जुलाई-2021

डीडीयू-जीकेवाई की सूचना प्रौद्योगिकी का मूल आधार

कोविड महामारी से निपटने के लिए प्रणालीगत दृष्टिकोण का निदर्शन: भावी शिक्षा

सीडीसी ने डिजिटल मीडिया पोर्टल के माध्यम से वैकल्पिक ग्रामीण आजीविका पर आयोजित किया पांच दिवसीय टीओटी

“भारत में बहुआयामी गरीबी” पर डॉ. सबीना अलकिरे की बातचीत- “साक्ष्य-आधारित नीति और कार्रवाई गोलमेज सम्मेलन: समग्र ग्रामीण विकास के लिए परामर्श एवं संवाद” पर उद्घाटन वेबिनार

सीईएसडी,एनआईआरडीपीआर ने नशीली दवाओं के दुरूपयोग की रोकथाम पर जागरूकता पैदा करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया । 

स्वतंत्रता के बाद जल नीति-ग्रामीण भारत के निहितार्थ

जेंडर उत्तरदायी शासन पर ऑनलाइन कार्यशाला-सह-टीओटी – उपकरण और तकनीक

चुनिंदा संकेतकों पर ग्रामीण और शहरी भारत की झांकियॉं: एनएफएचएस-5से साक्ष्य

एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू प्रशिक्षण अध्ययन पर ऑनलाइन कार्यशाला

एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू की उत्कृष्ट पद्धतियों पर वेबिनार

ग्रामीण सामुदायिक शासन के सुदृढ़ीकरण पर ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम

सीएमपीआरपी हरियाणा के एसएचजी सदस्यों के लिए विपणन कौशल पर आभासी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है

ग्रामीण विकास के लिए लोगों की कार्रवाई हेतु नागरिक समाज संगठनों का कायाकल्प

ओएलएम ने जगी पदियामी के किसान से उद्यमी तक के सफर में मदद की

एसआईआरडी क्रियाकलाप

सीडीपी एंड ए, टीएसआईआरडी ने पंचायत सचिवों के लिए आयोजित किया अभिविन्यास प्रशिक्षण कार्यक्रम

वन महोत्‍सव सप्‍ताह: एसआईआरडी, हिमाचल प्रदेश द्वारा पौधारोपण अभियान

वोकल फॉर लोकल: एसआईआरडी, हिमाचल प्रदेश, एसएचजी उत्‍पादों का प्रदर्शन आयोजित करता है ।

आवरण कथा

डीडीयू-जीकेवाई की सूचना प्रौद्योगिकी का मूल आधार

हम कौशल विकास को जितना महत्व देंगे, हमारे युवा उतने ही सक्षम होंगे।

– श्री नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधान मंत्री

डीडीयू-जीकेवाई

25 सितंबर, 2014 को ग्रामीण विकास मंत्रालय,भारत सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना’ (डीडीयू-जीकेवाई) शुरू की, जो ग्रामीण गरीब युवाओं के लिए एक प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम है।  इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीब परिवारों की आय के विविधीकरण को सम्मिलित करना है ताकि उनके जीवन स्तर को बढ़ाया जा सके और साथ ही युवा ग्रामीण आबादी की व्यावसायिक आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके।

15-35 वर्ष के आयु वर्ग के ग्रामीण गरीब युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने के कारण अन्य कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में इसका अद्वितीय स्थान है, पोस्ट-प्लेसमेंट ट्रैकिंग, प्रतिधारणएवंव्यवसाय विकास को दी गई प्रमुखता और प्रोत्साहन के माध्यम से स्थायी रोजगार पर यह अत्यधिक बल देता है। इसकी प्रमुख विशेषताओं में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) प्रणाली के माध्यम से कार्यान्वयन, ग्राम पंचायतों (जीपी) का अभिग्रहण, संतृप्ति दृष्टिकोण, सामाजिक समावेशन (50 प्रतिशत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और 33प्रतिशत महिला),जम्मू और कश्मीर (हिमायत), 27 वामपंथी उग्रवादी जिलों (रोशनी) और उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे क्षेत्रों पर प्रमुख ध्यान, प्रशिक्षण अवसंरचना और सेवा आपूर्ति के लिए आवश्यक गुणता आश्वासन ढांचा प्रदान करने में मानक आधारित वितरण अग्रगामी मानक संचालन प्रक्रिया, 70 प्रतिशत अनिवार्य स्थानन, पीआईए के लिए विभिन्‍न प्रोत्साहन, समर्पित परियोजना जनशक्ति, तृतीय पक्ष मूल्यांकन और प्रमाणन, प्रवासन सहायता केंद्र (एमएससी), नौकरी के स्थान पर प्रशिक्षण, भूतपूर्व छात्रों की बैठकें, सीएक्सओ बैठकें आदि शामिल हैं।

डीडीयू-जीकेवाई 28 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद है, जिसका लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2023 तक 26.79 लाख है। राज्यों द्वारा देश भर में विभिन्न प्रशिक्षण भागीदारों को 25.01 लाख पहले ही स्वीकृत किए जा चुके हैं। 11.18 लाख से अधिक ग्रामीण युवाओं को पहले ही प्रशिक्षित किया जा चुका है और 6.55 लाख को प्रशिक्षण पूरा करने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी प्रदान की गई है, जुलाई 2021 तक 8.47 लाख का मूल्यांकन किया गया।

(16 जुलाई 2021 तक कौशल प्रगति से लिया गया डेटा) *

डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र

प्रौद्योगिकी के कुशल उपयोग कोजब समावेशी कार्यान्वयन और सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता की निगरानी के लिए अटूट प्रतिबद्धता के साथ जोड़ा जाता है, तो मूल स्तर पर काफी अंतर आ सकता है। पूरे भारत में परियोजनाओं के कुशल, प्रभावी और समयबद्ध कार्यान्वयन एवं निगरानी की सुविधा के लिए एक केंद्रीकृत आईटी पारिस्थितिकी तंत्र इस प्रकार महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यह परियोजना कार्यान्वयन के प्रत्येक चरण में और प्रत्येक हितधारक की ओर से जवाबदेही व पारदर्शिता लाने में मदद करता है।यह देश भर में दूरदराज के क्षेत्रों में ग्रामीण गरीब परिवारों के संकट को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विशेष रूप से महिलाओं, विकलांग व्यक्तियों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों सहित समाज के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजना / कार्यक्रम के तहत लक्षित युवाओं को योजना के लाभों के लिए उनकी जागरूकता और आसान पहुंच का विस्तार करता है।

इस तरह, डीडीयू-जीकेवाई ने प्रत्येक हितधारक की जरूरतों को पूरा करने के लिए समयावधि में एक प्रबल आईटी पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया है और आवश्यक डीडीयू-जीकेवाई एसओपी दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित किया है। डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न ऑनलाइन पोर्टल, वेबसाइट और मोबाइल एप्लिकेशन शामिल हैं, जो लक्षित समूह में सबसे गरीब लोगों को शामिल करना, परियोजना के समय पर कार्यान्वयन और निगरानी को सुनिश्चित करते हैं। दूरदराज के क्षेत्रों और लक्षित युवाओं के कमजोर वर्ग तक योजना की व्याप्ति का विस्तार करने के उद्देश्य से, डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र कौशल पंजी एक ऑनलाइन मंच है, जो दूर-दराज के क्षेत्रों के युवाओं को निकटतम प्रशिक्षण केंद्रों का पता लगाने और उनकी रूचि के क्षेत्र/व्यापार में प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षण केंद्रों से जुड़ने में मदद करता है। साथ ही, यह प्रशिक्षण भागीदारों को उनके प्रशिक्षण केंद्रों तक इच्छुक उम्मीदवारों को जुटाने में मदद करता है। ग्राम रोजगार सेवक या संगठक पंजीकृत उम्मीदवारों तक पहुँच सकते हैं और उन्हें योजना में आगे नामांकित होने के लिए मार्गदर्शन दे सकते हैं। इस प्रकार यह जरूरतमंद युवाओं और प्रशिक्षण भागीदारों के बीच एक सेतु का काम करता है।

डीडीयू-जीकेवाई का केंद्रीकृत आईटी पारिस्थितिकी तंत्र कई अन्य आवश्यक मापदंडों के साथ एक विशेष वित्तीय वर्ष में योजना के तहत लक्ष्य आबंटन, उपलब्धि के बारे में आम जनता की पारदर्शिता और जागरूकता को बढ़ाता है और इस उद्देश्य के लिए डीडीयू-जीकेवाई का अपना डैशबोर्ड (http://ddugky.gov.in/) है।डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र परियोजना कार्यान्वयन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में उपयोगकर्ताओं और प्रशिक्षण भागीदारों के पीआरएन पंजीकरण से लेकर उम्मीदवारों की नियुक्ति तथा प्रतिधारण तक मार्गदर्शन भी करता है।

डीडीयू-जीकेवाई के आईटी पारिस्थितिकी तंत्र में ऑनलाइन निरीक्षण और स्थान सत्यापन सहित ई-एसओपी शिक्षा पोर्टल, पीआरएन अनुप्रयोग, परियोजना अनुप्रयोग प्रणाली, कौशल पंजी, कौशल प्रगति, कौशल भारत और उम्मीदवार पंजीकरण, निगरानी प्रक्रियाओं के लिए मोबाइल आधारित अनुप्रयोग शामिल है। इस प्रतिस्पर्धा में एक हालिया नवाचार कौशल आप्टी है जो ग्रामीण युवाओं के हितों को उनके रोजगार के अवसरों के साथ जोड़कर उनकी आकांक्षाओं और कौशल को पूरा करता है।डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र उपयुक्त उपयोगकर्ता अनुभव प्रदान करने और उपयोगकर्ताओं के सामने आने वाली समस्याओं का समय पर समाधान प्रदान करने के लिए एक गतिशील हेल्प डेस्क प्रणाली को भी अपनाता है। यह सम्मिलित विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए उपलब्ध विभिन्न प्लेटफार्मों के बीच एकीकरण भी सुनिश्चित करता है। डीडीयू-जीकेवाई का आईटी पारिस्थितिकी तंत्र डेटा की समग्रता और सुरक्षा प्रदान करता है।  नीचे दिया गया डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र का संक्षिप्त परिचय पाठक को यह समझने में मदद करेगा कि यह कैसे एक हितधारक के जीवन को सरल एवं पारदर्शी बनाता है और यह कैसे काम करता है तथा परियोजना कार्यान्वयन और निगरानी की प्रक्रिया में हर स्तर पर उपयोगकर्ताओं का समर्थन करता है।

ई-एसओपी शिक्षा पोर्टल

यह एक ई-शिक्षा पोर्टल है जिसे एनआईआरडीपीआर द्वारा विकासशील भागीदार सीडीएसी के साथ डिजाइन और विकसित किया गया है, जो डीडीयू-जीकेवाई एसओपी की आसान पहुंच और स्व-शिक्षा की सुविधा के लिए एमओआरडी की ‘अधिसूचना संख्या 63/2015: डीडीयू-जीकेवाई पर शिक्षा, मूल्यांकन और प्रमाणन’ का अनुपालन सुनिश्चित करता है।

विशेषताएंलाभ
किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम पोर्टल में मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप और डेस्कटॉप के साथ संगत एक वेब आधारित शिक्षण प्रबंधन प्रणाली में अलग-अलग विशेषाधिकार वाले कई हितधारक, स्‍व मूल्‍यांकन माड्यूल्‍स सहित संगठित पाठ्यक्रम सामग्री (डेमो टेस्‍ट), बिल्‍ट इन सर्टिफिकेशन एंड रोबस्‍ट  कोशन बैंक होते हैं।अधिकारियों को अंतिम आंकलन के लिए निर्धारित समय की सूची बनाकर एसओपी प्रमाणन लेने में सक्षम बनाता है। अंतिम आंकलन की तैयारी के लिए मॉक टेस्ट प्रदान करता  है। डीडीयू-जीकेवाई मानक आवश्यकताओं के बारे में हितधारकों के ज्ञान को बढ़ाने में मदद करता है। इसके अलावा परियोजना कार्यान्वयन के दौरान मानक आवश्यकताओं का पालन सुनिश्चित करता है।

पीआरएन एवं परियोजना अनुप्रयोग प्रणाली

डीडीयू-जीकेवाई देश भर में डीडीयू-जीकेवाई परियोजनाओं के ऑनलाइन आवेदन, कार्यान्वयन और निगरानी की परिकल्पना करता है। डीडीयू-जीकेवाई परियोजनाओं के लिए आवेदन करने के लिए, संबंधित आवेदकों को क्रमशः www.ddugky.gov.in और https://erp.ddugky.info/login/ के माध्यम से स्थायी पंजीकरण संख्या (पीआरएन) और परियोजना अनुप्रयोग के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा।

विशेषताएंलाभ
पीआरएन प्राप्त करने के लिए पीआईए के लिए ऑनलाइन आवेदन की सुविधा। परियोजना आवेदन ऑनलाइन दायर करने के लिए पीआईए को सक्षम बनाता है, आवेदन के लिए सभी आवश्यक जानकारी, मार्गदर्शन और क्रमशः समर्थन प्रदान करता है।24×7 ऑनलाइन आवेदन की सुविधा। कार्यक्रम, भागीदारों, निविदाओं, संसाधनों तथा आवश्यक दिशा-निर्देशों और मंत्रालय की अधिसूचना के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करता है। प्रक्रिया को आसान और उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाता है, यह डिजिटल प्रारूप में सभी आवश्यक दस्तावेजों को अपलोड करने के लिए उपयोगकर्ता को सक्षम करके दिशानिर्देशों और मानदंडों को बढ़ावा देने वाली पेपरलेस प्रणाली का अनुपालन भी सुनिश्चित करता है।

कौशल पंजी

यह डीडीयू-जीकेवाई के तहत उम्मीदवारों को जुटाने में सहायता के लिए एक नागरिक केंद्रित ऑनलाइन अनुप्रयोग है। यह देश भर के दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले युवाओं को योजना के लाभों का विस्तार करने में मदद करता है। यह स्वयं, पीआईए, आरएसईटीआई, एसआरएलएम, अधिकृत संगठकों द्वारा उम्मीदवारों के पंजीकरण की सुविधा प्रदान करता है और नियोक्ता पंजीकरण और नौकरी प्रदान करता है। यह उम्मीदवार पंजीकरण की सुविधा के लिए सबसे उत्तम मंच भी है।

विशेषताएंलाभ
एसईसीसी डेटा और कौशल प्रगति, कौशल भारत, कौशल आप्टी आदि जैसे अन्य पोर्टलों के साथ बहुभाषी एकीकृत वेब और मोबाइल ऐप पर उपलब्ध है। गैर-एसईसीसी उम्मीदवारों को भी सत्यापित किया जा सकता है और उत्कृष्ट नियोक्ता और उत्कृष्ट रेफरर पंजीकृत किया जा सकता है, सभी हितधारकों के लिए उम्मीदवार श्रेणी सामान्य मंच, हितधारक के लिए उपयोगकर्ता पुस्तिका/अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न, हेल्पडेस्क सहायता आदि।डीडीयू-जीकेवाई उम्मीदवारों और प्रशिक्षण भागीदारों के बीच एक सेतु के रूप में कम बैंडविड्थ के साथ-साथ ऑफ़लाइन पंजीकरण अधिनियम का समर्थन करता है-उम्मीदवार निकटतम टीसी ढूंढ सकते हैं और पीआईए संघटन के लिए इच्छुक उम्मीदवारों तक पहुंच सकते हैं। पंजीकृत उम्मीदवारों का डेटाबेस प्रदान करता है। रोजगार मेलों की योजना को सुगम बनाता है। प्रत्येक पंजीकृत उम्मीदवार को एक अनन्य कौशल पंजी आईडी बनाकर नकल से बचने में मदद करता है। देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में योजना की व्याप्ति का विस्तार करने में सहायता करता है।

कौशल भारत (केबी)

कौशल भारत को डीडीयू-जीकेवाई कार्यक्रम के कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन और परियोजनाओं के प्रदर्शन की निगरानी के लिए एनआईआरडीपीआर, एमओआरडी (जीओआई) की डीडीयू-जीकेवाई टीम द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया है। यह समग्र कार्यक्रम के लिए एकल डेटा भंडार के रूप में कार्य करता है। यह संबंधित सभी प्रमुख हितधारकों की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करता है।

विशेषताएंलाभ
यह एक शुरू से अंत तककार्यप्रवाह-आधारित आईटी प्लेटफ़ॉर्म है।डीडीयू-जीकेवाई की सभी परियोजनाओं और हितधारकों के लिए साझा मंच। प्रक्रिया निर्माता और अनुमोदक अवधारणा (निर्माता और परीक्षक) का अनुसरण करता है। गतिशील रिपोर्टिंग और निगरानी। उपयोगकर्ताओं के लिए कार्य आधारित पहुंच। समर्पित हेल्प डेस्क टीम और टिकट प्रणाली। डीडीयू-जीकेवाई में उपयोग किए जाने वाले अन्य सभी आईटी प्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत।कार्यक्रम के लिए एकल डेटा संग्रह। उपयोग करने में आसान। एसओएपी का पूरी तरह से अनुपालन, विषय विशेषज्ञों की मांग के अनुसार उपलब्धि एवं सहायताडेटा सटीकता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है। नीतिगत परिवर्तनों के साथ तालमेल के लिए प्रतिबद्ध।एक निश्चित प्रक्रिया प्रवाह और चरणों के अनुक्रम का अनुसरण होता है जिससे आवश्यक डेटा के लापता होने या कॉपि से बचने में मदद होती है।

कौशल प्रगति

यह प्रशिक्षण और पदस्‍थापन गतिविधियों के प्रबंधन की सुविधा के लिए एक ऑनलाइन एमआईएस प्रणाली है। यह प्रभावी निर्णय लेने और संसाधन उपयोग के लिए उपयोगकर्ता-निर्धारित रिपोर्ट तैयार करने में मदद करता है।

विशेषताएंलाभ
सभी डीडीयू-जीकेवाई परियोजनाओं के लिए सामान्‍य रिपोर्टिंग प्‍लेटफार्म, भूमिक-आधारित अभिगम नियंत्रण, रणनीतिक निर्णय क्षमता के लिए स्थिर और उपयोगकर्ता-परिभाषित रिपोर्ट, राष्‍ट्रीय/राज्‍य/परियोजना-वार डैशबोर्डउपयोगकर्ता अनुकूल-कार्यक्रम कार्यान्‍वयन, संरचना और निगरानी सुनिश्चित करता है, वास्‍तविक समय में प्रशिक्षण और प्‍लेसमेंट प्रगति की निगरानी की सुविधा प्रदान करता है ।

टीसी निरीक्षण और पदस्‍थापन सत्यापन मोबाइल ऐप

उपयोगकर्ता या तो वेब या मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग प्रशिक्षण केंद्रों के ऑनलाइन निरीक्षण या पदस्‍थापन सत्यापन (पीवी) के लिए कर सकता है। हालाँकि, एक उपयोगकर्ता एक समय में केवल एक डिवाइस का उपयोग कर सकता है। एकल ऐप टीसी निरीक्षण और पदस्‍थापन सत्यापन दोनों की सुविधा प्रदान करता है। यह पारदर्शिता लाने और गुप्त उद्देश्यों पर अंकुश लगाने में मदद करता है।

विशेषताएंलाभ
टीसी के वास्तविक समय निरीक्षण और नियुक्त उम्मीदवार के पदस्‍थापन सत्यापन की सुविधा प्रदान करता है। एंड्रॉयड उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध है।निरीक्षण/नियुक्ति सत्यापन के दौरान प्रमाण के दस्तावेजों को अपलोड करने में सक्षम बनाता है।निरीक्षण रिपोर्ट बनाता है।गूगल प्ले स्टोर पर निःशुल्क उपलब्ध है। साइट पर भारी लैपटॉप ले जाने का विकल्प प्रदान करता है। वास्तविक समय की भौगोलिक स्थिति और निरीक्षण/पीवी का समय रिकॉर्ड करता है।

कौशल आप्ति

कौशल आप्ति एनआईआरडीपीआर, एमओआरडी, भारत सरकार की एक पहल है जो एक प्रौद्योगिकी-सक्षम ऑडियो विजुअल है, जो जॉन हॉलैंड इंटरेस्ट इन्वेंटरी प्रश्नावली, योग्यता और ईएनपीसी (अंग्रेजी, संख्यात्मकता, पैटर्न मिलान और रंग पहचान) आधारित प्रश्नों पर आधारित है।यह ग्रामीण बेरोजगार व्यवहार और कार्य की भूमिका में उनकी रुचि का आकलन करने के दृष्टिकोण को मापने में मदद करता है।

विशेषताएंलाभ
रोजगार के लिए कौशल के साथ ग्रामीण युवाओं की रुचि के मिलान के लिए विकसित किया गया।जॉन हॉलैंड इंटरेस्ट इन्वेंटरी-आधारित डीडीयू-जीकेवाई एसओपी में अनुशंसित। इसके अतिरिक्त, अंकगणित, अंग्रेजी भाषा, पैटर्न और रंग पहचान की तीन स्तरीय योग्यता जांच। पूरी तरह से चित्रों पर आधारित, उम्मीदवारों द्वारा उपयोग में आसानी के लिए टेक्स्ट और ऑडियो द्वारा समर्थित।बहुभाषी।मोबाइल और वेब पर उपलब्ध है।उम्मीदवारों और परामर्शदाताओं के लिए ब्रीफिंग के साथ परामर्श के लिए वैज्ञानिक उपकरण। उम्मीदवारों और परामर्शदाताओं के लिए ब्रीफिंग के साथ परामर्श के लिए वैज्ञानिक उपकरण।लाभार्थियों की राष्ट्रीय स्तर की स्किल इंटरेस्ट इन्वेंटरी प्रदान करता है। कौशल पंजी और कौशल भारत के साथ एकीकृत।

सहायता डेस्क प्रणाली

डीडीयू-जीकेवाई ने सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के लिए एक गतिशील सहायता डेस्क प्रणाली विकसित की है जो कार्यान्वयन और निगरानी प्रक्रिया के लिए उपयोग की जाती है, ताकि एक उचित उपयोगकर्ता को अनुभव और समस्याओं का समय पर समाधान सुनिश्चित किया जा सके।डीडीयू-जीकेवाई सहायता डेस्क में गुणवत्ता सुधार और बेहतर ग्राहक संतुष्टि सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी सहायता टीम, कार्यात्मक विशेषज्ञ और विकास दल शामिल हैं। एक ठोससहायता डेस्क प्रणाली डीडीयू-जीकेवाई की ब्रांड छवि और प्रतिष्ठा को मजबूत करने पर मुहर लगाती है। डीडीयू-जीकेवाई शिकायत प्रणाली में पीआरएन के लिए हेल्पडेस्क, कौशल प्रगति, कौशल भारत आदि शामिल हैं।

डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व

निरंतर निगरानी परियोजना टीम और हितधारकों को उनके परियोजना स्थिति के बारे में बहुमूल्य जानकारी देती है, और उन क्षेत्रों पर प्रकाश डालती है जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है तथा जिनमें बदलाव की आवश्यकता हो सकती है।इस सक्रिय दृष्टिकोण के साथ, संबंधित हितधारक लगभग सभी सामान्य मुद्दों एवं चुनौतियों का अनुमान लगा सकते हैं, बजट की अधिकता, देरी और गलत चरणों की पहचान से बच सकते हैं।इसके अलावा, यह एक प्रभावी निर्णय सृजन और उपलब्ध संसाधनों के कुशल उपयोग का आश्वासन देता है।यह प्रभावी दृष्टिकोण या रणनीति अपनाकर मुद्दों और चुनौतियों के समय पर समाधान के लिए आवश्यक कार्रवाई करने की सुविधा भी देता है। उपर्युक्त प्रक्रिया के लिए आधार संगठन की मजबूत प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) है। प्रभावी एमआईएस परियोजना की समग्र सफलता में सराहनीय योगदान देता है, क्योंकि यह परियोजना कार्यान्वयन में शामिल विभिन्न गतिविधियों को सुगम बनाता है और शीघ्र करने में मदद करता है। एक केंद्रीकृत आईटी पारिस्थितिकी तंत्र एमआईएस की प्रभावशीलता को अत्यधिक बढ़ा सकता है।

डीडीयू-जीकेवाई में सुगठित, उपयोगकर्ता के अनुकूल केंद्रीकृत आईटी पारिस्थितिकी तंत्र है जो एमआईएस को डेटा / सूचना के बेहतर संचालन में मदद करता है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश में परियोजना का प्रभावी कार्यान्वयन और निगरानी होती है। विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पीआरएन तथा परियोजना अनुप्रयोग, पीआईए को नियोजित कार्यों की मंजूरी देने, उनके द्वारा उम्मीदवारों को जुटाने, दूरदराज के क्षेत्रों से इच्छुक उम्मीदवारों के लिए उपयुक्त अवसर खोजने और अन्य सभी प्रशिक्षण एवं पदस्‍थापन गतिविधियों में शामिल प्रक्रिया को सुचारू बनाने में मदद करते हैं। यह समय-समय पर संबंधित हितधारकों द्वारा प्रत्येक स्तर पर परियोजना की प्रगति के नियमित अवलोकन की सुविधा भी प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ साझा किए गए राज्य-वार मासिक डैशबोर्ड पत्र परियोजना की प्रगति में शामिल विभिन्न मापदंडों जैसे कि राज्य में लक्ष्य आबंटन, प्रशिक्षित, स्थापित, मूल्यांकित, प्रमाणित और चल रहे प्रशिक्षण लक्ष्य सहित उपलब्धि सारांशकी आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं। यह स्वीकृत परियोजनाओं के बारे में अन्य जानकारी भी देता है जैसे, प्रशिक्षण केंद्रों की क्षमता का उपयोग, किए गए निरीक्षण, किस्त जारी करना, राज्यों में उपलब्ध मानव संसाधन, संबंधित राज्य प्राधिकरणों द्वारा अधिरोपित कमियाँ तथा शास्तियां आदि। इन डैशबोर्ड पत्रों के अलावा, निगरानी और मूल्यांकन प्रक्रिया में शामिल विभिन्न एजेंसियों के अधिकारी वास्तविक अनुक्रिया रिपोर्ट तक भी पहुंच सकते हैं।

डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र परियोजना से संबंधित विभिन्न आवश्यक जानकारी एक क्लिक पर प्राप्त करने में मदद करता है; यह सूचना की उपयोगकर्ता-विशिष्ट पहुंच को प्रतिबंधित करके डेटा सुरक्षा और समग्रता सुनिश्चित करता है, अर्थात, एक राज्य का परियोजना विवरण किसी अन्य राज्य द्वाराउपयोग नहीं किया जा सकता है। इसी तरह, एक पीआईए का परियोजना विवरण किसी अन्य पीआईए द्वारा नहीं देखा जा सकता है। केवल डीडीयू-जीकेवाई एसओपी के अनुसार निर्दिष्ट एजेंसी ही अपनी भूमिकाओं और जिम्मेदारी के आधार पर आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकती है।

नीचे दिए गए कुछ उदाहरण उपयोगकर्ता-परिभाषित रिपोर्ट तैयार करने में डीडीयू-जीकेवाई आईटी पारिस्थितिकी तंत्र की प्रभावकारिता को प्रदर्शित करते हैंजो देश भर में परियोजना प्रगति का प्रतिनिधित्व करने में सहायक हैं।

चित्र क: समग्र लक्ष्य बनाम प्रदर्शन

चित्र ख: प्रशिक्षण समापन की श्रेणी-वार उपलब्धि

चित्र ग: नियुक्ति लक्ष्य की श्रेणी-वार उपलब्धि

चित्र घ: महिला उम्मीदवारों का क्षेत्रवार पूर्ण प्रशिक्षण विवरण

(टिप्पणी- 1 जुलाई 2021 तक कौशल प्रगति से लिए गए सभी सारणी का डेटा) *

इस तरह, एक स्मार्ट केंद्रीकृत आईटी पारिस्थितिकी तंत्र के साथ एक मजबूत एमआईएस परियोजना के कार्यान्वयन और निगरानी की प्रक्रिया की प्रभावशीलता को हमेशा संवर्धित कर सकता है।

श्री समीर गोस्वामी, निदेशक (एमआईएस),

डीडीयू-जीकेवाई, एनआईआरडीपीआर

श्री सिद्धार्थ पाण्डेय,

प्रमुख, आईसीटी- पीएमयू, कौशल प्रभाग, एमओआरडी

सुश्री निधि सोम, परियोजना अधिकारी, कौशल प्रभाग,

ग्रामीण विकास मंत्रालय

कोविड महामारी से निपटने के लिए प्रणालीगत दृष्टिकोण का निदर्शन: भावी अध्‍ययन शिक्षा

चित्रणश्री वी. जी. भट

25 मई, 2021 को, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने लाज़ारो गामियो और जेम्स ग्लैंज़ द्वारा लिखित ‘जस्ट हाऊ बिग कुड इंडियाज ट्रू कोविड टोल बी’ शीर्षक एक लेख प्रकाशित किया। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 27 मई, 2021 को दर्ज किए गए आधिकारिक आंकड़ों में कुल 2,73,69,093 दिखाया गया है, जिसमें 1.5 प्रतिशत अर्थात 3,15,235 मृत्यु दर्शाता है। फिर भी लेख में अनुमानित आंकड़े आधिकारिक गिनती के मुकाबले तीन विकल्प हैं। तीनों को एक अनुदार परिदृश्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें अनुमानित संक्रमण 404.2 मिलियन है और अनुमानित मृत्यु 6,00,000 (प्रति मामले में 15 संक्रमण, संक्रमण की मृत्यु दर 0.15 प्रतिशत) है।

एक और अधिक संभावित अनुमान 539 मिलियन अनुमानित संक्रमण और 1.6 मिलियन मौतें (संक्रमण मृत्यु दर 0.30 प्रतिशत के साथ प्रति रिपोर्ट 20 संक्रमण) है। एक तीसरा ‘बदतर परिदृश्य’ 700.7 मिलियन अनुमानित संक्रमणों की भविष्यवाणी करता है और अनुमानित मृत्यु 4.2 मिलियन (26 संक्रमण प्रति रिपोर्ट किए गए मामले में 0.60 प्रतिशत की संक्रमण मृत्यु दर के साथ)।

लेख में बताया गया है कि ये संख्या कैसे व्युत्पन्न हुईं। एक दर्जन से अधिक विशेषज्ञों के परामर्श से, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने देश में तबाही के वास्तविक पैमाने की ओर कई संभावित अनुमानों पर पहुंचने के लिए, बड़े पैमाने पर एंटीबॉडी परीक्षणों के परिणामों के साथ-साथ भारत में मामले और मृत्यु की संख्या का विश्लेषण किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठनने यह भी अनुमान लगाया है कि वैश्विक स्तर पर कोविड-19 से मरने वालों की संख्या रिपोर्ट की गई संख्या से दो से तीन गुना अधिक हो सकती है। इस तरह की चूक के कारणों के रूप में तकनीकी, सांस्कृतिक और तार्किक कारणों को उद्धृत किया गया है। लेख में उद्धृत अनुमान तीन राष्ट्रव्यापी एंटीबॉडी परीक्षण पर आधारित हैं जिन्हें सेरोसेर्वे कहा जाता है। एंटीबॉडी परीक्षण प्रामाणिक डेटा रिकॉर्ड करने और कुल संक्रमण तथा मृत्यु के बेहतर अनुमानों तक पहुंचने का एक तरीका प्रदान करते हैं। हर कोई जो कोविड -19 से ग्रसित है, उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी विकसित करता है, जिससे संक्रमण के निशान रह जाते हैं जिन्हें सर्वेक्षण में लिया जा सकता है। इसलिए, अनुमान प्रामाणिक होने के लिए बाध्य हैं। यह लेख में अनुदार डेटा का आधार बन जाता है। इसके बाद, 2020 में अमेरिका में मरने वालों की संख्या की तुलना में, भारतीय सीरोसर्वे जो 2021 के जनवरी में समाप्त हुआ, प्रति रिपोर्ट किए गए मामले में 26 संक्रमणों के अनुमान का उपयोग करता है जिसमें 0.3 प्रतिशत की अत्यधिक संक्रमण मृत्यु दर है। यह गणना लेख में अनुमानित संभावित परिदृश्य का आधार बनाती है। सबसे खराब स्थिति का तीसरा अनुमान प्रति मामले में वास्तविक संक्रमण के उच्च अनुमान पर आधारित है और संक्रमण मृत्यु दर 0.6 प्रतिशत है जो आधिकारिक अनुमान से दोगुना है।

इनमें से अधिकांश परियोजनाऍं जो सीरो सर्वेक्षणों पर आधारित हैं, केवल अनुमान हैं क्योंकि संक्रमण के बाद के महीनों में एंटीबॉडी का संकेंद्रण कम हो जाता है, जिससे उनका पता लगाना कठिन हो जाता है। युवा आबादी के मामले में, संक्रमण की मृत्यु दर कम उम्र की ओर तिरछी हो जाती है, जिनकी औसत आयु लगभग 29 होती है। इसमें भी समग्र क्षेत्र और विविधता में अत्यधिक परिवर्तनशीलता है। कुल मिलाकर, कई अनुमानों के साथ, लेख का निष्कर्ष है कि ‘जबकि अनुमान समय के साथ और एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न हो सकते हैं, एक बात सभी संदेह से परे स्पष्ट है: भारत में महामारी आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में बहुत ज्यादा है।’

यहां कुछ सुझावों को संकलित किया गया है ताकि मरने वालों की संख्या से संबंधित अनुमानों को प्रामाणिक बनाया जा सके। इसके लिए ऐसे आकलन की इकाई वार्ड है जो एक ग्राम पंचायत का गठन करती है। प्रत्येक पंचायत को आगे उन वार्डों में विभाजित किया जाता है जहां से निर्वाचित प्रतिनिधि पंचायत सदस्य बनते हैं, जिनमें से एक सरपंच होता है। चूंकि प्रत्येक वार्ड में गांव की आबादी के आधार पर एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है, ग्राम पंचायत में वार्डों की संख्या पांच से पच्चीस तक भिन्न हो सकती है। राज्य द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार, जो एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होती हैं, सभी ग्राम पंचायतें और पेसा निकाय कई तरीकों से कोविड-19 स्थिति से निपटने के लिए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं। निम्नलिखित आवश्यक कदम हैं जिन्हें ग्राम पंचायत स्तर पर वार्ड को एक बुनियादी इकाई के रूप में लिया जा सकता है ताकि कोविड-19 महामारी और ब्लैक फंगस महामारी का बेहतर प्रबंधन किया जा सके और साथ ही महामारी में संक्रमण / स्वास्थ्य लाभ / मरने वालों की संख्या की सही गिनती की जा सके।

अन्य राज्यों और विदेशों से लोगों की सुगम वापसी की सुविधा के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत में पंजीकरण की सुविधा होनी चाहिए। ऐसे प्रत्येक वार्डजिनमें निश्चित संख्या में परिवारे होती   हैं, उन वार्ड के निर्वाचित सदस्य को प्रत्येक ग्राम पंचायत के सरपंच को आवश्यक व्यवस्था पर रिपोर्ट करना चाहिए ताकि यह सत्यापित किया जा सके और सुनिश्चित किया जा सके कि बाहर से अपने संबंधित अधिकार क्षेत्र में आने वाला कोई भी व्यक्ति पंजीकृत है। अत: ग्राम पंचायत द्वारा गांव के सभी प्रवेश द्वारों पर चौबीसों घंटे निगरानी रखी जानी चाहिए। साथ ही‍, संपूर्ण कोविड संबंधी गतिविधियों के समन्वय के लिए प्रत्येक वार्ड से क्रमानुगत सदस्यों के साथ एक ‘ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण समिति (वीएचएसएनसी)’ का गठन किया जाए।

राज्य के बाहर से पंचायत क्षेत्र में लौटे प्रत्येक व्यक्ति को सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए 14 दिनों के लिए अनिवार्य रूप से पंचायत स्तर के संगरोध में रहना होगा। क्वारंटाइन के दौरान प्रवासियों के भोजन, पानी, साफ-सफाई और अस्थायी आवास की व्यवस्था करना ग्राम पंचायतों का कर्तव्य है। क्वारंटाइन किए गए व्यक्तियों की स्वास्थ्य जांच के साथ वार्ड-वार घरेलू सर्वेक्षण किया जा सकता है और स्वास्थ्य क्षेत्र के अधिकारियों के सहयोग से कोरोनावायरस के संदिग्ध मामलों के लिए यादृच्छिक परीक्षण किए जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को सकारात्मक पाया जाता है, तो उसे आवश्यक उपचार के लिए तुरंत नामित कोविड-19 अस्पताल में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। दिलचस्प बात यह है कि जैसे-जैसे महामारी बढ़ती है, ऐसे कई लोग मिलते हैं जो लक्षणहीन होते हैं और नकारात्मक आरटी-पीसीआर परीक्षण दर्ज होता हैं, तो भी एक प्रबल वायरल लोड होता है, और इसलिए वे वायरस के वाहक होते हैं। अत:, वार्ड सदस्यों को अपने क्षेत्रों में फेस मास्क के प्रावधान एवं उसके सक्रिय उपयोग और इस्तेमाल किए गए फेस मास्क के निपटान को सुनिश्चित करना चाहिए। किसी भी ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में कोविड-19 संक्रमण के पुष्टि के मामले में, संबंधित क्षेत्र के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की देखरेख में क्षेत्र को सैनिटाइज करने के लिए संबंधित स्थानीय निकायों द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाएं। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की देखरेख में ओडिशा सरकार के निर्देशों के अनुसार ग्राम पंचायतों को निःशुल्क राहत देने के लिए अधिकृत किया जाना चाहिए। प्रोत्साहन राशि राज्यों में अलग-अलग होती है लेकिन लाभार्थी को ऐसी राशि का प्रावधान कराना वार्ड सदस्य की मूलभूत जिम्मेदारी होती है। ग्राम पंचायतों के सरपंचों को भी आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 59 और 60 के अनुसार ग्राम पंचायत के निर्देशों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ उचित फोरम पर शिकायत और मुकदमा दर्ज करने के लिए अधिकृत किया जा सकता है। प्रत्येक वार्ड में रहने वाली ग्राम पंचायत स्तर के महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की सेवाओं का उपयोग जरूरतमंद लोगों को गर्म पका हुआ भोजन उपलब्ध कराकर किसी भी प्रकार की भुखमरी से बचने के लिए किया जा सकता है। दुनिया भर में पालन किए जाने वाले प्रोटोकॉल के अनुसार निर्धारित सामाजिक दूरियों के मानदंडों का पालन करते हुए महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा पकाया गया भोजन वितरित किया जाना चाहिए। पंचायत कार्यालय/सामान्य सेवा केंद्र/स्कूल गांवों में ‘कोविड सूचना केंद्र’ के रूप में कार्य कर सकते हैं, और परीक्षण तथा टीकाकरण केंद्रों, डॉक्टरों, अस्पताल में बेड आदि की उपलब्धता पर वास्तविक समय की प्रामाणिक जानकारी प्रदान कर सकते हैं। गांवों में गहन जागरूकता अभियान के लिए स्थानीय समुदाय के स्वयंसेवकों  को निर्वाचित प्रतिनिधियों, आशा, शिक्षकों और युवा स्वयंसेवकों द्वारा समन्वित किया जा सकता है। इन स्वयंसेवकों को पर्याप्त संख्या में ऑक्सीमीटर, सैनिटाइजर, मास्क, स्कैनिंग उपकरण आदि उपलब्ध कराए जा सकते हैं। एनआरआई (अनिवासी भारतीय) योगदान और पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) ऐसे आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराने में सहायता कर सकते हैं।

प्रत्येक ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्यों को राज्य की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत विकलांगों, विधवाओं, बुजुर्गों और अन्य पात्र लाभार्थियों को अग्रिम रूप से पेंशन लाभ का वितरण सुनिश्चित करना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि जमीनी स्तर पर आर्थिक संकट कम से कम हो।हालांकि संकट के जवाब में, सरकार ने कई उपाय शुरू किए हैं, यद्यपि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (पीएमजीकेपी) के रूप में 1.70 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज और ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन के तहत लगभग 21 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज, जिसमें पीएमजीकेपी के तहत आर्थिक सहायता भी शामिल थी।  लेकिन एनआरएलएम, मनरेगा, एसएचजी, एफपीओ, युवा क्लब एवं पीआरआई भागीदारी और सहभागिता के माध्यम से बेहतर सहयोग वास्तविक परिणाम सुनिश्चित कर सकते हैं।

महिला स्वयं सहायता समूहों, युवा मंचों, किसान उत्पादक संगठनों, किसान संगठनों आदि के साथ ग्राम पंचायतों को संयुक्त रूप से ब्लॉक / मंडल / राज्य के सभी हिस्सों में लॉकडाउन की अवधि के दौरान शारीरिक दूरी, हाथ धोने, गरीबों तथा अन्य कमजोर समूहों को आवश्यक वस्तुओं और पके हुए भोजन की आपूर्ति,रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक उत्पादों सहित दवाओं की उपलब्धता के संदेशों का प्रसार करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। पहली लहर के दौरान, महिला स्वयं सहायता समूह मास्क की सिलाई और बिक्री करके एक सराहनीय काम किया है, जिससे मास्क की भारी कमी को दूर करने के साथ-साथ लॉकडाउन की अवधि के दौरान उनकी आजीविका में सुधार हो रहा है। अब, उन्हें इस्तेमाल किए गए मास्क के निपटान और कोविड-19 के कारण जान गंवाने वाले परिवारों के लिए भोजन और आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करने में भी संलग्न होना चाहिए। कई बच्चे अनाथ हो गए हैं और कई बूढ़े लोगों को खुद अपना बचाव करने पर छोड़ दिया गया है क्योंकि महामारी की दूसरी लहर में युवा जीवन खो गया है । ऐसे सभी मामलों का उल्लेख ग्राम पंचायत में वार्ड सदस्यों द्वारा घर-वार रखे गए अभिलेखों में अवश्य होना चाहिए।

स्थानीय स्तर के अधिकारियों या ग्राम पंचायतों को सूचित किए बिना लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान अपने अपने गांवों में लौटने वाले अधिकांश प्रवासियों ने स्थानीय निकायों के लिए उन्हें संस्थागत संगरोध केंद्रों में समायोजित करने के लिए अत्यधिक मुश्किलें खड़ी कर दी। हालांकि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के प्रावधानों के अनुसार ग्राम पंचायतों के सरपंचों को अपने क्षेत्र में कोविड-19 वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कलेक्टर की शक्ति से प्रत्यायोजित किया गया था,आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्ल्यूडब्ल्यू), सहायक उपचारिका दाई (एएनएम), स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के सदस्यों आदि जैसे सामुदायिक स्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा वार्ड समितियों का गठन करके इस खतरे का प्रबंधन किया जा सकता है। कई जगहों पर ग्राम पंचायतों के माध्यम से इन केंद्रों में उचित सुविधाओं के अभाव में प्रवासियों के क्वारंटाइन की व्यवस्था की गई थी, लेकिन वे रहने के लिए अनिच्छुक थे और ग्रामीण निकायों की अवहेलना करके अपने परिवार के साथ रहना पसंद करते थे।यह महामारी के अधिक प्रसार के लिए भी प्रेरक कारक बन गया क्योंकि वे पहले ही संक्रमण के साथ वापस लौटे थे। ग्राम पंचायत क्षेत्र के भीतर अपर्याप्त स्वास्थ्य अवसंरचना और कर्मियों के कारण, स्थानीय अधिकारियों के लिए पुष्टि की गई कोविड-19 मामलों की सही संख्या प्राप्त करना, उनके उपचार की व्यवस्था करना और संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करना एक चुनौती बन गया है। महामारी की स्थिति से निपटने के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य अग्रिम पंक्ति के पदाधिकारियों के लिए संक्रमण ने समस्या को अत्यधिक जटिल कर दिया। लॉकडाउन अवधि के दौरान देश के सभी हिस्सों से अलग-अलग गांवों में प्रवासियों की अप्रत्याशित और भारी संख्या ने ग्राम पंचायतों के लिए भोजन, पोषण, स्वच्छता, अलगाव, सुरक्षा की व्यवस्था करने और उन लोगों को जिन्होंने काम छोड़कर अपने मूल स्थान वापिस लौटे हैं उनके लिए आजीविका प्रदान करने में बड़ी चुनौतियों का सामना किया। प्रवासियों के अत्यधिक आगम के कारण, ग्राम पंचायतों को कोविड-19 महामारी निगरानी रणनीति के प्रबंधन में कठिनाई का सामना करना पड़ा। कोविड -19 महामारी की विपत्ति पर अत्यधिक मीडिया प्रचार-प्रसार के कारण, प्रवासियों को बीमारी के वाहक के रूप में माना जाता था, जिसकी वजह से स्थानीय समुदाय ने ग्राम पंचायतों को उनकी स्थानीयता के निकट काम प्रदान करने और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुँचने के लिए सहयोग नहीं किया। महामारी के दौरान, ग्राम पंचायतों को उनके द्वारा कार्यान्वित मौजूदा प्रमुख कार्यक्रमों जैसे कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन और अन्य राज्य प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से आजीविका के मुद्दों को हल करने का काम सौंपा गया है। ग्राम पंचायतों द्वारा पेश किया जाने वाला रोजगार आम तौर पर प्रवासी आबादी के कौशल समूहों से मेल नहीं खाता है, जिससे सुनिश्चित आय सृजन बहुत मुश्किल हो जाता है।

विशेष रूप से, यदि भारत को कोविड-19 से बेहतर तरीके से निपटना है, तो आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका कोविड -19 महामारी की स्थितियों को रोकने और प्रबंधित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य, पेयजल एवं स्वच्छता और ग्राम पंचायत जैसे विभिन्न क्षेत्रीय विभागों को स्वयं सहायता समूहों, ग्राम सहकारी समितियों, युवा क्लबों, एफपीओ तथा स्वयंसेवकों जैसे छोटे स्तर की समुदाय-आधारित संस्थानों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारों को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना चाहिए, कोविड -19 उपचार के लिए ऑक्सीजन सुविधा वाले बिस्तर, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर और दवा, आदि जैसी परीक्षण सुविधा, चिकित्सा अवसंरचना के संबंध में अंतराल की पहचान करने के लिए जिला, ब्लॉक और जीपी स्तर पर कोविड -19 स्थिति का जायजा लेने के लिए मिलकर काम करने हेतु ग्राम पंचायतों द्वारा तत्परता से किया जाना है। अधोमुखी उपागम महामारी का प्रबंधन नहीं कर सकता है क्योंकि ग्राम पंचायत स्तर पर अलगाव, शारीरिक दूरी, संगरोध और सामूहिक जमाव को रोकने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने की आवश्यकता है और ग्रामीण स्थानीय निकायों को इसे लागू करने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है। अंत में, शारीरिक स्वास्थ्य मानसिक स्वास्थ्य से अलग नहीं है जिसे वार्ड सदस्य के परामर्श से समूहों के संयुक्त हस्तक्षेप के माध्यम से पारिवारिक स्तर पर फिर से संबोधित करने की आवश्यकता है।

महामारी के कारण निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर उचित ध्यान देते हुए ग्रामीण स्तर पर एक व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य नीति की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इसके लिए केन्‍द्र में इस पर कार्रवाई करने की आवश्‍यकता है जब अधिक जीडीपी आबंटन के परिणामस्‍वरूप इस महामारी द्वारा छोड़े गए अंतराल को भरने में मदद मिल सकती है ।

डॉ आकांक्षा शुक्ला

एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, सीडीसी

सीडीसी ने डिजिटल मीडिया पोर्टल के माध्यम से वैकल्पिक ग्रामीण आजीविका पर आयोजित किया पांच दिवसीय टीओटी

प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागी

विकास प्रलेखन एवं संचार केंद्र, एनआईआरडीपीआर ने 26 से 30 जुलाई, 2021 तक ‘डिजिटल मीडिया पोर्टल्स के माध्यम से वैकल्पिक ग्रामीण आजीविका’ पर ऑनलाइन प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया।

डॉ. आकांक्षा शुक्ला, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष (प्रभारी), सीडीसी ने कार्यक्रम का संयोजन किया। कार्यक्रम की रचना का उद्देश्य ग्रामीण लोगों को स्मार्टफोन तक पहुंच तथा इसके उपयोग संबंधी मूल जानकारी के साथ सक्षम बनाना, और उनके पड़ोसी इलाके में उनके विचार, सेवा, उत्पाद या कौशल के प्रचार-प्रसार के लिए एक व्यावसायिक डिजिटल पोर्टल विकसित करना है ताकि जब अर्थव्यवस्था और आजीविका कोविड-19 से गंभीर रूप से प्रभावित होती है तब ऐसे समय में वैश्विक मंच पर स्थानीय उपस्थिति के साथ आजीविका का एक वैकल्पिक साधन बनाया जा सके।

स्व-ब्रांडिंग और ऑनलाइन व्यवसाय के लिए आवश्‍यक है संचार कौशल और ग्राहकों को प्रलोभित  करने के लिए कौशल/उत्पाद/सेवा  प्रावधान के दस्तावेजीकरण की तकनीकी समझ । कार्यक्रम ने ग्रामीण विकास मंत्रालय की डीएवाई-एनआरएलएम योजना के तहत शामिल किए गए स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों, एसआईआरडी संकाय, एसआरएलएम के युवा पेशेवर, पत्रकार और शिक्षित तथा बेरोजगार युवा में इन प्रारंभिक विपणन कौशल के संवर्धन को लक्षित किया। जो बदले में कैस्‍केड मोड के माध्यम से ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के पथ प्रदर्शक बन सकते हैं।

5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में पत्रकारों, शिक्षाविदों, व्यापारियों, राज्य आजीविका मिशन के कार्यक्रम/मिशन प्रबंधकों, शोधार्थियों, सामुदायिक सुविधाकर्ताओं, छात्रों, उद्यमियों, प्रशिक्षकों, सलाहकारों आदि सहित 55 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

पहले दिन यानी 26 जुलाई 2021 को डॉ. आकांक्षा शुक्ला ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यक्रम का विवरण प्रस्तुत किया। इसके आलावा उन्होंने अतिथि वक्ताओं/स्रोत व्यक्तियों का परिचय दिया और पांच दिनों में विभिन्न सत्रों के लिए विषय चुनने के तर्क को विस्तार से बताया।

परिचय सत्र के बाद, डॉ. पार्थ प्रतिम साहू, एसोसिएट प्रोफेसर, सीईडीएफआई, एनआईआरडीपीआर ने ‘उद्यमिता विकास प्रक्रिया’ पर एक सत्र संचालित किया। इसके बाद डॉ रत्न भुयान, सहायक प्रोफेसर, एनईआरसी-एनआईआरडीपीआर ने ‘मीडिया में ग्रामीण उद्यमिता जुटाने के लिए अवसरों की पहचान औरविचार आकलन’ पर एक व्याख्यान प्रस्‍तुत किया। दिन के अंतिम सत्र का संचालन डॉ. संदीप भटनागर, निदेशक, विपणन एवं व्यवसाय विकास, एनआईएमएसएमई, हैदराबाद ने किया। उन्होंने डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म की स्थापना के संबंध में आधिकारिक औपचारिकताओं, नियमों और विनियमों के बारे में बताया।

दूसरे दिन, डॉ. राधिका मीनाक्षी शंकर, संस्थापक, वाइज आउल कंसल्टिंग, हैदराबाद ने ‘नए उद्यमियों के लिए सूचना के स्रोत/डिजिटल मीडिया व्यवसाय में प्रचलन’ और व्यवसाय में व्यवसायिक विचार प्रतिरूपण’ पर दो सत्र संचालित किए। अंतिम सत्र में हथकरघा बुटीक इम्प्रेसा की संस्थापक श्रीमती अंजलि चंद्रन ने एक तकनीकी विशेषज्ञ से उद्यमी बनने तक के अपने सफर के बारे में बताया।

तीसरे दिन तीनों सत्रों का संचालन मातृभूमि ऑनलाइन के सलाहकार श्री सुनील प्रभाकर ने किया। लाइव डेमो की मदद से, उन्होंने ‘डेस्कटॉप फोटोग्राफी यूजिंग स्मार्टफोन, मोबाइल डॉक्यूमेंटेशन-सॉफ्टवेयर एंड हार्डवेयर नीडेड’, ‘एडिटिंग स्किल्स एंड पब्लिशिंग ऑनलाइन/यूट्यूब’ और ‘फास्ट एंड इजी सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएशन’ के बारे में बात की।

चौथा दिन उद्यमिता के विपणन पक्ष पर चर्चा की गई।डॉ. संदीप भटनागर, निदेशक, विपणन और व्यवसाय विकास, एनआईएमएसएमई, हैदराबाद ने ‘नए जमाने के उद्यमियों/विपणन प्रबंधन के लिए डिजिटल विपणन उपकरण: बिक्री, विज्ञापन और ब्रांड निर्माण’ पर एक सत्र का संचालन किया। इसके बाद नाबार्ड के पूर्व महाप्रबंधक श्री के.आई.शरीफ द्वारा ‘प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग एंड फंडिंग ए न्यू स्टार्ट-अप एंड वेंचर: एवेन्यूज अवेलेबल इन ई-कॉमर्स’ पर व्याख्यान दिया गया।

डॉ. बालकिष्टा रेड्डी, रजिस्ट्रार, नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ ने ‘एक उद्यम में कानूनी औपचारिकताएं: नए साइबर कानूनों पर विशेष जोर (कारखाना अधिनियम, पीएफ, श्रम कानून, साइबर कानून, आदि)’ पर एक सत्र का संचालन करते हुए कार्यक्रम के अंतिम दिन की शुरुआत की। इसके अलावा, आंध्र विश्वविद्यालय विशाखापत्तनम के डीपीआईआईटी-वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय आईपीआर के अध्यक्ष प्रोफेसर एच. पुरुषोत्तम ने ‘आईपीआर, पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक प्रबंधन’ के बारे में बात की। अंतिम सत्र में, महिला ई हाट की सलाहकार, डॉ. मंजू कालरा प्रकाश ने महिला ई हाट के साथ उनके अनुभव के आधार पर ऑनलाइन विपणन-प्रबंध बाजार योजना और विज्ञापन के बारे में बताया।

दूसरे दिन से अंतिम दिन तक, कार्यक्रम संयोजक डॉ.­ आकांक्षा शुक्ला ने सत्र शुरू होने से पहले 15 मिनट संक्षेप में पूर्व चर्चित बातों पर प्रकाश डाला, प्रतिभागियों के सवालों के जवाब दिए और उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त की।प्रत्येक सत्र के बाद एक प्रश्नोत्तर सत्र भी आयोजित किया गया जिसमें प्रतिभागियों को स्रोत व्यक्तियों के साथ वार्तालाप की सुविधा प्रदान की गई।

कार्यक्रम के अंत में, प्रशिक्षुओं का मूल्यांकन एक ऑनलाइन परीक्षा द्वारा किया गया जिसमें बहुविकल्पीय प्रश्न शामिल थे।

प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रबंधन पोर्टल के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था और कार्यक्रम की समग्र प्रभावशीलता 89 प्रतिशत थी, जिसमें सभी प्रशिक्षण कार्यक्रम घटक, वक्ता, ज्ञान, कौशल और व्यवहार परिवर्तन घटक शामिल थे। कार्यक्रम संयोजक डॉ. आकांक्षा शुक्ला को प्रशिक्षण के संचालन में सहायक संपादक श्री कृष्ण राज के.एस. और श्री जी साई रवि किशोर राजा और कलाकार वेणुगोपाल भट द्वारा सहायता प्रदान की गई।

“भारत में बहुआयामी गरीबी” पर डॉ. सबीना अलकिरे की व्‍याख्‍यान- साक्ष्य-आधारित नीति और कार्रवाई गोलमेज सम्मेलन: समग्र ग्रामीण विकास के लिए परामर्श और संवाद पर उद्घाटन वेबिनार

ऐसे समय में जहां दुनिया कोविड-19 महामारी और संबंधित आर्थिक संकटों से अभूतपूर्व मानवीय संकट का सामना कर रही है, सरकारें और नीति कार्यान्वयनकर्ता विकास को बढ़ावा देने के लिए अभिनव और प्रभावी समाधानों की तलाश कर रहे हैं। इस संदर्भ में प्रतिकूल अध्ययन, नीति-उन्मुख अध्ययनों से अनुभव साझा करने, कार्रवाई योग्य हस्तक्षेपों की जांच करने और मजबूत निगरानी ढांचेकी सुविधा के लिएराष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर), दिल्ली ने ‘साक्ष्य-आधारित नीति और कार्रवाई गोलमेज सम्मेलन: समग्र ग्रामीण विकास के लिए परामर्श और संवाद’ शीर्षक एक परियोजना शुरू की।इस पहल का उद्देश्य सतत विकास के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर मौजूदा अनुसंधान एवं प्रमाण प्रस्तुत करना और नीति कार्रवाई तथा सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की दिशा में साक्ष्य-आधारित महत्वपूर्ण अनुसंधान पर काम करने वाले संस्थानों तथा विशेषज्ञों के बीच एक सहक्रियात्मक संवाद निर्माण करना है।

परियोजना ने एसडीजी के साथ श्रेणीबद्ध 12 कार्य क्षेत्रों की पहचान की है। ‘गरीबी न्यूनीकरण’ के पहले कार्य क्षेत्र के लिए, एनआईआरडीपीआर ने 23 जुलाई 2021 को ‘भारत में बहुआयामी गरीबी’ पर एक वेबिनार का आयोजन किया। इस अवसर पर, डॉ. सबीना अलकिरे, निदेशक, ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव (ओपीएचआई), यूके ने भारत में बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमडीपीआई) के विश्लेषण से निष्कर्षों और निरीक्षणों को साझा किया।

परियोजना के बारे में

कोई भी विकास कार्य – स्वैच्छिक या संस्थागत-नीति और कार्यक्रम के हो, समाज एवं अर्थव्यवस्था की वास्तविकताओं से सूचित किया जाना चाहिए, जिस पर वह प्रभावी और टिकाऊ होने के लिए काम कर रहा है। समान लक्ष्यों के बावजूद, वैज्ञानिक अनुसंधान और सामाजिक तथा आर्थिक घटनाओं के प्रमाण पर काम करने वाले अक्सर नीतियों को बनाने और लागू करने के लिए काम करने वालों से अलग काम करते हैं। अकादमिक अनुसंधान, कार्यान्वयनात्मक सामग्री और नीति निर्माण के बीच अभिसरण की कमी विकासात्मक प्रक्रिया को अस्थिर होने और वांछित परिणाम नहीं देने के जोखिम में डालती है। यह अस्थिरता कोविड-19 महामारी जैसे आघातों के बाद ही प्रकट होती है। यह परियोजना शोधकर्ताओं से लेकर नीति निर्माताओं और स्वैच्छिक संगठनों तकप्रतिकूल-क्षेत्र ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान का एक मुक्त मंच बनाने की इच्‍छा रखती है। हमारी योजना ग्रामीण विकास की कहानी के दोनों पक्षों को व्यवस्थित तरीके से सामने लाने, शोधकर्ताओं से लेकर कार्यान्वयनकर्ताओं तक संचार को मजबूत करने और इन ‘नीति-परिमाण-कार्रवाई’ वार्तालापों का एक दस्तावेज बनाने की है, जो समान परिस्थितियों में हितधारकों को निरंतर सूचित करेगी और सशक्त  बनाएगी।

इस परियोजना के प्रमुख उद्देश्य:

  1. चल रहे अकादमिक और वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों से व्यवस्थित साक्ष्‍य के प्रसार को बढ़ावा देकर नीति निर्माताओं तथा हितधारकों को सूचित करना एवं सशक्त बनाना।
  2. नीति कार्य में जुड़े शोधकर्ताओं और संगठनों के साथ सीधे उनकी अपेक्षाओं, अनुभव और आवश्यकताओं को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करते हुए नीति-निर्माण और कार्यान्वयन श्रृंखला की अंतिम सीमा तक हितधारकों को मजबूत करना।
  3. स्वैच्छिक कार्यों, वैज्ञानिक प्रमाण और नीतिगत कार्यों के बीच तालमेल को बढ़ावा देने के लिएअविकसितता पर कार्रवाई के जनादेश वाले स्वैच्छिक संगठनों, गैर सरकारी संगठनों तथा व्यक्तियों को एक मंच पर लाना ।

इस पहल में विकास के शिनाख्‍त क्षेत्रों से जुड़े वेबिनार, परामर्श, व्याख्यान और प्रसार कार्यशाला की एक श्रृंखला शामिल है। श्रृंखला में प्रत्येक परामर्श, संवाद और चर्चा के बाद, व्यापक प्रसार के लिए एनआईआरडीपीआर द्वारा एक परिणाम दस्तावेज तैयार किया जाएगा।यह उम्मीद की जाती है कि इस पहल के माध्यम से बनाए गए नीति और प्रभाव नेटवर्क से नीति डिजाइन, कार्यान्वयन, विश्लेषण और मूल्यांकन के लिए अत्यधिक समन्वित प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त होगा।

भारत में गरीबी के मुद्दे पर

परियोजना का पहला वेबिनार ग्रामीण विकास के एक मौलिक और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी कार्य क्षेत्र यानी गरीबी न्यूनीकरण पर आयोजित किया गया था।  भारत में, गरीबी इसकी परिभाषा, परिमाण, प्रचलन, स्वरूप, विस्तार और इसके खिलाफ कार्रवाई के प्रकार के संदर्भ में एक बहस का मुद्दा रहा है। 23 जुलाई, 2021 को आयोजित वेबिनार सबीना अलकिरे और जेम्स फोस्टर के माप पर केंद्रित था और एक बहु-आयामी निर्माण के रूप में गरीबी का विश्लेषण करता है (सामान्यतया अल्किरे-फोस्टर विधि के रूप में जाना जाता है)।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर के संबोधन से हुई, उन्होंने बताया कि भारत में गरीबों की पहचान हमेशा कई संकेतकों के साथ की जाती रही है।  भारतीय नीति निर्माताओं ने अंत्योदय (गरीब से गरीब) की अवधारणा को परिभाषित किया है।1977 के बाद से, गरीबी विरोधी नीतियां गरीबी से त्रस्त आबादी के सबसे निचले स्तर तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं। 2011 में, भारत सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना डेटा (उस समय के आसपास जब बहु-आयामी गरीबी सूचकांक विकसित किया जा रहा था) जुटाया था जिसमें कई मानदंडों के व्यवहार में बहिष्करण और समावेशन के तत्व थे।उदाहरण के लिए, एक कमरे वाला घर जिसकी कोई ठोस दीवार या छत नहीं, 15 से 59 वर्ष की आयु में कोई वयस्क नहोनेवाले परिवार, महिला द्वारा घर संभाले जाने वाले परिवार, विकलांग सदस्यों या विकलांग पुरुष सदस्य वाला परिवार, अनुसूचित जाति के परिवार, जिन परिवारों में 15 वर्ष से अधिक आयु का कोई साक्षर सदस्य नहीं है, भूमिहीन मजदूर –ऐसे सात वंचित मानदंड थे जिनके आधार पर गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए 8.72 करोड़ परिवारों की पहचान की गई थी।  डॉ जी नरेंद्र कुमार ने एमडीपीआई की मौजूदा संरचना से परे देखने की आवश्यकता पर जोर दिया जिससे अधिक हस्तक्षेप-उन्मुख संकेतक प्राप्‍त हो सके ताकि उनका उपयोग हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए किया जा सके।

बहु-आयामी गरीबी सूचकांक (एमडीपीआई) में भारत का प्रदर्शन

डॉ. सबीना ने जेम्स फोस्टर के साथ मिलकर बहु-आयामी गरीबी को मापने के लिए एमडीपीआई को विकसित किया था, जो मौद्रिक गरीबी उपायों को पूरा करती है। कल्‍याण का यह पैमाना लचीला होता है और इसमें अक्सर स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, जीवन स्तर, कार्य, सुरक्षा, रहन-सहन का माहौल और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे आयाम शामिल होते हैं। एमडीपीआई को वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के रूप में अपने सबसे दृश्यमान अनुप्रयोग के साथ दुनिया भर की सरकारों द्वारा अपनाया गया है जिसे ओपीएचआई और यूएनडीपी का मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय हर वर्ष अपडेट करता है। इस वेबिनार के दौरान, उन्होंने अपने हालिया काम से कुछ अंतर्दृष्टि साझा की: सबीना अलकैर, क्रिश्चियन ओल्डिज और उषा कनगरत्‍नम, (2021), भारत में बहुआयामी गरीबी में कमी की जांच 2005/6-2015/16: हेडकाउंट अनुपात की अंतर्दृष्टि और निरीक्षण, वर्ल्ड डेवलपमेंट, वॉल्यूम 142, जून 2021 (https://doi.org/10.1016/j.worlddev.2021.105454)।

रूप से हम सभी जानते हैं कि एमडीपीआई का क्या अर्थ है- कि लोग एक ही समय में विभिन्न अभावों का अनुभव करते हैं। वे जागते हैं और शायद छत टपक रही है क्योंकि वहाँ रिसाव है, जिसके बारे में शायद वे नहीं जानते, अगर उस दिन उनके पास काम होगा, शायद कोई बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है, शायद खाद्य सुरक्षा के बारे में चिंता हो सकती है, शायद केतली उबालने के लिए बिजली नहीं है। दूसरे शब्दों में, अभाव कई हो सकते हैं। एमडीपीआई के निर्माण में हम पूछ रहे हैं कि इन अनेक अभावों में कौन सी एक ही समय में व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, उनका ‘वंचन भार’ क्या है और यह कैसे बदल रहा है। इस अभ्यास का उद्देश्य गरीबी के जीवित अनुभव को कम करने के लिए उसे रोशन करना है।

एसडीजी-लिंकेज को समझना

यह सतत विकास लक्ष्यों का युग है जो यह मानता है कि गरीबी के कई रूप और आयाम हैं। पहला एसडीजी 2030 तक ‘अपने सभी रूपों में’ गरीबी को समाप्त करना है- यह लक्ष्य अकेले ही पहचानता है कि गरीबी बहुआयामी है। मौद्रिक गरीबी, गरीबी का एक महत्वपूर्ण घटक है, लेकिन केवल एक ही नहीं है – गरीबी के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए 169 लक्ष्य हैं। एसडीजी 1 (शून्य गरीबी) के भीतर पहला लक्ष्य मौद्रिक गरीबी (1.9 डॉलर प्रति दिन) को समाप्त करना है, दूसरा लक्ष्य एमडीपीआई को आधा करना है। एसडीजी दस्तावेज मानता है कि गरीबी सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती है, लेकिन यह किसी को भी पीछे नहीं छोड़ने का आह्वान करती है। यह देखने के लिए कि क्या कोई पीछे छूट गया है, हमें अलग-अलग परिणाम प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। हम भारत के राज्य या जिले द्वारा ‘नब्बे डॉलर प्रति दिन’ की गरीबी को अलग-अलग नहीं कर सकते हैं, लेकिन हम वैश्विक एमडीपीआई को अलग-अलग कर सकते हैं। एसडीजी एकीकृत बहु-क्षेत्रीय नीतियों के महत्व को भी पहचानते हैं और कई देशों में एमडीपीआई उन नीतियों को आकार देने के लिए आवश्यक साक्ष्य है।

कोई भी एमडीपीआई उन संकेतकों की पहचान करके शुरू होता है जो सभी लोगों या सभी परिवारों के लिए उपलब्ध हैं। वैश्विक एमडीपीआई के तीन आयाम हैं – 1. स्वास्थ्य, 2. शिक्षा, और 3. जीवन स्तर, और तीन आयामों के भीतर, 10 संकेतक हैं। यदि परिवार में कोई अल्पपोषित है, यदि पिछले पांच वर्षों में किसी बच्चे की मृत्यु हो गई है या यदि परिवार के किसी भी सदस्य ने छह वर्ष की स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है या यदि 10 वर्ष और उससे अधिक आयु का बच्चा 8 वीं कक्षा तक स्कूल नहीं जा रहा है, तो कोई वंचित है। यदि वे लकड़ी, गोबर या चारकोल से खाना बनाते हैं, या उनके पास पर्याप्त स्वच्छता नहीं है, एक संरक्षित गड्ढे वाला शौचालय, कम्‍पोस्‍ट या फ्लश शौचालय नहीं है या वे बांटते हैं, अगर किसी के पास संरक्षित झरने से,  या कुएं या परिसर में पाइप से पानी नहीं है, पानी प्राप्त करने के लिए आधा घंटा चलना पड़ता है, बिजली तक पहुंच की कमी होती है, अल्पविकसित छत की दीवार या फर्श होती है और रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, पशु, गाड़ी, रेफ्रिजरेटर, कंप्यूटर, साइकिल और मोटरसाइकिल जैसी आठ छोटी संपत्तियों में से एक से अधिक नहीं होती है, तो कोई वंचित है। अगर किसी के पास कार या ट्रक है तो वह संपत्ति से वंचित नहीं है। एक घर में प्रत्येक व्यक्ति के लिए इन 10 संकेतकों को मिलाकर, अभावों की रूपरेखा तैयार की जा सकती है।

2005/06 से 2015/16 के बीच एमडीपीआई के भारत के प्रक्षेपवक्र में भारत का एमपीआई केवल 10 वर्षों में आधा हो गया (केवल 4 देशों ने किया) भारत ने एमपीआई गरीबी दर को 55% से घटाकर 28% कर दिया। सबसे गरीब राज्यों ने बहुआयामी गरीबी को सबसे तेजी से कम किया। सबसे गरीब जाति, धार्मिक और आयु वर्ग ने सबसे तेजी से गरीबी कम की

एमडीपीआई के विश्लेषण से पता चला है कि गरीबी छोड़ने वाले लोगों की संख्या के मामले में, भारत दुनिया का नेतृत्व करता है क्योंकि 2006 से 2015-16 के एक दशक में 270 मिलियन से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले है। भारत द्वारा संचालित दक्षिण एशिया में पूरी दुनिया में एमडीपीआई की सबसे बड़ी कमी देखी गई। भारत उस चरण में अपने एमडीपीआई को आधा करने के लिए तीन अलग-अलग मॉडलों द्वारा ट्रैक पर था। बेशक, यह महामारी से पहले था, और भारत ने सबसे तेज कमी नहीं दिखाई। अफ्रीकी प्रायद्वीप के कुछ बहुत छोटे देशों ने भारत की तुलना में एमडीपीआई में तेजी से कमी दिखाई। लेकिन लोगों की संख्या के मामले में भारत की कमी बहुत अधिक थी।

एमडीपीआई स्तर भारत के एनएफएचएस 3 और 4 डेटा पर आधारित थे। मुख्य निष्कर्ष यह था कि बहुआयामी गरीबी सूचकांक 10 वर्षों में 0.283 से 0.123 तक आधा रह गया, जिसका अर्थ है कि भारत में गरीब लोगों ने संभावित अभावों में से 28 का अनुभव किया और 2015-16 तक यह घटकर 12.3 प्रतिशत हो गया। गरीब के रूप में पहचाने जाने के संदर्भ में, 2006 में भारत में 55 प्रतिशत लोगों की पहचान गरीब के रूप में की गई थी – लगभग अफगानिस्तान के गरीबी के स्तर जैसा और 2015-16 तक यह घटकर 27.9 प्रतिशत हो गया था। तो, भारत में 2.7 प्रतिशत आबादी ने हर साल 10 वर्षों के लिए गरीबी छोड़ दी और गरीबों का औसत अभाव स्कोर भी कम हो गया।

परिणाम 2030 से पहले सभी एसडीजी प्राप्त करने की उम्मीद देते हैं, लेकिन साथ ही, इन परिणामों की व्याख्या करने में कुछ सावधानी बरती जानी चाहिए क्योंकि वे एनएफएचएस (2015/16) के पुराने डेटासेट और महामारी से बहुत पहले से हैं। हालांकि, प्रवृत्तियों में सुधार हुआ है क्योंकि गरीब राज्यों ने पहले की सर्वेक्षण अवधि (1999-2005) की तुलना में अब तेजी से एमपीआई में कमी दिखाई है, जहां गरीब राज्य भी धीरे-धीरे बढ़ रहे थे।

डॉ. सबीना अलकैर के साथ परस्‍पर बातचीत

दर्शकों से सवालडॉ. सबीना अलकैर की प्रतिक्रिया
क्या आपको लगता है कि एक्सट्रापोलेशन हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि डेटा कब गायब है/उपलब्ध नहीं है?अभी हम कोई एक्सट्रापोलेशन नहीं करते हैं क्योंकि यह निरंतरता की कल्पना करेगा। हां, कुछ हस्तक्षेप करने वाले कारक हो सकते हैं – प्रवास, या यह तथ्य है कि (कम से कम महामारी के दौरान) कई कार्यक्रम बंद हो गए, स्कूल बंद हो गए लेकिन अन्य कार्यक्रम शुरू हो गए, जैसे कई देशों में कार्य सब्सिडी से बाहर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम खाद्य सब्सिडी थे। इसलिए हमें नहीं लगता कि एक रैखिक या सापेक्ष या लॉजिस्टिक एक्सट्रापोलेशन आवश्यक रूप से सटीक होना है।
हाशिए पर रहने वाले समूह जैसे अनुसूचित जनजाति या अन्य श्रेणियॉं भले ही उनके पास घरों में बिजली कनेक्शन या पानी की आपूर्ति होने के बावजूद, यह नियमित नहीं होता है। ये निरंतर भी नहीं होंगे। यहां तक कि शहरी क्षेत्रों में, विशेष रूप से मछुआरों में, पानी की आपूर्ति अनिश्चित है: हम एमडीपीआई में इसे कैसे छूट दे सकते हैं?दो तरीके हैं: एक सर्वेक्षण में प्रश्न जोड़ना है – क्या वहां मौसम/बरसात/सूखा है; अनुवर्ती प्रश्न: इस मौसम में क्या आपके पास प्रति दिन या प्रति सप्ताह औसतन x घंटे से अधिक की कटौती होती है? अत:, आप किसी व्यक्ति को वापस सोचने और याद करने के लिए कहने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए, आपको यह देखना होगा कि स्व-रिपोर्ट डेटा कितना सही है। दूसरा है प्रशासनिक डेटा को मर्ज करना- यदि आपके पास वास्तविक डेटा है जो कट पर स्थित जीपीएस है, तो आप इसे मर्ज कर सकते हैं ताकि आप जान सकें कि इस क्षेत्र के लोगों के पास दिन में सात घंटे बिजली कटौती है (वंचन को परिभाषित करने के लिए कटऑफ सेट करें)। यह सक्रिय प्रयोग का क्षेत्र है।
जिन संकेतकों को हमने लिया है उनमें से अधिकांश जनसंख्या (समग्र रूप से) के लिए विचार करते हैं। उप-समूहों – जैसे बहु-आयामी बाल गरीबी के लिए मैं गणना कैसे कर सकता हूं – क्या यूनिसेफ बहु-आयामी अतिव्यापी वंचन विश्लेषण अधिक उपयुक्त है?  जैकब टी डर्कसन के साथ लिखे गए मेरे प्रपत्र का संदर्भ लें, जहां हम उन चार रणनीतियों की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं जिनकी हम बाल गरीबी और माप एवं विश्लेषण के लिए सिफारिश कर रहे हैं। पहला है, राष्ट्रीय एमपीआई में बाल संकेतकों को शामिल करना, दूसरा है बच्चों द्वारा अलग-अलग करना, तीसरा है बच्चों के अभाव का घरेलू और जंडरीकृत विश्लेषण करना और चौथा है बाल एमपीआई करना जो राष्ट्रीय एमपीआई से जुड़ा हुआ है। एमओडीए के साथ समस्या यह है कि यह हमारी कार्यप्रणाली का उपयोग करता है लेकिन भार के माध्यम से, यह प्रत्येक आयाम के लिए एक उप-सूचकांक बनाता है और इसलिए इसमें संकेतकों में आयामी एकरसता का अभाव होता है। यह नीतिगत सुधारों के प्रति भी बहुत संवेदनशील नहीं है – इसलिए इसका उपयोग करने के लिए यह निरुत्साह है। दूसरी कठिनाई यह है कि आप 5 साल के बच्चे की तुलना 17 साल के बच्चे से नहीं कर सकते। हम जो करते हैं वह एक बच्चे का माप है जहां आपके पास बच्चों के लिए संज्ञानात्मक विकास, पांच साल की उम्र  तक पोषण, और  फिर छह से चौदह (6-14) साल की स्कूली शिक्षा या उस देश में जो भी अनिवार्य स्कूली शिक्षा के वर्ष है और फिर यह रोजगार और शिक्षा या उच्च स्तर के लिए प्रशिक्षण नहीं है। स्वास्थ्य के संदर्भ में, यह शिशुओं के लिए टीकाकरण हो सकता है, यह संज्ञानात्मक विकास को प्रोत्साहित करने वाली कुछ गतिविधियाँ हो सकती हैं। (वंचन) बाल श्रम, कम उम्र में बाल विवाह या गर्भावस्था हो सकती है – हमारे पास 0 से 17 तक के बचपन के जीवन चक्र में बच्चों की तुलना करने का एक सुसंगत तरीका है, लेकिन ऐसे संकेतक ढूंढ रहे हैं जिनमें अपेक्षाकृत समान अनुपात में वंचित बच्चे हैं।
बहु-आयामी गरीबी को मापने के लिए हम मनोवैज्ञानिक निर्माण को कैसे शामिल करते हैं? साथ ही, डेटा और सांख्यिकीय उपचारों की विश्वसनीयता कैसी है?  मनोवैज्ञानिक विषय के संदर्भ में, प्रेरणा और अवसाद को देखने के लिए सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला साधन जीएचक्यू सामान्य स्वास्थ्य प्रश्नावली है जिसमें 12-आइटम इंडेक्स-12 सर्वेक्षण प्रश्न हैं और उन्हें कोड करने का एक मानक तरीका है। प्रेरणा, आनंद, आदि, भलाई के उपायों का हिस्सा हैं। डेटा के संदर्भ में, यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है और हम इसे बहुत सख्ती से देखते हैं और हम इसका गहन उपचार करते हैं। सबसे पहले, हम अपने सभी अनुमानों (सर्वेक्षण के नमूना डिजाइन पर विचार करते हुए) के लिए मानक त्रुटियों और विश्वास अंतराल की गणना करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप भारत में किसी जिले के विभाजन को देखते हैं, या यदि आप अंतर-घरेलू संबंधों को देखते हैं, तो आप हल्‍के नमूने की संख्या भी गिनते हैं और आप उनकी रिपोर्ट करते हैं और यदि यह 25 से कम है, तो बाहर निकलने के लिए आप केवल तारांकन चिह्न लगाते हैं। यदि यह 25 से 50 है, तो इसके चारों ओर कोष्ठक लगाना सामान्य बात है, और यदि यह 50 से 50 और उससे अधिक है, तो आप व्याख्या के दौरान लोगों को बताएं। यदि सेल का आकार बहुत छोटा है तो हम कोई संख्या नहीं डालते हैं।
हम शास्त्रीय अर्थ में पुश फैक्टर के बारे में बात करते हैं। मैं बस सोच रहा हूं कि क्या कुछ ऐसा है जो आप लोगों की आवाजाही की भूमिका के संदर्भ में बहु-आयामी दृष्टिकोण से कहना चाहेंगे, विशेष रूप से उलटा प्रवास। एमपीआई सूचकांक में कैसे प्रभावित/प्रतिबिंबित होता है?    तो, गरीबों के प्रवास के मामले में यह काफी सीधा है। यदि आप सोचते हैं कि गरीब लोग अपने साथ क्या ले जाते हैं: वे अपनी शिक्षा, स्कूली शिक्षा के वर्ष, बच्चों को स्कूल में डालने के लिए अपनी आंतरिक प्रेरणा ले जाते हैं। लेकिन वास्तव में प्रवास एक थोक बदलाव है; तो आवास की स्थिति पानी, स्वच्छता, बिजली को बदलेगी। स्कूल की उपस्थिति बदल सकती है या नहीं, पोषण की स्थिति प्रभावित हो सकती है या नहीं भी हो सकती है, और इसलिए बाल मृत्यु दर और स्कूली शिक्षा के वर्षों को छोड़कर, जो थोड़े लंबे पूंछ संकेतक हैं, बाकी प्रवास की एक अवधि में तुरंत बदल सकते हैं। 37 प्रतिशत ग्रामीण निवासी शहरी क्षेत्रों में गरीब बनिस्‍पद 9 प्रतिशत हैं, इसलिए आजीविका की अधिक संभावना है कि जब लोग पलायन करते हैं, वे बेहतर जल स्वच्छता बिजली आवास की स्थिति से बदतर स्थिति में चले जाते हैं। केवल ये चीजें उन्हें गरीबी में जाने के लिए प्रेरित किया होगा। दूसरी ओर, शहरी निवासी परिवर्तन की आकांक्षाओं को ला सकते हैं जिससे सकारात्मक परिवर्तन हो सकता है, और हमने कई वापसियों को देखे हैं, उदाहरण के लिए, विदेशी काम से जब वे वर्षों तक प्रेषण भेजकर वापस आते है । जब वे अपने ग्रामीण समुदायों में पहुंचते है, तो वे पहले अपना घर बदलते हैं और फिर अपना समुदाय। (इसलिए) मुझे लगता है कि यह कहना जल्दबाजी होगी कि अल्पकालिक संभावना बहुआयामी संपत्ति में स्पाइक होने की है – यह निर्भर करता है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं या नहीं, लेकिन अगर वे रहते हैं तो वहां की स्थिति में सुधार के मामले में यह एक अच्छी बात हो सकती है ।

*** परियोजना का संयोजन एनआईआरडीपीआर दिल्ली से एनआईआरडीपीआर हैदराबाद के सहयोग से डॉ. रुचिरा भट्टाचार्य (ruchirab.nird@gov.in), डॉ. पार्थ प्रतिम साहू (ppsahu.nird@gov.in) और डॉ. राजेश सिन्हा (rajeshksinha.nird@gov.in) द्वारा किया जाएगा।

सीईएसडी, एनआईआरडीपीआर ने नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम पर जागरूकता पैदा करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया

नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर जागरूकता पैदा करने के लिए रेत कला

पंचायती राज संस्थाओं के संस्थागत सुदृढ़ीकरण पर प्रशिक्षण

पंचायती राज और सामाजिक सेवा वितरण केंद्र, एनआईआरडीपीआर ने जुलाई 2021 में   ‘एसआईपीआरडी और ईटीसी के राज्य स्तरीय अधिकारियों और प्रशिक्षकों के लिए पंचायती राज संस्थानों के संस्थागत सुदृढ़ीकरण’ पर दो ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम (प्रत्येक पांच दिवसीय) का आयोजन किया। पहला प्रशिक्षण कार्यक्रम 28 जून से 2 जुलाई तक और दूसरा कार्यक्रम 26 – 30 जुलाई 2021 तक आयोजित किया गया था। इन कार्यक्रमों का मूल उद्देश्य एसआईपीआरडी और ईटीसी के राज्य स्तरीय अधिकारियों और प्रशिक्षकों को पंचायती राज संस्‍थानों (पीआरआई) के संस्थागत सुदृढ़ीकरण के अर्थ, दायरे और आवश्यकता और  सुशासन तथा बेहतर सेवा वितरण के लिए संस्थागत मजबूती का महत्व को समझने में सक्षम बनाना।

प्रशिक्षण टीम ने प्रतिभागियों के साथ बातचीत की

प्रारंभ में, डॉ. अंजन कुमार भंज, एसोसिएट प्रोफेसर, सीपीआरडीपी और एसएसडी ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने संक्षेप में पंचायती राज संस्थाओं को सुदृढ़ करने के महत्व और आवश्यकता पर प्रकाश डाला। इन दो प्रशिक्षण कार्यक्रमों में कुल 113 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निम्नलिखित विषयों को कवर किया गया i) पंचायती राज संस्थाओं के संस्थागत सुदृढ़ीकरण का अर्थ, दायरा और आवश्यकता एवं स्वशासन की एक संस्था के रूप में किसी भी पंचायत की विशेषताएं ii) सुशासन और बेहतर सेवा वितरण के लिए पंचायती राज संस्थाओं के संस्थागत सुदृढ़ीकरण का महत्व iii) समग्र और सतत विकास के उद्देश्य से गुणात्‍मक जीपीडीपी, बीपीडीपी और डीपीडीपी की तैयारी के मार्गदर्शक सिद्धांत, फोकस, कदम और चुनौतियां iv) जीपीडीपी, बीपीडीपी और डीपीडीपी और समग्र मसौदा जिला विकास योजना के बीच जुड़ाव का दायरा v) पंचायती राज संस्थाओं के बेहतर कामकाज के लिए ई-ग्राम स्वराज को मजबूत करने की गुंजाइश vi) पंचायती राज संस्थाओं में वित्तीय प्रबंधन (ओएसआर, बजटिंग, लेखा) vii) पीआरआई के संस्थागत सुदृढ़ीकरण के लिए संभावित नीति सुधार उपाय और क्षमता निर्माण हस्तक्षेप और viii) पीआरआई की संस्थागत क्षमता को मापने के लिए संभावित तंत्र। प्रतिभागियों ने डीपीडीपी में जीपीडीपी और बीपीडीपी मुद्दों को एकीकृत करने, ई-ग्राम स्वराज पोर्टल में मिशन अंत्योदय गैप रिपोर्ट के उपयोग, योजनाओं के अभिसरण और डीपीडीपी में हरित लक्ष्यों को शामिल करने के बारे में बातचीत के दौरान विभिन्न प्रश्‍न उठाए।

डॉ. एम.एन. रॉय, आईएएस (सेवानिवृत्त), पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व अपर मुख्य सचिव, श्री सरोज कुमार दास, संयुक्त निदेशक, एसआईआरडी, ओडिशा, डॉ. सी.कथिरेसन, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, सीपीआरडीपी और एसएसडी, एनआईआरडीपीआर, डॉ. के. राजेश्वर, सहायक प्रोफेसर, सीआईसीटी, एनआईआरडीपीआर, मो. तकीउद्दीन, वरिष्ठ सलाहकार, सीपीआरडीपी और एसएसडी, एनआईआरडीपीआर, श्री दिलीप कुमार पाल, मॉडल जीपी क्लस्टर तैयार करने के लिए परियोजना टीम लीडर, सीपीआरडीपी एवं एसएसडी, एनआईआरडीपीआर, डॉ अंजन कुमार भंज, एसोसिएट प्रोफेसर , सीपीआरडीपी एवं एसएसडी, एनआईआरडीपीआर और श्री वंसी कृष्ण नुकाला, वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधन सलाहकार, पीसीएमजीपीसी के लिए पीएमयू ने इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विभिन्न सत्रों को चलाया।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंत में, अधिकांश प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर अपनी प्रतिक्रिया साझा की। श्री आदित्य विद्यासागर, उत्तर प्रदेश के सहभागी योजना एवं प्रशिक्षण क्रियाविधि विशेषज्ञ ने कहा कि, “वास्तव में सभी सत्र परस्पर संवादात्मक थे, और इसलिए अधिक उत्पादक थे”। सभी सत्र समुदाय-कनेक्ट-उन्मुख भी थे, जो मुझे लगता है कि सामाजिक  कल्याण कार्यक्रम को परिणाम-केंद्रित बनाने की आत्मा है। मैं यह कहने के लिए स्वतंत्र महसूस करता हूं कि संकाय के अनुभवी सदस्यों द्वारा सामग्री, शिक्षाशास्त्र और वितरण, जो ग्राउंड-फील से भरे हुए हैं, पंचायत शासन के साथ ईडब्ल्यूआर को सक्षम करने, पीआरआई के संस्थागत सुदृढ़ीकरण के लिए प्रशिक्षुओं को कारगर बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।” एक अन्य प्रतिभागी श्रीमती स्नेहा नेही, बिहार की जिला सामाजिक विकास संयोजक ने कहा कि “पंचायती राज संस्थाओं के संस्थागत सुदृढ़ीकरण पर आयोजित यह पांच दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण दिलचस्प और आकर्षक रहा है। व्यावहारिक उदाहरण, चर्चाएं और अभ्यास कार्य ने मुझे अवधारणाओं को बेहतर तरीके से सीखने में मदद की और विषय से संबंधित विभिन्न चुनौतियों से निपटने में प्रशिक्षण की उपयोगिता को भी बढ़ाया है”। श्री रामकृष्णन केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान के सलाहकार ने कहा कि “प्रशिक्षण पंचायती राज संस्थाओं की भूमिकाओं, जिम्मेदारियों और कामकाज पर बेहतर समझ देता है। वित्तीय प्रबंधन का समर्थन करने वाले संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान रोमांचक हैं और क्षेत्र में काम करने में अधिक आत्मविश्वास देते हैं। कार्यक्रम की समग्र व्यवस्था, समन्वय, प्रस्तुतिकरण, पुनर्कथन और मूल्यांकन अन्य संस्थानों के लिए उत्कृष्ट और आदर्श था। इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अनुवर्तन को प्रोत्साहित किया जा सकता है”। एक अन्य प्रतिभागी श्री प्रभाष चंद्र झा, परियोजना प्रबंधक-क्षमता निर्माण, एसपीआरसी बिहार ने कहा कि “राज्य पंचायत संसाधन केंद्र, पंचायती राज विभाग, बिहार सरकार पंचायती राज संस्थानों के संस्थागत सुदृढ़ीकरण और इसे प्राप्त करने के साधनों से संबंधित मुद्दों और चुनौतियों के विभिन्न पहलुओं के साथ हमें सक्षम करने के लिए एनआईआरडीपीआर के सभी संकाय सदस्यों को तहदिल से धन्यवाद देना चाहता है। प्रशिक्षण अत्यधिक जानकारीपूर्ण और समृद्ध रहा है। दृश्य चित्रों ने विषय को आसानी से समझने योग्य बनाया है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संयोजन डॉ. अंजन कुमार भंज, एसोसिएट प्रोफेसर, सीपीआरडीपी एवं एसएसडी, एनआईआरडीपीआर द्वारा मॉडल जीपी क्लस्टर्स के लिए परियोजना प्रबंधन इकाई दल के सहयोग से किया गया।

डॉ. आकांक्षा शुक्ला, एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष (प्रभारी), सीडीसी ने कार्यक्रम का संयोजन  किया। कार्यक्रम के डिजाइन का उद्देश्य ग्रामीण लोगों को स्मार्टफोन तक पहुंच और इसके उपयोग के बुनियादी ज्ञान के साथ सक्षम बनाना और एक पेशेवर डिजिटल पोर्टल विकसित करना है ताकि वे अपने विचार, सेवा, उत्पाद या कौशल को अपने पड़ोसी इलाके में बेच सकें ताकि कोविड-19 से जब अर्थव्यवस्था और आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुआ है उस समय वैश्विक मंच पर स्थानीय उपस्थिति के साथ आजीविका का एक वैकल्पिक साधन बनाया जा सके।

स्व-ब्रांडिंग और ऑनलाइन व्यवसाय के लिए बुनियादी संचार कौशल और ग्राहकों को लुभाने के लिए कौशल/उत्पाद/सेवा प्रावधान के दस्तावेजीकरण की तकनीकी समझ की आवश्यकता होती है। कार्यक्रम ने एमओआरडी की डीएवाई-एनआरएलएम योजना के अंतर्गत शामिल स्व- सहायता समूहों के सदस्यों, एसआईआरडी संकाय, एसआरएलएम के युवा पेशेवरों, पत्रकारों और शिक्षित एवं बेरोजगार युवाओं में अल्पविकसित विपणन कौशल को उत्‍पन्‍न करने पर  लक्षित था, जो बदले में, कैस्केड मोड में ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के पथ प्रदर्शक बन सकते है।

5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में पत्रकारों, शिक्षाविदों, व्यवसायियों, राज्य आजीविका मिशनों के कार्यक्रम/मिशन प्रबंधकों, शोधार्थियों, सामुदायिक सुविधाकर्ताओं, छात्रों, उद्यमियों, प्रशिक्षकों, सलाहकारों आदि सहित 55 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

पहले दिन अर्थात 26 जुलाई 2021 को डॉ. आकांक्षा शुक्ला ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यक्रम की जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने अतिथि वक्ताओं/स्‍त्रोत व्यक्तियों का परिचय दिया और पांच दिनों में विभिन्न सत्रों के लिए विषयों को चुनने के पीछे के तर्क को विस्तार से बताया।

परिचय सत्र के बाद, डॉ. पार्थ प्रतिम साहू, एसोसिएट प्रोफेसर, सीईडीएफआई, एनआईआरडीपीआर ने ‘उद्यमिता विकास प्रक्रिया’ पर एक सत्र चलाया। इसके बाद डॉ रत्‍न  भुइयां, सहायक प्रोफेसर, एनईआरसी-एनआईआरडीपीआर ने ‘ मीडिया में ग्रामीण उद्यमिता के साथ ऊपर उठने के लिए अवसरों की पहचान और विचार मूल्यांकन’ पर व्याख्यान दिया।  दिन के अंतिम सत्र को डॉ संदीप भटनागर, निदेशक विपणन और व्यवसाय विकास, एनआईएमएसएमई, हैदराबाद ने संभाला। उन्होंने डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म की स्थापना के संबंध में आधिकारिक औपचारिकताओं, नियमों और विनियमों के बारे में बताया।

दूसरे दिन, डॉ. राधिका मीनाक्षी शंकर, संस्थापक, वाइज आउल कंसल्टिंग, हैदराबाद ने ‘नए उद्यमियों/ डिजिटल मीडिया बिजनेस में प्रवृत्तियां के लिए सूचना के स्रोत’ और व्‍यापार तके बिजनेस आइडिया को मॉडलिंग करना’ पर दो सत्र चलाया। अंतिम सत्र में, श्रीमती अंजलि चंद्रन, हथकरघा बुटीक इम्प्रेसा की संस्थापक ने एक तंत्रज्ञ से उद्यमी बनने तक के अपने सफर के बारे में बताया।

तीसरे दिन मातृभूमि ऑनलाइन के सलाहकार श्री सुनील प्रभाकर ने तीनों सत्रों का संचालन किया। लाइव डेमो की मदद से उन्होंने ‘ स्मार्टफोन की उपयोग से डेस्कटॉप फोटोग्राफी,   मोबाइल डॉक्यूमेंटेशन-सॉफ्टवेयर एंड हार्डवेयर नीडेड’, ‘एडिटिंग स्किल्स एंड पब्लिशिंग ऑनलाइन/यूट्यूब’ और ‘फास्ट एंड इजी सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएशन’ के बारे में बात की।

चौथा दिन उद्यमिता के विपणन पक्ष से संबंधित विषयों को बताया गया। डॉ. संदीप भटनागर, निदेशक विपणन और व्यवसाय विकास, एनआईएमएसएमई, हैदराबाद ने ‘नए जमाने के उद्यमियों/विपणन प्रबंधन के लिए डिजिटल विपणन उपकरण: बिक्री, विज्ञापन और ब्रांड निर्माण’ पर एक सत्र चलाया। इसके बाद ‘परियोजना वित्तपोषण और नए स्टार्ट-अप और उद्यम: ई-कॉमर्स में उपलब्ध रास्ते’ पर श्री के.आई शरीफ, पूर्व महाप्रबंधक, नाबार्ड द्वारा  व्याख्यान प्रस्‍तुत किया गया।

कार्यक्रम के अंतिम दिन की शुरुआत डॉ. बालाकिस्ता रेड्डी, रजिस्ट्रार, नलसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ ने ‘एक उद्यम में कानूनी औपचारिकताएं: नए साइबर कानूनों पर विशेष जोर (कारखाना अधिनियम, पीएफ, श्रम कानून, साइबर कानून, आदि) पर सत्र चलाया। इसके अलावा, प्रो. एच. पुरुषोत्तम, डीपीआईआईटी-वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, आंध्र विश्वविद्यालय विशाखापत्तनम में आईपीआर चेयर प्रोफेसर ने ‘आईपीआर, पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक प्रबंधन’ के बारे में बाताया। अंतिम सत्र में, डॉ मंजू कालरा प्रकाश, सलाहकार, महिला ई हाट ने महिला ई हाट के साथ अपने अनुभव के आधार पर ऑनलाइन विपणन- बाजार योजना का प्रबंधन और विज्ञापन पर बात की।

दूसरे दिन से अंतिम दिन तक, कार्यक्रम संयोजक डॉ. आकांक्षा शुक्ला ने सत्र शुरू होने से पहले 15 मिनट का रिकैप लिया, प्रतिभागियों के सवालों के जवाब दिए और उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त की। प्रत्येक सत्र के बाद एक प्रश्नोत्तर सत्र भी आयोजित किया गया जिसमें प्रतिभागियों को स्‍त्रोत व्यक्तियों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान की गई।

कार्यक्रम के अंत में, प्रशिक्षुओं का मूल्यांकन एक ऑनलाइन परीक्षा द्वारा किया गया जिसमें बहुविकल्पीय प्रश्न शामिल थे।

प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रबंधन पोर्टल के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए कहा गया और कार्यक्रम की समग्र प्रभावशीलता 89 प्रतिशत थी, जिसमें सभी प्रशिक्षण कार्यक्रम घटक, वक्ता, ज्ञान, कौशल और व्यवहार परिवर्तन घटक शामिल थे।

कार्यक्रम संयोजक डॉ. आकांक्षा शुक्ला को प्रशिक्षण के संचालन में सहायक संपादक श्री कृष्ण राज के.एस. और श्री जी साई रवि किशोर राजा और कलाकार वेणुगोपाल भट द्वारा सहायता प्रदान की गई।

जेंडर उत्तरदायी शासन – उपकरण और तकनीक पर ऑनलाइन कार्यशाला-सह-टीओटी

डॉ. के. प्रभाकर, सहायक प्रोफेसर, सुशासन और नीति विश्लेषण केंद्र (सीजीजीपीए), राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान द्वारा 26-30 जुलाई, 2021 तक ‘जेंडर उत्तरदायी शासन-उपकरण और तकनीक’ पर क्षेत्रीय ऑनलाइन कार्यशाला-सह-प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (टीओटी) का आयोजन किया गया।

प्रशिक्षण कार्यक्रम की एक स्लाइड

शासन ‘सभी स्तरों पर देश के मामलों के प्रबंधन के लिए आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकार का प्रयोग’ है। इसमें तंत्र, प्रक्रियाएं और संस्थान शामिल हैं, जिसके माध्यम से नागरिक और समूह अपने हितों को व्यक्त करते हैं, अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करते हैं, अपने दायित्वों को पूरा करते हैं और अपने मतभेदों में मध्यस्थता करते हैं (यूएनडीपी, 1997)। महिलाओं के लिए जेंडर-उत्‍तरदायी शासन योजना सुशासन का वर्णन करता है, जो कि जेंडर-उत्‍तरदायी है, जो महिलाओं और पुरुषों की विकास में योगदान करने और लाभ उठाने की क्षमता को बढ़ाता है।

सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 5 और इसके नौ लक्ष्य जेंडर समानता हासिल करने और सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाने पर केंद्रित हैं। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स चार मूलभूत श्रेणियों में पुरुषों और महिलाओं के बीच के अंतर की जांच करता है, अर्थात् आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक प्राप्ति, स्वास्थ्य और अस्तित्व एवं राजनीतिक सशक्तिकरण। सीखने के लिए जेंडर-उत्‍तरदायी शासन टूल्स और तकनीक आवश्यक हैं, क्योंकि कई जेंडर बोधगम्य नीतियां तेजी से लक्ष्य-उन्मुख हैं, जिनका लक्ष्य मापने योग्य परिणाम और लक्ष्य एवं निर्णय-केंद्रित हैं। टीओटी को विभिन्न उपकरणों और तकनीकों को अपनाकर जेंडर-उत्तरदायी शासन के अंतराल पर चर्चा करने और उसे संबोधित करने के लिए निर्धारित किया गया था, जो जेंडर -उत्तरदायी अंतराल को भरने के लिए कौशल लाता है।

टीओटी कार्यक्रम की मुख्य संभावनाएं जेंडर-शासन अंतराल को दूर करने के लिए शासन, सुशासन, जेंडर-उत्तरदायी शासन और सामाजिक जवाबदेही उपकरणों के बारे में प्रतिभागियों के ज्ञान को बढ़ा रही थीं, और उन्हें ज्ञान तथा उपकरणों से लैस करती थीं जिन्हें एक संगठन को रिकॉर्ड और जेंडर-उत्तरदायी शासन देने में व्यावसायिकता पैदा करने की आवश्यकता होती है। प्रतिभागी जेंडर मुद्दों का आकलन करने के तकनीकी पहलुओं को सीख सकते हैं, जिसमें हितधारकों की भागीदारी और उपकरणों के अनुप्रयोग, एसजीडी 5 की उपलब्धि को प्रोत्साहित करना, जेंडर समानता हासिल करना तथा सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाना शामिल है।

राजस्थान राज्य में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े कुल 30 प्रतिभागी, अर्थात् आरडी व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, नोडल अधिकारी, जिला योजना अधिकारी, क्षेत्रीय अधिकारी, राज्य और जिला स्तर पर डीआरडीए के अधिकारी, एसआईआरडी और ईटीसी संकाय सदस्य, एनजीओ और सीबीओ ने टीओटी कार्यक्रम में भाग लिया। प्रशिक्षण सामग्री व्याख्यान-सह-चर्चा के विवेकपूर्ण मिश्रण और चर्चा किए गए प्रत्येक टूल्‍स के लिए रीयल-टाइम मामला अध्‍ययन उदाहरणों के माध्यम से वितरित की गई। कार्यक्रम का आयोजन विषयवार समझ की व्याख्या और चर्चा करके, प्रासंगिक मामला उदाहरणों का उपयोगकरके किया गया था, और चर्चा, प्रश्नोत्तरी आदि के माध्यम से मूल्यांकित किया गया।

चुनिंदा संकेतकों पर ग्रामीण और शहरी भारत की झांकियॉं: एनएफएचएस-5 से साक्ष्य

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) पूरे भारत में आयोजित एक बड़े पैमाने पर प्रतिनिधि नमूना सर्वेक्षण है। पहला सर्वेक्षण 1992-93 में किया गया था और अब तक ऐसे पांच सर्वेक्षण किए जा चुके हैं। एनएफएचएस के लगातार दौरों का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और अन्य उभरते मुद्दों पर विश्वसनीय और तुलनीय डेटासेट प्रदान करना है। नवीनतम सर्वेक्षण रिपोर्ट एनएफएचएस-5 2019-2020, दिसंबर 2020 में प्रकाशित हुई है, जिसमें 22 राज्यों के डेटा शामिल हैं और रिपोर्ट को पहले चरण की रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित किया गया है। शेष राज्यों के लिए, क्षेत्र कार्य प्रगति पर है और डेटा जल्द ही प्रकाशित किया जाएगा। सर्वेक्षण भारत को प्रजनन क्षमता, शिशु और बाल मृत्यु दर, परिवार नियोजन की प्रथा, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण, एनीमिया, उपयोग और स्वास्थ्य तथा परिवार नियोजन सेवाओं की गुणवत्ता पर राज्य और राष्ट्रीय जानकारी प्रदान करता है। 22 राज्यों में ग्रामीण-शहरी परिदृश्यों की तुलना नीचे दी गई है:

अधिकांश राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) अपरिवर्तित या बढ़ा हुआ रहा है। अधिकांश राज्य 952 के सामान्य लिंगानुपात या उससे अधिक के हैं। तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, गोआ, दादर – नगर हवेली और दमन – दीव में एसआरबी 900 से नीचे है।

  • बाल लिंगानुपात में भारी गिरावट आ रही है।
  • बाल पोषण संकेतक सभी राज्यों में मिश्रित पैटर्न दिखाते हैं। जबकी कई राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में स्थिति में सुधार हुआ है, वहीं अन्य राज्यों में लघु गिरावट आई है। अल्प अवधि में स्टंटिंग और वेस्टिंग के संबंध में भारी परिवर्तन की संभावना नहीं है।
  • महिलाओं और बच्चों में एनीमिया चिंता का विषय बना हुआ है। 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से 13 में आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं एनीमिक हैं। यह भी देखा गया है कि गर्भवती महिलाओं द्वारा 180 दिनों या उससे अधिक समय तक आईएफए गोलियों की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि होने के बावजूद एनएफएचएस-4 की तुलना में आधे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में गर्भवती महिलाओं में एनीमिया बढी  है।
  • महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में उच्च या बहुत अधिक यादृच्छिक रक्त शर्करा के स्तर में अधिक भिन्नता है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में उच्च या बहुत अधिक की सीमा में रक्त शर्करा का स्तर थोड़ा अधिक होने की संभावना अधिक होती है। उच्च या बहुत उच्च रक्त शर्करा वाले पुरुषों का प्रतिशत केरल (27 प्रतिशत) में सबसे अधिक है, इसके बाद गोआ (24 प्रतिशत) का स्थान है। पुरुषों में उच्च रक्तचाप का प्रचलन महिलाओं की तुलना में कुछ अधिक है।
  • पिछले चार वर्षों (2015-16 से 2019-20 तक) में लगभग सभी 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में बेहतर स्वच्छता सुविधाओं और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन वाले परिवारों का प्रतिशत बढ़ा है। भारत सरकार ने देश में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत मिशन, और बेहतर घरेलू वातावरण के माध्यम से अधिकतम घरों में शौचालय की सुविधा प्रदान करने के लिए ठोस प्रयास किया हैं। उदाहरण के लिए, पिछले चार वर्षों के दौरान सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खाना पकाने के ईंधन के उपयोग में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जिसमें कर्नाटक और तेलंगाना राज्यों में 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • महिला सशक्तिकरण संकेतक चरण 1 में शामिल सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में काफी सुधार दर्शाते हैं। एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के बीच बैंक खातों का परिचालन करने वाले महिलाओं के संबंध में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की गई है। उदाहरण के लिए, बिहार के मामले में, 26 प्रतिशत से 77 प्रतिशत तक बढकर 51 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पहले चरण में प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में 60 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के बैंक खाते चालू हैं। (https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1680702)

डॉ वानिश्री जोसेफ

सहायक प्रोफेसर, सीपीआर,

डीपी और एसएसडी

एनआईआरडीपीआर

एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू प्रशिक्षण अध्ययन पर ऑनलाइन कार्यशाला

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) और जनसंख्या परिषद, एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ने एसएचजी पाथवे प्रोजेक्ट का एक हिस्सा शुरू करने के लिए सहयोग हुए जो ग्रामीण महिलाओं में खाद्य, पोषण स्वास्थ्य और वॉश (एफएनएचडब्‍ल्‍यू) अभ्यासों के संबंध में एनआरएलएम द्वारा दिए गए प्रशिक्षण के प्रभाव को समझने पर केंद्रित है। एसएचजी की अवधारणा भारतीय गांवों में व्यापक रूप से फैली हुई है, जिसने महिलाओं को अर्थव्यवस्था के मामले में अपने विकास की खोज और प्रदर्शन करने और अपने गांव के विकास में योगदान देने के लिए पंख दिए हैं। एनआरएलएम प्रशिक्षण में एफएनएचडब्ल्यू के विषय को शुरू करने वाले कुछ राज्यों में झारखंड और छत्तीसगढ़ शामिल थे। अध्ययन ने एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू प्रशिक्षण कार्यक्रमों के कारण एफएनएचडब्ल्यू के पहलुओं में एसएचजी महिलाओं की बदलती प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित किया। परियोजना के एक भाग के रूप में अध्ययन के निष्कर्षों को संबंधित अध्ययन क्षेत्रों में प्रसारित करने के लिए, 5 जुलाई 2021 को एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था।

कार्यशाला में राष्ट्रीय मिशन प्रबंधन इकाई (एनएमएमयू) के एनआरएलएम अधिकारी, छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) और झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन सोसायटी (जेएसएलपीएस) के राज्य, जिला और ब्लॉक अधिकारी, एनआईआरडीपीआर तथा जनसंख्या परिषद के अनुसंधान टीमेंऔर एनआईआरडीपीआर के संकायों सहित कुल 65 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

डॉ. जी. नरेंद्र कुमार, आईएएस, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर ने उद्घाटन भाषण प्रस्‍तुत किया। डॉ.एस.के. सत्यप्रभा, एनआईआरडीपीआर परियोजना प्रधान अन्वेषक और डॉ सपना देसाई, जनसंख्या परिषद परियोजना प्रधान अन्वेषक ने अपनी टीम के सदस्यों सुश्री शर्मदा और सुश्री ऐकांतिका के साथ एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू प्रशिक्षण अध्ययन के निष्कर्षों की व्याख्या की।

डॉ. सपना देसाई ने एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू प्रशिक्षण अध्ययन पर प्रमुख एसएचजी पाथवे परियोजना और इसकी उप-परियोजना के बारे में जानकारी प्रदान की। अध्ययन क्षेत्र और इसकी कार्यप्रणाली को सुश्री शर्मदा द्वारा विस्तृत किया गया था। सुश्री ऐकांतिका ने अध्ययन क्षेत्र, उपकरण और अध्ययन के नमूने का वर्णन किया और डॉ.एस.के. सत्यप्रभा ने अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों की व्याख्या की। इसके अलावा विषयवार (भोजन, पोषण, स्वास्थ्य और वॉश) पर भी चर्चा हुई। सुश्री उषा रानी, ​​लीड, एनआरएलएम, एनएमएमयू, नई दिल्ली ने एनआरएलएम में एफएनएचडब्ल्यू को शामिल करने के बारे में विस्तार से बताया।

श्री अजय आनंद, एसपीएम, जेएसएलपीएस और सुश्री उषा रानी ने क्रमशः झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों में निष्कर्षों की प्रासंगिकता को विस्तार से प्रस्तुत किया। अध्ययन की सिफारिशों को सुश्री उषा रानी के साथ-साथ श्री अजय आनंद ने भी स्वीकार किया। डॉ. सत्यप्रभा ने कार्यशाला की कार्यवाही का सार प्रस्तुत किया। श्रीमती राधिका रस्तोगी, आईएएस, उप महानिदेशक, एनआईआरडीपीआरके समापन भाषण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

डॉ. जी. वेंकट राजू, प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, सीपीजीएस एवं डीई और डॉ.एस.के.सत्यप्रभा, सहायक प्रोफेसर, सीजीजी एवं पीए, और श्री टी.रवींद्र राव, मिशन मैनेजर, एनआरएलएम संसाधन सेल, एनआईआरडीपीआर द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू के सर्वोत्तम प्रथाओं पर वेबिनार

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) ने जनसंख्या परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से एसएचजी पाथवे प्रोजेक्ट के एक भाग के रूप में एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू प्रशिक्षण के बारे में एक अध्ययन आरंभ किया था। परियोजना की निरंतरता में, एनआरएलएम-एफएनएचडब्ल्यू सर्वोत्तम प्रथाओं पर एक वेबिनार की योजना बनाई गई थी, जिसमें राज्य ग्रामीण आजीविका मिशनों के उत्कृष्ट निष्‍पादनों को प्रदर्शित करने की योजना बनाई गई थी, विशेष रूप से स्वयं सहायता समूहों की महिला सदस्यों में भोजन, स्वास्थ्य, पोषण और वॉश प्रथाओं के बारे में। एसएचजी ग्रामीण आवास, पेयजल और स्वच्छता, जलागम प्रबंधन कार्यक्रम, नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी आदि के साथ जुड़ते हैं। एनआरएलएम में एफएनएचडब्ल्यू विषयों को शामिल करना एक आशाजनक नए आयाम के रूप में सामने आ रहा है जो संबंधित विभागों से जुड़े होने पर अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है। इस वेबिनार की योजना सभी एसआरएलएम में एक राष्ट्रव्यापी प्रेरणा प्रदान करने  के इरादे से, जो एनआरएलएम प्रशिक्षण घटकों को मजबूत करने के लिए कई शोध योग्य विषयों के स्रोत और एक मंच के रूप में बनाई गई थी।

वेबिनार के दो भाग थे जैसे i) पैनल परिचर्चा और ii) एसआरएलएम द्वारा प्रस्तुतियाँ (विषय: खाद्य, पोषण, स्वास्थ्य, वॉश)

श्रीमती राधिका रस्तोगी, आईएएस, उप महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर ने कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए विशेष भाषण प्रस्‍तुत किया। उन्होंने दैनिक आहार प्रथाओं, फलों के सेवन की आवश्यकता, बाजरा, हरी पत्तेदार सब्जियों से युक्त संतुलित आहार, पानी के पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग का उचित उपयोग, हाथ धोने की नियमित स्वच्छता अभ्यास, स्कूली बच्चों द्वारा पानी बजटिंग और स्वच्छता प्रथाओं के जागरूकता के बारे में बताया।

एनआरएलएम में एफएनएचडब्ल्यू प्रशिक्षण कार्यक्रम पर पहला सत्र सुश्री वसुधा शुक्ला, राष्ट्रीय मिशन प्रबंधक, नई दिल्ली द्वारा संचालित किया गया। सत्र के बाद डॉ संगप्पा, वैज्ञानिक, भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर), हैदराबाद स्वयं द्वारा सहायता समूहों में  स्वस्थ भोजन शैली को शामिल करने के तरीकों और साधनों के बारे में बताया गया। तीसरा सत्र श्री वेंकटेश अरलीकट्टे, वॉश अधिकारी, यूनिसेफ एचएफओ, हैदराबाद द्वारा गांवों में वॉश प्रथाओं के चर्चा पर था। पैनल परिचर्चा के बाद, मिजोरम, झारखंड,जम्मू – कश्मीर और गुजरात के एसआरएलएम ने अपनी एफएनएचडब्ल्यू सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रस्तुत किया।

दूसरे दिन, डॉ. ए. लक्ष्मय्या, वैज्ञानिक-जी और एचओडी (सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पोषण प्रभाग), राष्ट्रीय पोषण संस्थान (आईसीएमआर-एनआईएन), हैदराबाद ने जमीनी स्तर तक पहुंचने में स्वास्थ्य और पोषण के रुझानों और चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया। अगला सत्र डॉ. सपना देसाई, जनसंख्या परिषद, नई दिल्ली द्वारा महिलाओं के समूह कैसे भारत में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए परिवर्तन कैसे प्राप्त करते हैं के बारे में था।

पैनल चर्चा के बाद, बिहार, केरल, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश के एसआरएलएम ने अपनी सर्वोत्तम एफएनएचडब्ल्यू प्रथाओं को प्रस्तुत किया। वेबिनार का दस्तावेजीकरण डॉ.एस.के.सत्यप्रभा द्वारा किया गया था। श्रीमती राधिका रस्तोगी, आईएएस, उप महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर ने सभी एसआरएलएम के सर्वोत्तम कार्यों के प्रयासों की सराहना करते हुए समापन भाषण प्रस्‍तुत किया। कार्यक्रम का आयोजन डॉ.जी. वेंकट राजू, प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष, सीपीजीएस एवं डीई और डॉ.एस.के.सत्यप्रभा, सहायक प्रोफेसर, सीजीजी एवं पीए, और श्री टी.रवींद्र राव, मिशन मैनेजर, एनआरएलएम संसाधन सेल, एनआईआरडीपीआर ने किया।

ग्रामीण सामुदायिक शासन को सुदृढ़ करने पर ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम

सुशासन और नीति विश्लेषण केंद्र, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान ने ग्रामीण सामुदायिक शासन को मजबूत करने के विषय पर दो बैचों में ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। बैच I और बैच II के लिए प्रशिक्षण सत्र क्रमशः 5-9 जुलाई, 2021 और 26-30 जुलाई, तक आयोजित किए गए। प्रशिक्षण कार्यक्रम को ग्रामीण समुदाय शासन के बारे में तर्कसंगत विचार-विमर्श की सुविधा के लिए और अधिकारियों को अपने कार्यों के बेहतर निष्पादन, जमीनी स्तर पर कार्यक्रम के कार्यान्वयन के दौरान ग्रामीण समस्याओं को वास्तव में हल करने, और ग्रामीण सामुदायिक शासन के विभिन्न घटकों, सहायक तकनीकों और प्रौद्योगिकियों के बारे में जानकारी बढाने में उनकी क्षमता को अद्यतन करने में सक्षम बनाने के लिए डिजाइन किया गया था। इस प्रकार, इस कार्यक्रम से गांवों में उन्नत भारत अभियान (यूबीए) परियोजनाओं के संचालन के लिए नवीन दृष्टिकोणों के साथ प्रतिभागियों के ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण का निर्माण करने की उम्मीद की गई थी।

ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक शासन की अवधारणा, यूबीए की प्रवृत्तियों और चुनौतियों, यूबीए परियोजनाओं के प्रभावी प्रबंधन, ग्राम पंचायत विकास योजना में भाग लेने वाले संस्थानों की भूमिका, गांवों में भागीदारी दृष्टिकोण को सुविधाजनक बनाने, युवाओं और महिलाओं को शामिल करके ग्रामीण भारत को समृद्ध बनाने और परियोजना नियोजन के लिए भू-स्थानिक अनुप्रयोग पर केंद्रित है।

प्रशिक्षण विषयों को व्याख्यान, समूह परिचर्चा, कार्य, व्यावहारिक अभ्यास, स्लाइड शो और दस्तावेजी प्रस्तुतियों जैसी विभिन्‍न पद्धतियों में वितरित किया गया था।

डॉ. एस.के. सत्यप्रभा, कार्यक्रम निदेशक, डॉ. राज कुमार पम्मी और डॉ. एम.वी. रविबाबू ने एनआईआरडीपीआर स्‍त्रोत व्यक्तियों के रूप में सत्रों का संचालन किया। डॉ. के. रविचंद्रन, प्रोफेसर, सहकारी प्रबंधन, एचआरएम, गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान और सुश्री अविनु वेरोनिका ऋचा, राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान की संकाय ने बाहरी स्‍त्रोत व्यक्तियों के रूप में सत्रों का संचालन किया।

उन्नत भारत अभियान के भागीदारी संस्थानों से बीस राज्य विश्वविद्यालय और कॉलेज के संकाय सदस्यों ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया। प्रतिभागियों ने आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू – कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल का प्रतिनिधित्व किया। कुल मिलाकर, दो बैचों में 105 प्रतिभागियों को दो बैचों में प्रशिक्षित किया गया। बैच I और बैच II ने क्रमशः 93 और 95 प्रतिशत के साथ अपने फीडबैक में प्रशिक्षण कार्यक्रमों की समग्र प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया।

कार्यक्रम का आयोजन डॉ. एस.के. सत्यप्रभा, सहायक प्रोफेसर, सुशासन और नीति विश्लेषण केंद्र, एनआईआरडीपीआर द्वारा किया गया था।

ओएलएम ने जगी पदियामी के किसान से उद्यमी तक के सफर में मदद की

अपने खेत में जगी पदियामी

जगी पदियामी ओडिशा के मलकानगिरी जिले के कालीमेला ब्लॉक के कोइमेटेला गांव की रहने वाली एक छोटी और सीमांत आदिवासी महिला किसान हैं। वह अपने पति और तीन बच्चों के साथ रहती है और परिवार के पास 1.5 एकड़ की बहुत छोटी जोत भूमि है, जो काफी हद तक परती भूमि है। इसके अलावा दिहाड़ी मजदूर उनके लिए आय का दूसरा जरिया था। जगी पदियामी की कुल वार्षिक आय कभी भी 30,000 रुपये से अधिक नहीं हुई।

वह सितंबर 2018 में गठित जगन्नाथ एसएचजी की सदस्य हैं। एसएचजी को ओडिशा आजीविका मिशन (ओएलएम) द्वारा नवंबर 2018 में ओएलएम कम्युनिटी मोबिलाइज (सीआरपी-सीएम) के सहयोग से अपनाया गया था। जुलाई 2018 में एक समूह स्तरीय फोरम (सीएलएफ) का गठन किया गया था और इसे ओएलएम द्वारा सुगम बनाया गया है।

ओएलएम, डिजाइन द्वारा, समुदाय (एसएचजी) को कोइमेटेला ग्राम-स्तरीय सेवाओं के साथ-साथ कृषि, पशुधन, संस्था निर्माण, आदि जैसे निर्दिष्ट क्षेत्रों में कैडर के कौशल निर्माण के लिए एमबीके, सीआरपी-सीएम, प्राणि मित्र, कृषि मित्र और बैंक मित्र जैसे जीपीएलएफ कैडरों की पहचान करने में मदद करता है। जगी के जीवन में एक सकारात्मक मोड़ तब आया जब उन्होंने ब्लॉक और जीपी स्तरों पर पशु चिकित्सा विभाग द्वारा प्रदान किए गए प्रशिक्षण का पालन करने के बाद अपने पक्षियों की मृत्यु दर को कम करने के लिए नियमित रूप से डी-वर्मिंग और टीकाकरण सुनिश्चित करना सीखा। जगी इस प्रशिक्षण का लाभ उठाना चाहती थीं क्योंकि उन्होंने अपने पांच सदस्यीय परिवार के लिए आय के संभावित स्रोत के रूप में मुर्गी पालन की परिकल्पना की थी। सीआरपी और प्राणि मित्रा ने उनके घर नियमित रूप से जाकर और दवा, वैक्सीन आदि की आपूर्ति करके उन्हें हर संभव सहायता प्रदान की।

जगी, जो कोइमेटेला जीपीएलएफ के कुक्कुट समूह की सदस्य भी हैं, उनके पिछवाड़े के कुक्कुट उद्यमों में पहले केवल 12 देसी पक्षी थे। उन्हें प्राणि मित्र के जीपीएलएफ समर्थन से रेनबो रोस्टर चिकन नस्ल के 14 चूजे मिले। पशुधन विषय में ओडिशा आजीविका मिशन के रणनीतिक हस्तक्षेप के भाग के रूप में, प्रत्येक सीएलएफ में प्राणि मित्र के माध्यम से 2020 से मुर्गियों, बकरियों और पशुओं के नियमित टीकाकरण की योजना और क्रियान्वयन किया जा रहा है, जो एक भुगतान सेवा थी। पशु चिकित्सा विभाग ने एक किट प्रदान की: जिसमें ओआरएस- 2 पैकेट, विमरल, एम्प्रोलियम पाउडर, ऑक्स टेट्रासाइक्लिन पाउडर, लसोटा, फाउल पॉक्स, बूस्टर, मुक्तेश्वर स्ट्रा आदि जैसे टीकों सहित पूरक होते है। इस अभ्यास के कारण, पोल्ट्री पक्षियों की मृत्यु दर में मार्च 2021 में 20 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। इसने  जगी की आय में वृद्धि लाई और उसने. दो महीने की अवधि में रु.3,500 से 4,000 का लाभ कमाया। जगी ने अतिरिक्त 26 पक्षी खरीदे और अब उसके पास कुल 40 पक्षी हैं। वह नर पक्षी को स्थानीय बाजार में 300 रूपए प्रति किग्रा की दर से बेचती है। जगी की कड़ी मेहनत के साथ, ओडिशा आजीविका मिशन के हस्तक्षेप और समर्थन ने उन्हें एक दिहाड़ी मजदूर से पशुधन उद्यमी का दर्जा दिलाने में मदद की है; इस प्रकार उसे एक अतिरिक्त आजीविका और कमाई का विकल्प उपहार में दिया है।

सुश्री रोज़लिन दास

ब्लॉक परियोजना प्रबंधक

कालीमेला ब्लॉक, मलकानगिरी जिला, ओडिशा

वोकल फॉर लोकल: एसआईआरडी, हिमाचल प्रदेश एसएचजी उत्‍पादों का प्रदर्शन आयोजित करता है

प्रदर्शन में भाग लेते हुए श्री विवेक भाटिया, आईएएस, निदेशक, एचपीआईआरडी

राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, हिमाचल प्रदेश ने एचआईपीए, शिमला में ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान के तहत 29 जुलाई, 2021 को स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) द्वारा बनाए गए उत्पादों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। प्रदर्शनी का उद्घाटन श्री विवेक भाटिया, आईएएस, निदेशक, एसआईआरडी, हिमाचल प्रदेश ने किया। उन्होंने स्वयं सहायता समूहों के काम की सराहना की, विशेष रूप से पाइन सुइयों से बने हस्तशिल्प वस्तुओं की। पाइन सुई उत्पाद दोहरे उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं अर्थात, यह ग्रामीण महिलाओं को आय सहायता प्रदान करता है और जंगल में आग पकड़ने के लिए अत्यधिक संवेदनशील होने के अलावा पाइन सुइयों को उठाकर पर्यावरण को संरक्षित करने का एक प्रयास है जो उस भूमि पर कुछ भी बढ़ने नहीं देता है जहां यह गिरती है।

श्री विवेक भाटिया ने एसएचजी महिलाओं के साथ बातचीत की और एसआईआरडी संकाय सदस्यों से अमेज़ॅन, फ्लिपकार्ट आदि जैसी ऑनलाइन शॉपिंग साइटों पर एसएचजी उत्पादों की मेजबानी की संभावनाओं का पता लगाने और आत्‍मनिर्भर भारत के वोकल फॉर लोकल प्रचार के तहत राज्य में एसएचजी के लिए एक संघ का आयोजन करने का अनुरोध किया।

वन महोत्‍सव सप्‍ताह: एसआईआरडी, हिमाचल प्रदेश द्वारा वृक्षारोपण अभियान

हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, फेयरलॉन, शिमला, हिमाचल प्रदेश ने 26 से 31 जुलाई, 2021 तक मनाए गए ‘वन महोत्सव सप्ताह’ के भाग के रूप में 29 जुलाई, 2021 को वृक्षारोपण अभियान का आयोजन किया। कार्यक्रम का उद्घाटन श्री विवेक भाटिया, आईएएस, निदेशक, एचपीआईआरडी द्वारा किया गया, जिन्होंने संस्थान की सीमा पर एक ओक का पौधा लगाया। अन्य संकाय सदस्यों ने एक-एक पौधा लगाकर और गोद लेकर कार्यक्रम में भाग लिया। इसके अलावा संस्थान में फाउंडेशन प्रशिक्षण ले रहे एचएएस और अन्य संबद्ध सेवाओं के अधिकारी प्रशिक्षुओं ने ओक और पाइन के पौधे लगाए।

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन कारवान के सहयोग से वृक्षारोपण अभियान चलाया गया। उन्होंने पौधे लगाने के लिए एसआईआरडी, एचपी के साथ जुडे हुए थे और पौधों की स्थिरता के लिए तीन साल के लिए हैंडहोल्डिंग समर्थन भी दिया था। श्री विवेक भाटिया ने कारवान के प्रयासों की सराहना की और बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए मिलकर काम कर रहे सरकारी और गैर-सरकारी संगठन पारिस्थितिक संतुलन के उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं।

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