एनआरईजीएस में मामलों के प्रलेखन पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। महात्मा गांधी नरेगा में मामलों की पहचान और प्रलेखन कैसे किया जाए, इस पर जानकारी हासिल करने के लिए ग्यारह राज्यों के कुल चौंतीस प्रतिभागियों को तीन दिनों के लिए शामिल किया गया।
इस परिवर्तनकारी योजना के तहत पारदर्शिता, जवाबदेही और संसाधनों का अपेक्षित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए मामलों का प्रभावी प्रलेखन अनिवार्य है। इस संदर्भ में, इसकी शुरुआत से लेकर अब तक किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। हालाँकि, इन प्रयासों और प्राप्त परिणामों का दस्तावेज़ीकरण करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। जबकि विशिष्ट राज्यों या क्षेत्रों में उल्लेखनीय परिवर्तन और नवाचार शुरू किए गए हैं, व्यवस्थित प्रलेखन की अनुपस्थिति ने उन्हें अन्य क्षेत्रों में दोहराने और प्रसारित करने में बाधा उत्पन्न की है। कार्यान्वयन अधिकारियों को, उनके सराहनीय कार्य के बावजूद, अपने अनुभवों, सीखे गए सबक और सफल पद्धतियों को प्रभावी ढंग से कवर करने और साझा करने में बाधाओं का सामना करना पड़ा है। नतीजतन, क्रॉस-लर्निंग और स्केल-अप हस्तक्षेप के मूल्यवान अवसर छूट गए हैं। एमजीएनआरईजीएस की पूरी क्षमता का दोहन करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि सफलताओं को दोहराया जाए दस्तावेज़ीकरण और प्रसार में इस अंतर को दूर करना आवश्योक है। इसके अतिरिक्त, जमीनी स्तर और प्रत्यक्ष लेखों से आख्यानों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। यह गहराई और मानवीय दृष्टिकोण जोड़कर प्रलेखन प्रक्रिया को समृद्ध करता है। ये कहानियाँ लाभार्थियों के वास्तविक अनुभवों के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं, जो उनके जीवन और आजीविका पर एमजीएनआरईजीएस के ठोस प्रभावों को प्रदर्शित करती हैं। इन आख्यानों का प्रलेखन करने से अधिकारियों को कार्यक्रम की प्रभावकारिता, समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों और सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की सूक्ष्म समझ प्राप्त करने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, जमीनी स्तर की कहानियाँ सशक्त समर्थन उपकरण के रूप में काम करती हैं, हाशिए पर पड़े समूहों की आवाज़ को बढ़ाती हैं और सामाजिक-आर्थिक विषमताओं से निपटने में एमजीएनआरईजीएस की भूमिका पर ज़ोर देती हैं। यह बदले में समावेशी और सतत ग्रामीण विकास को बढ़ावा देता है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य प्रतिभागियों को महात्मा गांधी एनआरईजीएस के तहत मामलों के प्रलेखन में गहन समझ और व्यावहारिक कौशल से लैस करना था। इसमें परिचर्चात्माक व्याख्यान, मामला अध्य यन, समूह चर्चा और रोल-प्ले के साथ-साथ व्यावहारिक अभ्यास का मिश्रण शामिल था। प्रशिक्षण कार्यक्रम महात्मा गांधी एनआरईजीएस और अधिनियम के विवरण, केस और सर्वोत्तम अभ्यास के बीच अंतर को समझने के साथ शुरू हुआ, इसके बाद डेटा संग्रह के गुणात्मक और मात्रात्मक उपकरणों की बुनियादी समझ, केस प्रलेखन में आईटी और जीआईएस की भूमिका, केस लेखन पद्धति, केस प्रलेखन में समावेशिता की भावना, इसके बाद महात्मा गांधी एनआरईजीएस में मामला प्रलेखन का महत्व बताया गया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत से पहले, समूह चर्चा और रोल-प्ले के लिए प्रतिभागियों के साथ केसलेट साझा किए गए। रोल-प्ले सत्रों में प्रतिभागियों का उत्साह स्पष्ट था। प्रतिभागियों ने सराहना की कि केस प्रलेखन के तत्वों पर कैसे चर्चा और विश्लेषण किया गया। डॉ. सोनल मोबार रॉय, सहायक प्रोफेसर, मजदूरी रोजगार एवं आजीविका केन्द्र ने प्रशिक्षण कार्यक्रम का संयोजन किया।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में विकास पत्रकारिता पर प्रशिक्षण कार्यक्रम
विकास प्रलेखन एवं संचार केंद्र (सीडीसी), एनआईआरडीपीआर ने 20 से 22 मई 2024 तक संस्थान के हैदराबाद परिसर में ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में विकास पत्रकारिता’ पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।
पत्रकारों के लिए एआई प्रशिक्षण के क्षेत्र में दो विशेषज्ञ – श्री सुनील प्रभाकर, सलाहकार, मातृभूमि ऑनलाइन और श्री पी.एम. नारायणन, मुख्य निर्माता (दक्षिण एशिया), एआरडी फर्स्ट जर्मन टीवी, दिल्ली – प्रशिक्षण कार्यक्रम के स्त्रोमत व्यक्ति थे। डॉ. ज्योतिस सत्यपालन, प्रोफेसर एवं अध्य,क्ष, सीडीसी और डॉ. एम.वी. रविबाबू, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्य,क्ष, सीआईसीटी ने सत्रों को संचालित किया ।
उद्घाटन सत्र में, डॉ. ज्योतिस सत्यपालन, प्रोफेसर एवं अध्य.क्ष, सीडीसी एवं पाठ्यक्रम निदेशक ने स्वागत भाषण प्रस्तुित किया। श्री कृष्ण राज, सहायक संपादक, सीडीसी एवं पाठ्यक्रम संयोजक ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि, डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर, स्त्रोठत व्यक्ति श्री सुनील प्रभाकर एवं श्री पी.एम. नारायणन का परिचय कराया तथा डॉ. ज्योतिस ने पुष्पगुच्छ देकर उनका स्वागत किया। डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आई.ए.एस., महानिदेशक ने उद्घाटन भाषण प्रस्तुवत किया। उन्होंने ग्रामीण विकास क्षेत्र में शीर्ष क्षमता निर्माण संगठन, ग्रामीण विकास मंत्रालय के लिए एक विचार-भंडार और केंद्रीय तकनीकी सहायता एजेंसी के रूप में एनआईआरडीपीआर द्वारा निभाई गई विभिन्न भूमिकाओं पर प्रकाश डाला। व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए, उन्होंने मीडिया उद्योग सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में एआई द्वारा पेश की जाने वाली संभावनाओं और अपेक्षाओं के बारे में विस्तार से बताया। महत्वहीन घटनाओं के बार-बार सुर्खियाँ बनने की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए, उन्होंने पत्रकारों को आम आदमी के वास्तविक मुद्दों को प्रमुखता देकर अधिक केंद्रित और सकारात्मक रिपोर्टिंग की आवश्यकता के बारे में याद दिलाया।
3 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम पत्रकारिता में एआई के मूल सिद्धांतों पर केंद्रित था। इसमें समाचार एकत्रीकरण, रिपोर्टिंग और वितरण पर प्रासंगिकता और संभावित प्रभाव पर जोर दिया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य डेटा माइनिंग, पैटर्न पहचान और सामग्री निर्माण के लिए एआई-संचालित उपकरणों के बारे में जानकारी प्रदान करना था, प्रतिभागियों में कामकाजी पत्रकार और पत्रकारिता के छात्र शामिल थे, जो उन्हें सामाजिक मुद्दों, आर्थिक विकास और मानवाधिकारों के बारे में अधिक सूक्ष्म कहानियों को उजागर करने और बताने में सहायता कर सकते हैं। कार्यक्रम में पारस्पकरिक सत्र शामिल थे जहाँ उपस्थित लोग क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा निर्देशित एआई उपकरणों के साथ प्रयोग कर सकते थे।
इसने स्वचालित सामग्री उत्पादन और पत्रकारिता की अखंडता के बीच संतुलन की खोज करके पत्रकारिता में एआई को एकीकृत करने की नैतिक सोच और चुनौतियों पर और अधिक गहराई से चर्चा की। इसमें विकास पत्रकारिता में सफल एआई अनुप्रयोगों को प्रदर्शित करने वाले मामला अध्यसयन शामिल थे, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे जटिल मुद्दों की रिपोर्टिंग में एआई कैसे सहायता कर सकता है। कार्यक्रम की योजना इस तरह से बनाई गई थी कि प्रतिभागी एआई उपकरणों का उपयोग करके अपनी खुद की विकासात्मक कहानी तैयार करें, जिससे एआई और पत्रकारिता के बीच तालमेल की व्यावहारिक समझ विकसित हो सके।
तीन दिनों में चलाई गई नौ सत्रों में स्त्रोात व्यक्तियों ने कई विषयों पर चर्चा की। श्री पी. एम. नारायणन ने बताया कि विकास पत्रकार को किस तरह से कहानियाँ सुनानी चाहिए, उन्होंने ऐसे उदाहरणों का हवाला दिया जो संदर्भ में पाठ को रखने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। दक्षिण एशिया में तीसरी दुनिया के देशों में रिपोर्टिंग के अपने अनुभव को साझा करते हुए, श्री पी. एम. नारायणन ने बताया कि कैसे एआई स्टोरीबोर्ड बनाने में मदद कर सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एआई मानव बुद्धिमत्ता की जगह नहीं ले सकता क्योंकि इसमें विकास के मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव है। उन्होंने अवधारणाओं में बदलावों के बारे में भी बताया – प्रसारण से लेकर मल्टीकास्टिंग और नैरोकास्टिंग तक।
श्री सुनील प्रभाकर ने भारत में सोशल मीडिया उपयोगकर्ता जनसांख्यिकी का अवलोकन प्रस्तुत किया। उन्होंने एआई प्रौद्योगिकियों की प्रासंगिकता और क्षमता, समाचार एकत्रीकरण, रिपोर्टिंग और वितरण पर उनके प्रभाव और डेटा माइनिंग, पैटर्न पहचान और सामग्री निर्माण के लिए एआई-संचालित उपकरणों पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे एआई -संचालित उपकरण पत्रकारों को सामग्री निर्माण, त्वरित बड़े डेटा विश्लेषण और व्यक्तिगत समाचार वितरण में सहायता कर सकते हैं। उन्होंने सरकार में जनरेटिव एआई के लाभ, जनरेटिव एआई का उपयोग करने के नुकसान और डीप फेक जैसे विषयों पर बात की। उन्होंने जनरेटिव एआई टूल के उपयोग, सही टूल होने के महत्व, जनरेटिव एआई एप्लिकेशन परिदृश्य, जनरेटिव एआई एप्लिकेशन, एआई लेखन, संपादन, अनुवाद और छवि, वीडियो और ऑडियो जनरेशन टूल के बारे में भी बात की।
प्रतिभागियों को एआई उपकरणों का उपयोग करके विकासात्मक कहानियाँ बनाने के तरीके समझाए गए, जैसे कि जेमिनी और चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम)। अन्य विषयों में भारतीय एआई चैट बोट्स और एआई अनुवादक जैसे कि भाषिणि, मल्टीमॉडल लार्ज लैंग्वेज मॉडल, चैटजीपीटी का उपयोग कैसे करें, रिट्रीवल-ऑगमेंटेड जेनरेशन (आरएजी), प्रॉम्प्ट बनाने की कला, जनरेटिव एआई उपकरण और तकनीक, पुनर्लेखन, संपादन, सारांश, अनुवाद, पैराफ्रेशिंग, साहित्य समीक्षा, बिंग चैट, माइक्रोसॉफ्ट को-पायलट, बिंग इमेज क्रिएटर, डीएएलएल-ई, कैनवा, गामा आदि शामिल थे।
प्रो. ज्योतिस सत्यपालन ने प्रतिभागियों को भारत सरकार के प्रमुख ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की रूपरेखा बताई। उन्होंने विकास क्षेत्र, समानता क्षेत्र, विकास केंद्र बनाम ग्राम आत्मनिर्भरता, गरीबी उन्मूलन के दृष्टिकोण, गरीबी उन्मूलन के लिए देश-वार दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय मामला अध्ययन से कुछ अवलोकन, ग्रामीण संपदा सूचकांक बनाम मनरेगा द्वारा सृजित श्रम दिवस, मनरेगा के तहत कार्यों का योगदान और दायरा, महात्मा गांधी नरेगा: संपत्ति निर्माण की चिंताएं और रणनीतियां, मनरेगा के तहत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्य और कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन आदि की अवधारणाओं को समझाया।
डॉ. एम.वी. रविबाबू ने इस सत्र में एनआईआरडीपीआर में आरडी एवं पीआर में एआई पर प्रस्तावित उत्कृष्टता केंद्र के हिस्से के रूप में विभिन्न भविष्य की योजनाओं/गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताया। ग्रामीण विकास और पंचायती राज में कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर स्कोपिंग कार्यशाला को याद करते हुए, उन्होंने एआई को आरडी एवं पीआर में डिजिटल परिवर्तन के रूप में समझाया। विषयों में कृषि में एआई और किसान एआई, फार्मोनॉट, कल्टीवेट, एग्रोनेक्स्ट आदि जैसे वास्तविक समय उपयोग के मामले शामिल थे। इसके अलावा, उन्होंने जियो सड़क, एसआईएसडीपी, भुवन, यूएसजीएस, मिशन अंत्योदय, पंचायती राज मंत्रालय, लाइब्रेरी जेनेसिस, साइ-हब आदि की वेबसाइटें बनाने/विकसित करने के लिए आरडी एवं पीआर से संबंधित विभिन्न डेटा स्रोतों को भी साझा किया।
समापन सत्र में श्री सुनील प्रभाकर, डॉ. ज्योतिस सत्यपालन और डॉ. एम.वी. रविबाबू ने प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर दिए। डॉ. ज्योतिस सत्यपालन ने प्रत्येक प्रतिभागी से फीडबैक भी मांगा। इसके अलावा, श्री सुनील प्रभाकर, डॉ. ज्योतिस सत्यपालन और डॉ. एम. वी. रविबाबू ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए।
तीन दिवसीय कार्यक्रम में पत्रकारों, पत्रकारिता के छात्रों, संकाय और इन-हाउस संकाय सदस्यों और कर्मचारियों सहित लगभग 30 प्रतिभागियों ने भाग लिया। फीडबैक के अनुसार, प्रतिभागियों ने पाया कि प्रशिक्षक पाठ्यक्रम की सामग्री को समझाने में अत्यधिक प्रभावी थे और उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण ने उनमें पत्रकारिता गतिविधियों में एआई का उपयोग करने का आत्मविश्वास पैदा किया।
मामला अध्ययन:
मेघालय में अदरक और दालचीनी के सूक्ष्म लघु उद्यमों की संभावनाओं की खोज
श्री अभिषेक जैन
छात्र, प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (ग्रामीण प्रबंधन),
एनआईआरडीपीआर
मेघालय के खूबसूरत री भोई जिले में अदरक और दालचीनी की खेती और प्रसंस्करण महत्वपूर्ण गैर-लकड़ी वन उत्पाद (एनटीएफपी) के रूप में उभरे हैं, जो ग्रामीण समुदायों के लिए आशाजनक आर्थिक अवसर प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) में प्रबंधन (ग्रामीण प्रबंधन) में स्नातकोत्तर डिप्लोमा के भाग के रूप में किया गया यह शोध इन एनटीएफपी सूक्ष्म उद्यमों के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं पर गहराई से विचार करता है। यह लेख इस परिवर्तनकारी परियोजना से लेखक के अनुभवों और निष्कर्षों को साझा करता है।
आजीविका निर्भरता और आय स्रोत
री भोई जिले के उमलिंग उपखंड में स्थित उमडेन खासी गांव के, अधिकांश परिवार अपनी आजीविका के लिए अदरक और दालचीनी पर बहुत अधिक निर्भर हैं। इन फसलों, विशेष रूप से अदरक की मौसमी प्रकृति, उनकी वित्तीय स्थिरता को प्रभावित करती है। जबकि अदरक जल्दी रिटर्न देता है, दालचीनी के लिए लंबी अवधि के निवेश की आवश्यकता होने पर भी एक बार स्थापित होने के बाद सतत आय प्रदान करती है। इन फसलों को मिलाने से किसानों के आय स्रोतों में उल्लेखनीय विविधता आती है।
जैव विविधता संरक्षण अभ्यास
अध्ययन में स्थानीय किसानों द्वारा कृषि वानिकी और जैविक खेती के तरीकों को अपनाने का पता लगाया गया। अदरक और दालचीनी की खेती को मौजूदा वन क्षेत्र के साथ एकीकृत करने से न केवल जैव विविधता बढ़ती है, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य को भी बढ़ावा मिलता है और कटाव को रोकता है। समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयास सतत पद्धतियों का समर्थन करते हैं, जिससे पर्यावरण और स्थानीय आजीविका को लाभ होता है।
व्यवसाय मॉडल और बाजार की गतिशीलता
उमदेन खासी में सूक्ष्म उद्यमों द्वारा विभिन्न व्यवसाय मॉडल अपनाए जाते हैं, जिनमें सहकारी समितियां, प्रत्यक्ष विपणन, अनुबंध खेती, मूल्य संवर्धन उद्यम और सामाजिक उद्यम शामिल हैं। प्रत्येक मॉडल की अपनी ताकत और चुनौतियां हैं। उदाहरण के लिए, सहकारी समितियां बाजार तक पहुंच और सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाती हैं, जबकि प्रत्यक्ष विपणन से उच्च लाभ मार्जिन मिल सकता है, लेकिन इसके लिए मजबूत विपणन कौशल की आवश्यकता होती है।
अदरक और दालचीनी को सुखाने, पीसने और तेल निकालने जैसी मूल्य-संवर्द्धन प्रक्रियाएं लाभप्रदता को काफी हद तक बढ़ाती हैं। हालांकि, बाजार की सफलता के लिए उच्च गुणवत्ता मानकों को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। बाजार तक पहुंच एक महत्वपूर्ण कारक बनी हुई है, जिसमें व्यापक बाजारों तक पहुंचने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार और विश्वसनीय परिवहन सेवाएं आवश्यक हैं।
चुनौतियाँ और समाधान
किसानों और सूक्ष्म उद्यमों को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें सीमित तकनीकी ज्ञान, इनपुट की उपलब्धता, जलवायु भेद्यता, बाजार तक पहुँच, मूल्य में उतार-चढ़ाव और अपर्याप्त नीति समर्थन शामिल हैं। शोध में इन चुनौतियों के लिए व्यापक समाधान प्रस्तावित किए गए हैं:
1. बाजार पहुंच और आधारभूत संरचना में सुधार: सहकारी विपणन नेटवर्क स्थापित करना, ऑनलाइन बाजार मंच विकसित करें और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ साझेदारी की सुविधा प्रदान करना। मेलों और प्रदर्शनियों के माध्यम से बाजार की दृश्यता बढ़ाना।
2. वित्तीय सेवाओं को बढ़ाना: सूक्ष्म वित्त संस्थानों और स्थानीय बैंकों के साथ साझेदारी के माध्यम से सब्सिडी वाले ऋण सुविधाओं की वकालत करें। जिला वाणिज्य और उद्योग केंद्रों (डीसीआईसी) और नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन एंड रीच एनईसीटीएआर के सहयोग से वित्तीय प्रबंधन और संसाधनों तक पहुँच में सुधार के लिए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को मजबूत करना।
3. क्षमता निर्माण: उन्नत कृषि तकनीकों, संधारणीय पद्धतियों और व्यवसाय प्रबंधन में प्रशिक्षण प्रदान करना। ब्रांडिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग में मार्गदर्शन के माध्यम से व्यवसाय विकास का समर्थन करना।
4. नीति और संस्थागत समर्थन: कृषि, ग्रामीण विकास और उद्यमिता से संबंधित सरकारी योजनाओं का प्रभावी अभिसरण सुनिश्चित करना। नियामक आवश्यकताओं को सरल बनाने और कर प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए नीति सुधारों की वकालत करना।
5. संधारणीय पद्धतियों को बढ़ावा देना: जैविक खेती को प्रोत्साहित करें और विपणन क्षमता बढ़ाने के लिए जैविक प्रमाणन प्राप्त करें। संधारणीय संसाधन प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण पर केंद्रित समुदाय-आधारित संरक्षण परियोजनाओं का समर्थन करना।
व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि
मेघालय में किसानों और सूक्ष्म उद्यमों के साथ मिलकर काम करना एक उन्नत अनुभव रहा है। कई चुनौतियों के बावजूद, उनके लचीलेपन और अपने काम के प्रति समर्पण वास्तव में प्रेरणात्मक रहा है। समुदाय के सदस्यों के बीच सहयोगात्मक भावना ने बाजार पहुंच के मुद्दों पर काबू पाने और वित्तीय स्थिरता में सुधार करने में सहकारी प्रयासों की क्षमता को उजागर किया।
इस परियोजना का सबसे पुरस्कृत पहलू क्षमता निर्माण पहलों के सकारात्मक प्रभाव को देखना था। एनईसीटीएआर के सहयोग से आयोजित जैविक खेती तकनीकों और कीट नियंत्रण पर प्रशिक्षण सत्रों को विशेष रूप से अच्छी प्रतिक्रिया मिली। किसानों ने स्थायी पद्धतियों को अपनाने में नए सिरे से विश्वास व्यक्त किया जो उनकी आजीविका को लाभ पहुंचाते हैं और पर्यावरण संरक्षण में योगदान करते हैं।
निष्कर्ष
शोध में मेघालय में ग्रामीण आजीविका को बढ़ाने के लिए अदरक और दालचीनी के सूक्ष्म उद्यमों और जैव विविधता संरक्षण में योगदान करने की महत्वपूर्ण क्षमता को रेखांकित किया गया है। बाजार पहुंच, वित्तीय सेवाओं, क्षमता निर्माण, नीति समर्थन और स्थायी पद्धतियों को संबोधित करके, इन महत्वपूर्ण ग्रामीण उद्यमों के वृद्धि और विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सकता है।
इस परियोजना ने ग्रामीण उद्यमिता और स्थिरता की जटिल गतिशीलता में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की है, जिससे ग्रामीण विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण के महत्व को बल मिला है। जैसा कि हम इस तरह की पहलों का पता लगाना और उनका समर्थन करना जारी रखते हैं, मेघालय और उससे आगे के ग्रामीण समुदायों के लिए भविष्य आशाजनक दिखता है।
(यह नोट प्रोफेसर ज्योतिस सत्यपालन, डॉ. पार्थ प्रतिम साहू, एसोसिएट प्रोफेसर, एनआईआरडीपीआर और श्री निकोलस रिन्जा, संकाय सदस्य, एसआईआरडी, मेघालय के मार्गदर्शन में तैयार की गई 3 महीने की इंटर्नशिप रिपोर्ट से लिया गया है)
एनआईआरडीपीआर के पदाधिकारियों ने एनएएआरएम, हैदराबाद में राजभाषा कार्यशाला में भाग लिया
एनआईआरडीपीआर के श्री ई. रमेश, वरिष्ठ हिंदी अनुवादक और श्रीमती वी. अन्नपूर्णा, कनिष्ठ हिंदी अनुवादक ने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंध अकादमी (एनएएआरएम), हैदराबाद में 28-29 मई 2024 तक आयोजित ‘राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन का अनुपालन’ शीर्षक दो दिवसीय हिंदी कार्यशाला में भाग लिया।
उद्घाटन सत्र में एनएएआरएम के संयुक्त निदेशक जी. वेंकटेश्वरलू, प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एस. के. सोम और संयुक्त निदेशक (राजभाषा) डॉ. जे. रेणुका उपस्थित थे।
डॉ. एस.के. सोम ने वैज्ञानिक संस्थानों में हिंदी के व्यावहारिक उपयोग पर व्याख्यान प्रस्तुत किया, जबकि डॉ. जे. रेणुका ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में भाषाओं के महत्व और इसके व्यावहारिक अनुप्रयोग के बारे में बताया।
अपने संबोधन में श्री अनिर्बन कुमार विश्वास, उप निदेशक (राजभाषा) क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय, दक्षिण क्षेत्र, बेंगलुरु ने भारत सरकार की नीतियों, कंठस्थ अनुवाद सॉफ्टवेयर और विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं का उल्लेख किया। कार्यालयों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने संस्थानों में चल रही हिंदी गतिविधियों के बारे में प्रस्तुतियाँ दीं। इसके बाद विचार-मंथन सत्र हुआ जिसमें प्रतिभागियों ने प्रश्न पूछे और स्त्रोत व्यक्तियों ने उनकी शंकाओं का समाधान किया।
दूसरे दिन की शुरुआत कृषि व्यवसाय प्रबंधन विषय पर प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रंजीत कुमार के व्याख्यान से हुई, जिसमें उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों की अवधारणाओं को हिंदी भाषा में समझाया। इसके अलावा, डॉ. आर.वी.एस. राव ने तनाव प्रबंधन पर व्याख्यान प्रस्तुत किया, जिसमें तनाव, तनाव के कारण, तनाव के प्रकार और तनाव से निपटने के सर्वोत्तम तरीकों पर चर्चा की गई।
ईसीआईएल के उप निदेशक (राजभाषा) डॉ. राजेंद्र कुमार अवस्थी ने ‘अनुवाद के वैज्ञानिक अनुप्रयोग’ पर एक सत्र लिया। उन्होंने क्लाउड अनुवाद और वैज्ञानिक शब्दावली के अनुवाद पर व्यापक जानकारी प्रस्तुत की, जिसे प्रतिभागियों ने बहुत उपयोगी पाया। अंतिम सत्र में बीडीएल के उप महाप्रबंधक डॉ होमनिधि शर्मा ने अन्य विषयों के अलावा संसदीय राजभाषा समिति के संशोधित प्रोफार्मा को भरने की प्रक्रिया के बारे में बताया।
विचार-मंथन सत्र में भाग लेने के अलावा, श्री ई. रमेश और श्रीमती वी. अन्नपूर्णा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। समापन समारोह में, एनएएआरएम के निदेशक डॉ. सी.एच. श्रीनिवास राव ने अध्यक्षीय भाषण प्रस्तुत कर प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र सौंपे।